मुजफ्फरपुर। भारतीय समाज ने विकास के क्रम में कई पौराणिक मान्यताओं को पीछे छोड़ दिया है। बावजूद कुछ अब भी अपनी जड़ें मजबूती से जमाए हुए हैं। संतान के रूप में बेटा का हाेना उन्हीं में से एक है। इसके लिए माता-पिता न जाने कितनी परेशानियां उठाते हैं, लेकिन वर्तमान में जो हालात दिख रहे हैं।
उसे देखकर तो हर कोई यही कह रहा। ऐसा बेटा होने से तो बेहतर था कि नहीं होता। दरअसल, कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच लोग अपनी मूलभूत जिम्मेवारियों से भी किनारा करते जा रहे हैं। कोरोना के डरावने माहौल के बीच इस तरह की घटना ने लोगों को सोचनने पर मजबूर कर दिया है।
इस तरह से चला घटनाक्रम
शनिवार को बुजुर्ग अर्जुन ओझा और उनकी पत्नी शांति ओझा को उनके बेटे व बहू ने इलाज के नाम पर लाकर सदर अस्पताल में छोड़ दिया। देर शाम दंपती को लेकर सदर अस्पताल से एंबुलेंस उसके घर पहुंची तो बेटे ने रखने से मना कर दिया। जिसके बाद उन्हें एसकेएमसीएच के कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया। 12 घंटे तक उनका इलाज चला, लेकिन वह नहीं बच पाए। रविवार की सुबह उनकी मौत कोरोना वार्ड में हो गई।
मौत के बाद जब स्वजन को सूचना दी गई तो उन्होंने शव लेने से इन्कार कर दिया। इसके बाद अस्पताल प्रशासक व कुछ सामाजिक लोगों की पहल पर अंतिम संस्कार हुआ। पत्नी की चिकित्सा अभी एसकेएमसीएच में चल रही है। हालांकि वह कोरोना पॉजिटिव नहीं निकली है। सामान्य वार्ड में उनका इलाज किया जा रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह युवा दंपती जिस घर से रह रहे हैं वह भी इन्हीं माता पिता का दिया हुआ है।
बेटे ने मुंह मोड़ा, सामाजिक संगठन की पहल पर मिला खााना
मुजफ्फरपुर: बालूघाट इलाके में मां के कोविड संक्रमित होने के बाद बेटे-बहू ने उनसे मुंह मोड़ लिया। उनको खाना देने से इंकार कर दिया। जबकि सब एक मकान में ही रहते है। बेंगलुरु में रह रही बेटी ने अपनी मां तक खाना पहुंचाने की गुहार सोशल मीडिया व फोन के माध्यम से अलग-अलग संगठनों से लगाई। जब जाकर उसको खाना मिला। बुजुर्ग महिला ने कहा कि उनके बेटे-बहू पहले से ही उनसे अलग रहते हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमित होने के बाद भी वे लोग नहीं आए। वहीं, सोशल मीडिया पर मामला सामने आने के बाद उसको समाज के लोगों ने देखरेख शुरू की है।
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Input: JNN