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बिहार के मधुबनी ने दिया देश को सबसे बड़ा योग गुरु, बाबा रामदेव के दौर में लोग भूल गए धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को

धीरेन्द्र ब्रह्मचारी एक ऐसा योग गुरु जिसने 1960 के दशक से लेकर 80 के दशक के शुरुआती वर्षो तक देश की सत्ता को शीर्षासन करवाया। आज की युवा पीढ़ी जब योग पुरे दुनिया मे लोकप्रिय हो चूका है, बाबा रामदेव जैसे योगगुरु से परिचित है। परंतु उनके लिये धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का नाम अनजान सा लगता है।

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बाबा रामदेव को आप एक व्यापारी और बीजेपी का प्रचारक तक ही देखते होंगे। लेकिन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी इन सब से आगे कांग्रेस पार्टी के चरमोत्कर्ष के दौर में आलाकमान के सबसे खास हुआ करते थे। रक्षा सौदों से लेकर, विदेश मामलों तक में उनकी हस्तकक्षेप थी। कुछ लेखकों का तो कहना है कि संजय गांधी को हीरो बनाने में बाबा ब्रह्मचारी का ही योगदान था।.

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लेकिन दुनिया अब उन्हें याद नहीं करती है। कांग्रेस पार्टी तो याद करना भी नहीं चाहेगी। मैं याद कर रहा हूं क्यों कि वो मेरे नानी गांव से थे और नानी गांव का हर कोई या तो नाना होता है या मामा होता है।मैंने भी मां के मुंह से उनके कई किस्से सुने हैं। आज बाबा रामदेव को सुनता हूं तो थोड़ा उनकी भी रिसर्च कर आया।

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बिहार के मधुबनी जिला के बसैठ चानपुरा नामक गाँव मे 12फ़रवरी 1924 को जन्म लेने वाले ब्रह्मचारी जी ने बाल्यकाल मे घर त्याग दिया तथा प्रयाग एवं काशी मे योग की शिक्षा प्राप्त किया। इनके योग से जुड़ी ज्ञान की चर्चा जल्द ही दिल्ली के सत्ता गलियारो तक पहुँचने लगी।

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कहा जाता है की जब तत्कालीन सोवियत यूनियन के द्वारा पहली बार अंतरिक्ष मे यात्री को भेजा जा रहा था तो तत्कालीन सोवियत सरकार ने नेहरु जी से ब्रह्मचारी जी को भेजने की बात की ताकी यात्री को हठयोग सिखाया जाए ताकी वो किसी भी परिस्थिति मे स्वयं को ढाल सके।

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इस घटना से नेहरु जी भी इनसे काफी प्रभावित हुए तथा उन्होने अपनी पुत्री इन्दिरा को योग सिखाने का आग्रह किया जो अपने वैवाहिक जीवन की असफलता से परेशान थी । जल्द ही ब्रह्मचारी जी की पहुँच प्रधानमंत्री आवास तक पहुँच गई।

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ब्रह्मचारी जी प्रत्येक दिन अपने फ्रेंड कॉलोनी स्थित आवास से श्रीमती गांधी को योग सिखाने जाने लगे जिसने दोनो के बीच नजदीकियों की नई नई कहानियाँ को राजनीति के गलियारो मे जन्म दिया । बाद मे श्रीमती गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह सम्बंध और मजबूत हुआ, यहाँ तक की उस समय धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को भारत का ” ग्रिगोरी रास्पुतिन ” तक कहा जाने लगा।

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बाद मे एक इंटरव्यू मे श्रीमती गांधी ने भी माना की योग गुरु मे एक ऐसी चुंबकत्व शक्ति है जिससे वो खींचे चली जाती है। गांधी के प्रधानमंत्री काल मे ब्रह्मचारी देश के दुसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माने जाने लगे थे, जो कैबिनेट तक मे दखल रखते थे।

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उनके रसूख का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है की एक बार किसी अनैतिक मांग को लेकर तत्कालीन रक्षा मन्त्री इन्द्र कुमार गुजराल से उनकी ठन गई तो उन्होने उन्हे मांग को मानने अथवा मंत्रिपद 24 घंटे के अन्दर जाने की बात कही थी, और ऐसा ही हुआ गुजराल को मंत्रिपद छोड़ना पड़ा।

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प्रधानमंत्री के आग्रह पर ब्रह्मचारी जी ने 1978 से दूरदर्शन पर आम लोगो के लिये योग का कार्यक्रम प्रारंभ किया जिसमे उनका साथ उनके चर्चित शिष्य बालमुकंद ने दिया।

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उनके प्रभाव का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है की जिस समय इन्दिरा देश मे गरीबी हटाओ का नारा बुलंद कर रही थी उनके सबसे निकट के सहयोगी निजी जेट प्लेन से यात्रा करते थे।
सरकार से नजदीकी के बल पर उन्होने आधुनिक आयुध कारखाना लगवाया , कहा जाता है कोई भी रक्षा सौदा बिना ब्रह्मचारी जी के दक्षिणा से पूरा नहीं किया जा सकता था।

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श्रीमती गांधी से अत्यंत समीपता के बल पर उन्होने देश के कई हिस्सो मे अकूत संपति बनाई। उनकी कोठी कश्मीर तक मे स्थापित थी। अभी भी उधमसिंह नगर में उनका आश्रम है।

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परंतु अक्टूबर 1984 मे इन्दिरा की मौत ने इनके सितारे को गर्दिश मे धकेल दिया , सत्ता के नये समीकरण मे स्वयं को नही ढाल पाये, श्रीमती गांधी की मौत ने उनके अन्दर एक नये प्रकार का एकांकी पन को जन्म दिया।

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बाद के वर्षो मे सत्ता के प्रकृति मे काफी परिवर्तन देखा गया, गांधी नेहरु परिवार का नेतृत्व देश से जाता रहा तो नये प्रधानमंत्री नरसिंह राव एक नये बाबा चंद्रा स्वामी के प्रभाव मे थे। उनके अधिकांश कारोबार अब सरकार के नियन्त्रण मे आ चुके थे।

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इन हालात मे ही 9 जून 1994 को अपने निजी विमान से जाते वक़्त दुर्घटना के कारण इनकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि उस उम्र में भी वो स्वयं विमान चला रहे थे।

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राजनीति की असीमित महत्वाकांक्षा ने एक ओजस्वी योगगुरु को पथ से ना केवल दिग्भ्रमित किया बल्कि राजनीति मे हर प्रकार के अनैतिकता को भी जन्म दिया । आज उनके पुण्यतिथि पर शायद ही कोई उन्हे याद करें , जबकी वो व्यक्ति एक वक़्त देश की तारिख लिखा करते थे।

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बाबा रामदेव के समर्थक और विरोधी दोनों ही इस कहानी से कुछ सीख लें। अंतिम लाइन का अर्थ पाठक अपने मन से निकाल सकते हैं।

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input – daily bihar

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