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गली घूमकर साड़ी बेचा, 2.5 रुपया दिहाड़ी कमाया,और आज है करोड़ो के कंपनी के मालिक

Biren Kumar Basak : कहते हैं मेहनत का फल मीठा होता है। कई बार हम मेहनत करना इसलिए छोड़ देते हैं क्योंकि हमें लगता है कि हमें मेहनत का परिणाम नहीं मिल रहा है लेकिन जो लोग आत्मविश्वास के साथ धैर्य रखते हुए अपने मंजिल की ओर प्रयास करते रहते हैं उन्हें निश्चित ही सफलता मिलती है। आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं जो कंधे पर साड़ी बेचते हुए आज 50 करोड़ की कंपनी के मालिक बन गए है। हम बात कर रहे हैं (Biren Kumar Basak) बिरेन कुमार बसाक की।

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कौन हैं (Biren Kumar Basak) बिरेन कुमार बसाक

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बिरेन कुमार बसाक का जन्म बांग्लादेश के तंगेल जिले में 16 मई 1951 को हुआ था। चार भाई और दो बहनों में सबसे छोटे बिरेन एक बुनकर परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता का नाम बैंको बिहारी बसाक (Bainko Bihari Basak) था. पिता की आमदनी बहुत कम थी और इसलिए परिवार को आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. बिरेन ने शिबनाथ हाई स्कूल से छठी कक्षा तक पढ़ाई की। साल 1962 में सांप्रदायिक दंगों के कारण उनके परिवार को तंगेल से फुलिया आना पड़ा।

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उनके परिवार की माली हालत भी सही नहीं थी इसलिए उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। उन्होंने परिवार को आर्थिक मदद करने के लिए फुलिया में बुनकर का काम किया। उन्होंने साड़ी बुनाई के कारखाने में 8 साल तक काम किया। उन्हें प्रतिदिन इस काम के लिए ढाई रुपए ही मिलते थे और इसी से उनका गुजारा चलता था।

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गली गली घूमकर बेची साड़ियां

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कई सालों तक कारखाने में काम करने के बाद साल 1970 में उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अपने भाई को साथ में लेकर मकान गिरवी रख दिया। वे स्थानीय बुनकरों से साड़ी खरीदते और उसे शहर में जाकर बेचते थे। बिरेन बताते हैं कि वे साड़ियों को अपने कंधे पर रखकर घर-घर जाकर बेचते थे। उनका सामान अच्छी क्वालिटी का होता था और दाम कम होने के कारण अच्छे ग्राहक मिल जाते थे।

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धीरे धीरे उनका धंधा चल पड़ा और दोनों भाइयों को मिलाकर महीने में ₹50000 तक का मुनाफा होने लगा। साल 1981 में दोनों भाइयों ने कोलकाता में अपनी एक दुकान खोली और उसका नाम धीरेन और बिरेन बसाक एंड कंपनी (Dhiren & Biren Basak company) रखा। दुकान खोलने के बाद उनका मुनाफा तेजी से बढा और उनका सालाना मुनाफा करोड़ो में पहुंच गया।

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कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ तक पहुंचा

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भाइयों के बीच बंटवारे के बाद बिरेन फुलिया वापस आ गए. वहां 8 कर्मचारियों के साथ 1987 में एक दुकान शुरू की जिसका नाम रखा बिरेन बसाक एंड कंपनी। वे नई नई साड़ियों का डिजाइन करने के बाद थोक व्यापार करते थे। पुरानी पहचान होने के कारण बिरेन को कई साड़ियों के डीलर से ऑर्डर्स भी आने लगे थे। धीरे-धीरे इनका व्यापार आसमान को छूने लगा और 2016-17 आते-आते की कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ तक पहुंच गया।

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भाइयों के बीच बंटवारे के बाद बिरेन फुलिया वापस आ गए। वहां 8 कर्मचारियों के साथ 1987 में एक दुकान शुरू की जिसका नाम रखा बिरेन बसाक एंड कंपनी। वे नई नई साड़ियों का डिजाइन करने के बाद थोक व्यापार करते थे। पुरानी पहचान होने के कारण बिरेन को कई साड़ियों के डीलर से ऑर्डर्स भी आने लगे थे। धीरे-धीरे इनका व्यापार आसमान को छूने लगा और 2016-17 आते-आते की कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ तक पहुंच गया।

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बिरेन को अपने कार्य के वजह से साल 2013 में केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय द्वारा संत कबीर पुरस्कार एवं अन्य पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। बिरेन की कहानी हमें बताती है कि यदि आंखों में सपन हो और मेहनत करने की लगन हो तो सफलता निश्चित ही मिलती है।

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