AccidentBankBIHARBreaking NewsMUZAFFARPURNationalPATNAPoliticsSTATEUncategorized

बिहार का वो राजा जिसने ना किया कोई खून-खराबा, 500 हाथी से कैसे जीता अफगानिस्तान

इतिहास के पन्ने पलटकर उस महाप्रतापी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta maurya) की कहानी को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं जिसने बिना युद्ध के अफगानिस्तान (Afghanistan) की सीमा को भारत का हिस्सा बनाया था। इतिहास में इस घटना को भारतीय शासक की पहली कूटनीतिक जीत के रूप में भी याद किया जाता है।

Sponsored

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से वहां के हालात बेहद खराब हो चुके हैं। पूरे देश में तालिबानियों के डर के चलते अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। दुनिया के अलग-अलग देश अपने हिसाब से तालिबान की इस हरकत को जायज नाजायज ठहराने में जुटे हैं। लेकिन अब तक दुनिया के किसी भी मुल्क ने अफगानिस्तान में शांति बहाली के कोई प्रयास नहीं किए हैं।

Sponsored

अफगानिस्तान की आम जनता बेहाल है। महिलाओं और बच्चों का सबसे बुरा हाल है। दुनियाभर के एक्सपर्ट अफगानिस्तान के मसले पर अमेरिका की नाकामियों को गिनाने में जुटे हैं। उनका कहना है कि 20 साल तक अफगानिस्तान में रहने के बाद भी अमेरिकी फौज अफगान सरकार और यहां की फौज को इतनी ताकत नहीं दे पाए कि वह तालिबानियों का तनिक भी सामना कर पाए। तालिबान के मसले को सुलझाने के लिए एक्सपर्ट अपने हिसाब से मशविरा भी दे रहे हैं। ऐसे में भारतीय इतिहास के पन्ने पलटने पर एक ऐसी घटना याद आती है जिसमें बिहार के एक शासक ने बिना युद्ध के कूटनीतिक का प्रयोग कर अफगानिस्तान को भारत की सीमा में मिला लिया था। आइए इतिहास के जरिए उस महाप्रतापी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की कहानी को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं जिसने बिना युद्ध के अफगानिस्तान की सीमा को भारत का हिस्सा बनाया था। इतिहास में इस घटना को भारतीय शासक की पहली कूटनीतिक जीत के रूप में भी याद किया जाता है।

Sponsored

दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग की प्रफेसर विजया लक्ष्मी सिंह कहती हैं भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते सदियों पुराने हैं। कुछ इतिहासकार भारत-अफगानिस्ता संबंध को सिंधु सभ्यता से भी जोड़ते हैं। प्राचीन काल में शोर्तुगई ट्रेड कॉलोनी में आमू दरिया (अफगानिस्तान में नदी) थी। उत्तरी अफगानिस्तान के इस इलाके में यहां पुरातात्विक सिंधु कॉलोनी थी, जो व्यापार के लिए प्रयोग किया जाता था।

Sponsored

जस्टिन और ग्रीक-रोमन इतिहासकार प्लूटार्क महान भारतीय शासक चंद्रगुप्त मौर्य और अलेक्जेंडर के बीच रिश्ते का जिक्र करते हैं। अलेक्जेंडर के सेनापति सेल्युकस ने एक बार मौजूदा अफगानिस्तान (तब कंधार हुआ करता था) को जीत लिया था और पश्चिमी भारत के सरहद तक धमक दिखा दी।

Sponsored

ऐसे में चंद्रगुप्त मौर्य भी सरहद की सुरक्षा के लिए वहां जा पहुंचे और दोनों में जंग छिड़ गई। यह युद्ध एक संधि के साथ खत्म हुआ। इसके तहत 305 ईसा पूर्व में सेल्युकस ने चंद्रगुप्त मौर्य को अफगानिस्तान सौंप दिया था। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस जंग के बाद मौर्य साम्राज्य और प्राचीन ग्रीक साम्राज्य के बीच कूटनीतिक रिश्ते कायम हो गए।

Sponsored

प्रफेसर विजया बताती हैं कि ग्रीक साम्राज्य ने कंधार के अलावा अफगानिस्ताने के दूसरे इलाके और भारत पर चंद्रगुप्त का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। इस दोस्ती के बदले चंद्रगुप्त ने महावतों के साथ 500 हाथी, मुलाजिम, सामग्री और अनाज यूनान को भेजे।

Sponsored

उन्होंने बताया कि ग्रीक (यूनान) के राजदूत मेगास्थनीज मौर्य के दरबार में नियुक्त हुए। मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त के कार्यकाल पर बहुत ही नामचीन किताब इंडिका लिखी, जिसमें हमें उस वक्त की जानकारी मिलती है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि सेल्युकस ने अपनी बेटी हेलेन की शादी चंद्रगुप्त मौर्य से की। हालांकि इसकी आधिकारिक जानकारी कहीं नहीं मिलती है।

Sponsored

चंद्रगुप्त वंश के ही महान सम्राट अशोक ने भी अफगानिस्तान पर शासन किया और इस इलाके में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। अशोक के शासनकाल में अरमिक और ग्रीक दोनों भाषा अफगानिस्तान के इन इलाकों में बोली जाती थी।

Sponsored

पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स के इतिहास विभाग में प्रफेसर राजीव बताते हैं कि इस वक्त तालिबान ने जिन हिस्सों पर कब्जा किया है वह इतिहास में कंधार का इलाका हुआ करता था। उस समय कंधार की राजधानी तक्षशिला थी। वर्तमान समय में तक्षशिला पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी जिले में स्थित है।

Sponsored

पुरातात्विक स्थल इस्लामाबाद और रावलपिण्डी से लगभग 32 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। जहां तक चंद्रगुप्त मौर्य की बात है तो शुरुआत में उन्हें भी इस इलाके में कई बार हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कंधार पर विजय के लिए तक्षशिला को ही केंद्र बना लिया था। इस इलाके में कई बार हार मिलने के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने बेहद होशियारी से कूटनीति के दम पर इस इलाके में विजय हासिल की थी। जहां तक कंधार पर विजय की बात है तो इतिहास में कई ऐसे साक्ष्य मिलते हैं जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि ग्रीक साम्राज्य ने चंद्रगुप्त के सामने सरेंडर कर दिया था और कूटनीतिक समझौता करना ही मुनासिब समझा था।

Sponsored

बिहार के बेगुसराय स्थित जीडी कॉलेज के प्रफेसर शैलेश कुमार सिन्हा ने कहा कि शिलालेख अभिलेख से प्रमाण मिलते हैं कि अफगानिस्तान तक चंद्रगुप्ता मौर्य का शासन था। अफगानिस्तान में जिस हिसाब से भगवान बुद्ध की मूर्तियां आज भी मिलते हैं, उससे स्पष्ट हैं कि वहां चंद्रगुप्त और बाद में सम्राट अशोक का साम्राज्य था।

Sponsored

 

 

 

input – daily bihar

Sponsored

Comment here