1947 के बंटवारे के समय कई लोग अपनों से जुदा हो गए, तो कितनों के घर उजड़ गए. कई मासूम जानें ले लेने वाली इस त्रासदी में न जाने कितने लोगों के चेहरों से मुस्कान छीन ली. इस त्रासदी की मार झेलने वालों में एक नाम मोहन सिंह का भी है. देश के बंटवारे के समय मोहन की उम्र मात्र 6 साल थी. इतनी छोटी सी उम्र में वह अपने परिवार से बिछड़ गए थे.
मारे गए थे परिवार के 22 लोग
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Six-year-old Mohan Singh was separated from his family in 1947, in which 22 members of his family were lost in his village, Chak 37, in Pakistan.#NeerajChopra #loveislandreunion Germany 90.18 M Israel Bajwa Gill Ukraine #banigala #ArshadNadeem #سلیم_صافی_معافی_مانگو pic.twitter.com/zFdG9DE7XS— Haseeb Khan 🇵🇰 (@HaseebkhanHk7) August 8, 2022
1947 में हुए देश बंटवारे के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों में मोहन के परिवार के 22 सदस्य मारे गए थे. एक तरफ जहां दंगाइयों ने मोहन सिंह के घर के पुरुषों को बेरहमी से मार डाला. वहीं घर की महिलाएं अपनी इज्जत को बचाने के लिए बच्चों के साथ एक कुएं में कूद गई थीं. जैसे तैसे उस समय मोहन की जान बच पाई थी लेकिन इस दौरान उन्होंने अपना परिवार खो दिया.
75 साल बाद परिवार से मिलेंगे
देश को आजाद हुए और इसका बंटवारा हुए 75 साल बीत चुके हैं. इतने साल मोहन सिंह अपने परिवार से अलग रहे लेकिन अब 75 साल बाद वह अपने परिवार से मिलने जा रहे हैं. दरअसल, मोहन सिंह अपने परिवार से मिलने सफलतापूर्वक भारत आने में कामयाब रहे हैं. बता दें कि उनका पालन-पोषण पाकिस्तान में ही हुआ है. उन्हें एक मुस्लिम परिवार ने पाला था.
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मोहन सिंह के चाचा सरवन सिंह जालंधर के रहने वाले हैं. सरवन सिंह के माता-पिता, दो भाई और दो बहनें बंटवारे के समय हुए दंगों में मारे गए थे. वह अब अपने बड़े भाई के बेटे मोहन सिंह से मिलने के लिए उत्साहित हैं. सरवन सिंह की बेटी रछपाल कौर उनकी इस यात्रा के दौरान उनके साथ होंगी.
रछपाल कौर ने मीडिया से कहा कि, ‘बंटवारे के समय हुए दंगों में उनके परिवार के बचे सदस्यों ने मोहन को खोजने की बहुत कोशिशें कीं लेकिन वह नहीं मिले.’ दंगों के शांत होने के बाद परिजनों ने अपने 6 साल के बच्चे (मोहन) को बहुत खोजा. वह सोचते रह गए कि आखिर उनके बच्चे के साथ क्या हुआ और वह कहां हैं.
इस शख्स ने बिछड़ों को मिलाया
मोहन और उनके परिवार का इतने सालों बाद मिलना भी एक संयोग की तरह ही है. इनका मिलना संभव हो पाया ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीय मूल के एक पंजाबी व्यक्ति गुरदेव सिंह के कारण. गुरदेव सिंह ने लेखक सुखदीप सिंह बरनाला की विभाजन की त्रासदी पर लिखी किताब ‘द अदर साइड ऑफ फ्रीडम’ पर एक यूट्यूब डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. इस सीरीज का एक एपिसोड सरवन सिंह के परिवार पर आधारित था. इसके बाद गुरुदेव सिंह ने मोहन सिंह और उनके परिवार को मिलाने में मदद की.