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महेश और सुरेश: नेत्रहीन भाईयों की जोड़ी, छूकर समझ लेते हैं काम, तराश चुके हैं कई मंदिरों के रथ

बंद आंखों से ऐसा काम करो कि आंख खुल जाए आंख वालों की. महेश और सुरेश (Suresh and Mahesh) नाम के दो नेत्रहीन भाईयों की जोड़ी ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है. कर्नाटक में रहने वाले इन दोनों भाईयों को आंखों से दिखाई नहीं देता. छोटी उम्र में ही वो रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (Retinitis Pigmentosa) नाम की बीमारी का शिकार हो गए थे और अपनी आंखों की रौशनी हमेशा के लिए खो दी थी.

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Pic Twitter/Vishnu_M

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पर कहते हैं ना कि ईश्वर जब एक हाथ से कुछ छीनता है तो दूसरे हाथ से कुछ न कुछ दे देता है. भले ही ईश्वर ने महेश और सुरेश को दिव्यांग बनाकर उन्हें दूसरों से अलग कर दिया. लेकिन उन्हें कला का एक ऐसा नायाब तोहफा दिया कि उनकी जिंदगी में उजाला ही उजाला हो गया. नेत्रहीन भाईयों की ये जोड़ी कर्नाटक में अब तक दर्जनों मंदिरों के रथों को तराश चुकी है. इनकी कला देखने के बाद लोग हैरान रह जाते हैं.

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दोनों के हाथों में अद्भुत जादू है. वो छूने भर से पता लगा लेते हैं कि उन्हें क्या काम करना है. मारुतेश्वर मंदिर (Maruteshwara temple) के लिए 29 फीट के रथ का निर्माण उनके द्वारा किया गया ताजा उदाहरण है. महेश-सुरेश की एक पहचान ये भी है कि उनके पिता मल्लप्पा बडिगर (Mallappa Badiger ) एक नामी रथ शिल्पी थे. अपने काम के लिए वो कर्नाटक के बादामी से राज्य पुरस्कार विजेता भी बने थे.

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दुर्भाग्य से एक परियोजना के बीच में मल्लप्पा का निधन हो गया और उनके बच्चे अकेले पड़ गए. हालांकि, जिस तरह से सुरेश और महेश ने खुद को संभाला और अब अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं वो समाज के लिए एक मिसाल है. सोशल मीडिया पर भी दोनों भाईयों की चर्चा है. लोग क्या कुछ कह रहे हैं. यहां पढ़िए:

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महेश और सुरेश की कहानी आपको कैसी लगी?

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