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संपूर्ण बिहार में होगी मखान की खेती, नीतीश सरकार करेगी इसकी देश भर में ब्रांडिंग

बिहार कृषि विवि ने सबौर-1 प्रजाति का बीज विकसित किया, एक फीट पानी में भी होगी फसल, विस्तार:संपूर्ण बिहार में होगी मखान की खेतीमखान इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत सहायक : कोरोना काल में मखान इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत सहायक साबित हुई। लिहाजा इसकी मांग भी बढ़ गई। मांग पूरा करने के लिए सरकार ने उत्पादन बढ़ाने की यह नई योजना बनाई है। मखान अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेशक डॉ. अनिल कुमार बताते हैं कि मखान में 20 एमिनो एसिड पाया जाता है। मखान प्रोटीन की मात्रा 7.5 से 15.25 प्रतिशत और आयरन 1.4 मिग्रा प्रति 100 ग्राम होता है। फैट यानी वसा मात्र 0.1 प्रतिशत होती है। लिहाजा दिल के साथ डायबिटीज के मरीज के लिए बहुत लाभदायक है।

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राज्य में अब तक तालाबों में सिमटी मखान की खेती का विस्तार खेतों तक होने लगा। इसके लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय की नई किस्म सबौर मखान -वन सबसे उपयुक्त है। सरकार ने इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए इस बार 1050 हेक्टेयर में प्रत्यक्षण कराया है। इस खेती के लिए किसानों को सरकार की ओर से प्रति हेक्टेयर 72 हजार 750 रुपये सहायता के रूप में दिये जा रहे हैं। यह खेती किसानों का समूह बनाकर की जा रही है।

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सरकार की नई योजना से खेतों से उत्तर बिहार के मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र के खेतों से निकलकर पूरे बिहार में इसकी खेती होगी। साथ ही यह मखान दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाएगा। सरकार इसकी ब्रांडिंग भी करेगी। सरकार का उद्देश्य मखान की खेती को बढ़ावा देना साथ ही निर्यात की व्यवस्था कर किसानों की आमदनी बढ़ाना है। बीएयू की इस नई किस्म के आने से खेतों में डेढ़ फीट पानी होने पर भी इसकी खेती होने लगी है।

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अन्यथा पहले जहां भी तालाब था या चौर में ही एक साथ खेती होती थी। इस तकनीक ने मखान की खेती को काफी विस्तार मिलेगा। किसान धान और गेहूं की फसल काटने के बाद भी मखान की एक फसल ले लेंगे खास बात यह है कि मखान की यह नई प्रजाति कांटामुक्त होती है। इसे तोड़ने में किसानों को अब काटों की चुभन नहीं झेलनी होती। नई किस्म से एक हेक्टेयर में 23 से 28 क्विंटल तक उत्पादन लिया जा सकेगा। खास बात यह है कि जल प्रबंधन से अप्रैल में पौधारोपण कर अगस्त में फल निकल जाता है। उसके बाद धान और फिर रबी फसल की फसल भी लेने में परेशानी नहीं होती।

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