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भारत के अंकित ने पाकिस्तान की मारिया को यूक्रेन में बचाया, पाक अफसर बोला- बेटा! आपका शुक्रिया

PATNA ; भारतीय लड़के ने यूक्रेन में फंसी पाकिस्तानी लड़की को बमबारी के बीच 25 किमी पैदल चल बचाया, पाक अफसर बोला- बेटा! आपका शुक्रिया, 24 घंटे से रोमानिया बॉर्डर पर फंसा हूं, दूतावास से नहीं मिल रहा जवाब, हमारे बच्चे हमारी आपसी नफरत से ज्यादा अहम हैं- पाक अफसर : पाकिस्तानी दूतावास ने अंकित की तारीफ करते हुए लिखा कि एक भारतीय लड़का अंकित हमारी बेटी को हमारे पास लाया और हमारा बच्चा बन गया। बेटा! आपका बेहद शुक्रिया। यह समय दोनों देशों के लोगों के लिए एक-दूसरे की टांग खींचने का नहीं, बल्कि प्यार और समर्थन दिखाने का है। हमारे बच्चे हमारी नफरत से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

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मैं कीव पाॅलिटेक्निक इंस्टीट्यूट में यूक्रेनी लैंग्वेज का स्टूडेंट हूं। कीव के हालात बिगड़ गए हैं। 25 फरवरी काे रात 2:30 बजे इंस्टीट्यूट से तीन किलाेमीटर दूर ब्लास्ट हुआ। उसके बाद लगभग 80 स्टूडेंट्स को बंकर में भेज दिया गया। इनमें मैं अकेला भारतीय था। वहां एक पाकिस्तानी लड़की मारिया थी जाे बेहद डरी हुई थी। उसके घरवाले भी चिंतित थे। वहां आसपास लगातार ब्लास्ट हाेने पर मैंने वहां से निकलने का फैसला किया। मारिया को पता चला तो उसने भी साथ चलने की गुजारिश की। फोन पर उसके परिवार से बातचीत हुई और उन्होंने मुझ पर विश्वास जताते हुए बेटी को सुरक्षित लाने को कहा।

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28 फरवरी काे हम दोनों कीव के बुगजाला रेलवे स्टेशन के लिए पैदल निकले। दाे दिन से कुछ खाया नहीं था। वह चल नहीं पा रही थी। मैंने उसका सामान लिया और फायरिंग से बचते-बचाते 5 किमी पैदल चल स्टेशन पहुंचे। वहां बहुत भीड़ थी। तीन ट्रेनें मिस हो गईं। शाम 6 बजे धक्का-मुक्की के बीच किसी तरह ट्रेन में चढ़े। एक घंटे के सफर के बाद ट्रैक के किनारे जबरदस्त ब्लास्ट हुआ। फायरिंग शुरू हो गई। एक गोली खिड़की से होती हमारे सिर के ऊपर से निकली। ट्रेन में सब सांस रोककर नीचे लेट गए। आखिर 1 मार्च काे टर्नाेपिल स्टेशन पहुंचे। वहां मारिया का संपर्क पाकिस्तानी दूतावास के अफसरों से हुअा। अधिकारियों ने हमें टर्नाेपिल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हाॅस्टल में रखा। हमारे लिए काॅफी, ब्रेड, सूप की व्यवस्था की।

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अंकित ने बताया कि हम दोनों को पाकिस्तान दूतावास वालों ने अपने खर्च से टर्नाेपिल से राेमानिया बॉर्डर के लिए बस से रवाना किया। बस ड्राइवर ने हमें 15-20 किमी पहले ही छोड़ दिया। वहां से पैदल ही सफर तय करना पड़ा। बॉर्डर पर पहुंचा तो हजारों लोग थे। अभी तक हमें राेमानिया कैंप में एंट्री नहीं मिल पाई है। मैं बुधवार से भारतीय दूतावास से संपर्क कर रहा हूं, लेकिन काेई जवाब नहीं मिल रहा है। तापमान माइनस में है। मुझे बुखार है और शरीर बुरी तरह दर्द कर रहा है। अभी किसी प्रकार की मेडिकल हेल्प नहीं मिल पाई है। स्थानीय लाेग स्टूडेंट्स की मदद कर रहे हैं।

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