ADMINISTRATIONBIHARBreaking NewsMUZAFFARPURNationalPoliticsSTATE

गुरु दत्त: ज़िद में आकर बना डाली वो फ़िल्म, जिसके लिए आज की जेनेरेशन उन्हें याद करती है

शानदार अभिनेता, मशहूर निर्देशक और असरदार व्यक्तित्व. इन दोनों को मिलाकर अगर एक नाम लिखना हो तो गुरु दत्त लिखना गलता नहीं होगा. प्यासा, कागज़, चौदहवीं का चांद, साहब बीबी और ग़ुलाम जैसी फिल्मों के लिए गुरु दत्त आज भी याद किए जाते हैं. आज भी लोग उन्हें “भारत का ऑर्सन वेल्स” कहने से नहीं चूकते.

Sponsored

वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोण यानी गुरु दत्त 9 जुलाई, 1925 को बैंगलौर में पैदा हुए थे. पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और मां गृहणी. कहते हैं गुरु दत्त ने बचपन से ही अपनी दादी को दिया जलाकर आरती करते देखा. इसी दौरान अक्सर वो दिये की रौशनी में अपने घर की दीवार पर उंगलियों से तरह-तरह के चित्र बनाते रहते थे. उनका यह खेल, कब उन्हें कला के नज़दीक ले गया, उन्हें खुद भी पता नहीं चला.

Sponsored

Sponsored

वो 16 साल के थे, जब उन्होंने अल्मोड़ा जाकर नृत्य, नाटक व संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी. आगे वो चाचा की मदद से प्रभात फ़िल्म कम्पनी पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात उस समय के नामी हीरो रहमान और देव आनन्द से हुई. देखते ही देखते तीनों में अच्छी दोस्ती हो गई. आगे जाकर उनके बहुत अच्छे मित्र बन गए. कहते हैं इस दोस्ती ने गुरुदत्त के आगे सफ़र को आसान बना दिया.

Sponsored

आगे जैसे-जैसे उन्हें काम मिलता गया वो अपना नाम बनाते गए. अभिनेता के रूप में फिल्मों की बात करें तो उन्होंने, हम एक हैं (1946), मिस्टर एंड मिसेज़ 55 (1955), प्यासा (1957), कागज़ के फूल (1959), काला बाजार (1960), चौदहवीं का चांद (1960), साहिब बीबी और ग़ुलाम (1962), भरोसा (1963), और सुहागन (1964) जैसी बढ़िया फिल्में दीं. इसी तरह बतौर निर्देशक उन्होंने, बाज़ (1953), जाल (1952), बाज़ी (1951) मिस्टर एंड मिसेज़ 55 (1955), प्यासा (1957), कागज़ के फूल (1959) जैसी फिल्मों में काम किया.

Sponsored

Sponsored

जिस तरह से गुरु दत्त एक आम परिवार से निकलकर सफलता की बुलंदियों तक पहुंचे उसने सभी को प्रभावित किया. उनकी कला और अभिनय के सब दीवाने थे. मगर जिस तरह से उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा, वो आज भी उनके फैंस को चुभता है. 10 अक्टूबर 1964. यह वो तारीख थी, जिसे गुरु दत्त के फैंस कभी नहीं भूल सकते.

Sponsored

यही वो दिन था, जब गुरु दत्त पेढर रोड बॉम्बे में अपने बेड रूम में मृत पाए गए थे. कथित तौर पर उन्होंने शराब पीने के बाद नींद की गोलियों का ओवर डोज़ लिया था, जोकि उनकी मौत का कारण बना. अब, सच क्या था वो गुरु दत्त के साथ ही चला गया. मगर इसमें दो राय नहीं कि अपने अभूतभूर्व काम की बदौलत गुरु दत्त साहब अपने चाहने वालों के लिए यादों का एक बड़ा पिटारा छोड़ गए हैं, जो उन्हें हमेशा जिंदा रखेगा.

Sponsored

Comment here