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बिहार के इस शहर में 1.5 करोड़ रुपये की तरबूज की खेती, रोजाना 12-15 हजार क्विंटल की सप्लाई

इस क्षेत्र के 10 हजार किसान इस खेती से जुड़े हैं। खास बात तो यह है कि यहां से तरबूज की इतनी डिमांड है कि किसान रोजाना डेढ़ करोड़ रुपए की कमाई कर रहे हैं।

गंडक नदी के दियारा इलाके के किसान तरबूज की खेती कर अपना भविष्य संवार रहे हैं। इस क्षेत्र के 10 हजार किसान इस खेती से जुड़े हैं। खास बात तो यह है कि यहां से तरबूज की इतनी डिमांड है कि किसान रोजाना डेढ़ करोड़ रुपए की कमाई कर रहे हैं।

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दरअसल, प्रतिदिन इस क्षेत्र से 12-15 हजार क्विंटल तरबूज अलग-अलग मंडियो में भेजा जाता है और फिलहाल यह एक हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जा रहा है। यहां से बिहार के विभिन्न मंडियों के साथ ही नेपाल, यूपी और पश्चिम बंगाल तक तरबूज भेजे जा रहे हैं।

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200 से 300 रुपए क्विंटल बिक रहा था तरबूज

किसान बताते हैं कि 2 साल से लगातार करोना काल में तरबूज बाहर नहीं जाने के कारण काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है। लेकिन इस साल बढ़ती गर्मी के कारण जहां एक तरफ फसल अच्छी हुई तो वहीं इसकी डिमांड भी बढ़ गई।

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Crores of profits from watermelon cultivation
तरबूज की खेती से करोड़ों का मुनाफा

पिछले साल तो 200 से 300 रुपए क्विंटल के दर से खेतों में तरबूज बिक रहा था। पर इस बार व्यापारी एक हजार क्विंटल के हिसाब से तरबूज की खरीदारी कर रहे हैं।

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प्रतिदिन होता है 1 से 1.5 करोड़ रुपए का कारोबार

बगहा के मंगलपुर दियारा से लेकर मधुबनी तक लगभग 12 से 13 किलोमीटर नदी के किनारे की भूमि पर तरबूज की खेती की गई है।

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इसमें शास्त्री नगर, पुअरहाउस, कैलाश नगर, गोड़ीयापट्टी, रामधम मंदिर, मलपुरवा, नारायन पुर, राजवटीया, रतवल, धनहा आदि जगहों पर तरबूज का तौल होता है।

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बगहा के जिंदल धर्म कांटा के संचालक विकास कुमार ने बताया कि 10 चक्का ट्रक 8, डीसीएम 10 से 15 और पिकअप 25 से 30 की संख्या में सिर्फ बगहा के 1 धर्म कांटा से निकलता है।

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Watermelon is being sold from this diara about 12 to 15 thousand quintals per day
तकरीबन 12 से 15 हजार क्विंटल प्रति दिन इस दियारा से तरबूज बेचा जा रहा है

इस प्रकार प्रतिदिन 35 सौ क्विंटल इस एक धर्म कांटा से तरबूज निकलता है। विवेक धर्म कांटा चौतरवा, साईं गुरु धर्म कांटा मलपुरवा, मधुबनी में स्थित धर्म कांटा से बड़े पैमाने पर तरबूज की तौल होती है।

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इसके अलावा छोटे किसान खेतों में डेढ़ से 2 क्विंटल तोलने वाली मशीन लगाकर भी तरबूज बेचते हैं। तकरीबन 12 से 15 हजार क्विंटल प्रति दिन इस दियारा से तरबूज बेचा जा रहा है। यह कारोबार तकरीबन 45 दिनों तक चलता है।

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विकल्प के तौर पर शुरू हुई थी खेती

गंडक क्षेत्र का किनारा होने के कारण बाढ़ के दौरान खेतों में बालू का फैलाव होने से गेंहू, धान और मक्के की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित नहीं हो रही थी।

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12-15 thousand quintal watermelon is sent to different markets
12-15 हजार क्विंटल तरबूज अलग-अलग मंडियो में भेजा जाता है

इसके बाद यहां के किसानों ने दियारा क्षेत्र में कड़ी मेहनत से तरबूज, ककड़ी, खीरा की खेती शुरू कर दिया। तरबूज की डिमांड पहले स्थानीय बाजार में थी।

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लेकिन अब इसकी नेपाल, यूपी, पश्चिम बंगाल के व्यापारी भी तरबूज की खरीदारी के लिए पहुंचते हैं। हालांकि इसकी जनवरी माह में ही फसल को देख कर अग्रिम बुकिंग शुरू हो जाती है।

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जैविक खादों का ज्यादा होता है उपयोग

रासायनिक खादों की अपेक्षा यहां पर गोबर के खादों का उपयोग किसान ज्यादा करते हैं। इसके कारण यहां के तरबूज की मिठास ज्यादा होती है।

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Traders tell that the watermelons here do not spoil for 10 to 12 days
व्यापारी बताते हैं कि यहां के तरबूज 10 से 12 दिन तक खराब नहीं होते हैं

इसके अलावा जैविक खाद के उपयोग से फसल कटने के बाद भी ज्यादा समय तक ठीक रहता है। इसकी वजह से यहां के व्यापारियों के लिए यह पहली पसंद है।

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व्यापारी बताते हैं कि 10 से 12 दिन तक तरबूज खराब नहीं होते हैं। इसलिए लंबी दूरी तय कर तरबूज को दूर-दूर तक भेजा जाता है

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