अक्सर यह बातें देखने को मिलती है कि, बहुत सारे लोग बड़े पदों पर जाने के बाद सिस्टम की छोटी-छोटी खामियों को नजरअंदाज करते हुए अपने फेरे में लग जाते हैं और अपने पद को बरकरार रखने के लिए ही काम करते हैं। लेकिन आज हम बात करेंगे, एक ऐसी महिला आईएएस ऑफिसर की, जिन्होने अपने कामयाबी (IAS बनने) के बाद आंगनवाड़ी को गोद लेकर निजी खर्चे से बच्चों का भविष्य बनाने का सफल प्रयास किया।
हम बात कर रहे हैं, आईएएस महिला गरिमा सिंह (IAS Garima Singh) की, जो उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बालियाँ जिला (Baliyan District) के कथौली गांव (kathauli Village) से ताल्लुक रखती है। इनके पिता का नाम ओमकार सिंह (Omkar Singh) है, जो पेशे से एक इंजीनियर है। उनकी ही चाहत थी कि, उनकी बेटी एक IAS अधिकारी बने तथा गरिमा के पति का नाम राहुल राय (Rahul Rai) है, जो पेशे से इंजीनियर हैं। आपको बता दें कि इन्होंने (गरिमा) अपने मेहनत और संघर्ष के बदौलत IAS ऑफिसर जैसे गौरवान्वित पद को ग्रहण किया तथा इन दिनों अपने दरियादिली के वजह से खूब सुर्खियों में है, हर जगहों पर इनकी तारीफ की जा रही है।
आपको बता दें कि गरिमा (IAS Garima Singh) ने वर्ष 2015 में UPSC के परीक्षा में 55वां रैंक हासिल किया। इसके पहले वह IPS अफसर थी।
गरिमा (IAS Garima Singh) ने अपनी ग्रेजुएशन तथा पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के सेंट स्टीफन कॉलेज (St. Stephen’s College) से पूरी की, जिसमे उन्होंने हिस्ट्री विषय का चयन किया था। इनके पिता का सपना था कि उनकी बेटी एक काबिल IAS अधिकारी बने। इसलिए पिता के सपनो को साकार करने के लिए अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद UPSC की तैयारी में जुट गई। वर्ष 2012 में इन्होंने पहली बार सिविल सर्विसेज एग्जाम दिया और सफलता प्राप्त किया। रैंक के अनुसार से इनको IPS का पद मिला।
2 साल तक वह लखनऊ में अंडर ट्रेनी एएसपी के रूप में तैनात रहीं। उसके बाद इनकी दूसरी पोस्टिंग झांसी में बतौर एसपी हुई। लेकिन पिता का सपने IAS बनने को साकार करने के लिए रविवार को छूटी मिलने पर पढ़ाई करती थी। फिर वर्ष 2015 में UPSC के परीक्षा में शामिल हुई, जिसमे उन्होंने 55वां रैंक हसिल किया और एक IAS अधिकारी बन गई। वर्ष 2016 में उनकी पोस्टिंग झारखंड के हजारीबाग में आईएएस ऑफिसर एवं समाज सेवक ऑफिसर के रूप
झारखंड के हजारीबाग में पोस्टिंग के दौरान उनको (IAS Garima Singh) समाज सेवक के रूप में समाज सेवा क्षेत्र में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ, जहां उन्होंने आंगनवाड़ी की जर्जर हालत देखी। उसके बाद उन्होंने उस आंगनवाड़ी को गोद लेने का फैसला किया। आपको बता दें कि, गरिमा ने मटवारी मस्जिद हजारीबाग की आंगनवाड़ी को गोद लिया।
गरिमा (IAS Garima Singh) ने जब आंगनवाड़ी की हालत जर्जर देखी तो उन्होंने एक अधिकारी के रूप में नही बल्कि एक समाज सेवक के रूप में अपने खुद के पैसे खर्च करके उस आंगनवाड़ी की हालत को बेहतरीन किया। सबसे पहले उन्होंने आंगनवाड़ी की इमारत को बेहतर बनाया। फिर स्पोर्ट्स सामान, कुर्सी-टेबल, ब्लॉक, खिलौनो की व्यवस्था की ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ मस्ती भी कर सके या खेल-खेल में अच्छे अधिगम प्राप्त कर सके। इसके बाद सरकार ने इसी को देखते हुए 31 मार्च तक 50 ऐसे सेंटरों के पुनर्निर्माण की घोषणा भी कर दी है।
input – daily bihar
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