Satara: कहते हैं हौसले और मेहनत के बल पर दुनिया जीती जा सकती है। अगर आज इतनी सामजिक तरक्की के दावे के बाद महिलाओं को इतना कुछ सहन करना पड़ता है, तो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि आज से 30-40 साल पहले इस बारे में लोगों की क्या राय रही होगी।
महाराष्ट्र के सतारा (Satara, Maharashtra) जिले की सुरेखा ने भी दुनिया जीती। ऐसी दुनिया जिसमें पटरियों पर रेल दौड़ाने का जिम्मा सिर्फ पुरुषों का था। ऐसी दुनिया जहां पर ट्रेन चलाने का एकाधिकार पुरुषों का था। उस दुनिया में पहली लोको पायलट (Loco Pilot) बनी सुरेखा।
हमारे देश में महिलाओं की ड्राइविंग को पुरुषों के मुक़ाबले कम दर्जे का माना जाता है। सड़क पर किसी महिला को ड्राइव करते देख आज भी ताने मारने से नही चूकते लोग। लेकिन, महिलाएं भी इस सोच को हर दिन तोड़ रही हैं। ट्रेन में ड्राइवर (Driver of Train or Loco Pilot) की सीट पर बैठी सुरेखा को देखकर कई लोग हैरान रह जाते। लेकिन सुरेखा की मुस्कान और आत्मविश्वास ने हजारों महिलाओं के भीतर उम्मीद की किरण पैदा की है।
सुरेखा यादव (Surekha Yadav Loco Pilot) ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी ट्रेन की पहली महिला चालक (Surekha Yadav First Train Driver Loco Pilot) बन जाएंगी। वो अपनी पढ़ाई के बाद एक शिक्षक के तौर पर काम करना चाहती थीं। पर उनकी किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। आज भारत की पहली महिला ट्रेन चालक सुरेखा यादव के जज्बे से भरी कहानी (Story) आपको बताते जो किसी प्रेरणा से कम नही हैं।
सुरेखा यादव का जन्म वर्ष 1965 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ। उनके पिता का नाम रामचंद्र भोंसले और माता का नाम सोनाबाई है। पांच भाई-बहनों में वे सबसे बड़ी हैं। उन्होंने जिले में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जब आगे पढ़ाई का समय आया तब भी सुरेखा के चुनाव ने सबको अचंभे में डाल दिया।
अस्सी के दशक में, इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधिकांश लड़के ही करते थे। लेकिन सुरेखा ने तय किया कि वे भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करेंगी। उन्होंने यह विषय चुनकर अन्य लड़कियों के लिए मिसाल कायम की। डिप्लोमा पूरी करने के बाद सुरेखा नौकरी के लिए प्रयास करने लगी।
पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अप्रैल 2000 में लेडीज़ स्पेशल ट्रेन की शुरुआत की थी और इस ट्रेन की पहली ड्राइवर थीं सुरेखा। मई 2011 में सुरेखा का प्रमोशन हुआ और उन्हें एक्स्प्रेस मेल ड्राइवर (Express Mail Driver) बनाया गया। इसके साथ ही वो कल्याण के ही ड्राइवर ट्रेनिंग सेंटर (जहां कभी उनकी ट्रेनिंग हुई थी) में बतौर सीनियर इंसट्रक्टर ट्रेनिंग देने लगीं।
पढ़ाई पूरी करने के बाद एक दिन सुरेखा ने लोको पायलट भर्ती की अधिसूचना देखी। उन्होंने आवेदन कर दिया। जब परीक्षा देने के लिए वे प्रवेश परीक्षा कक्ष में पहुंची तो हैरान में पड़ गईं। न केवल सुरेखा बल्कि परीक्षा नियंत्रक और बाकी उमीदवार भी सुरेखा के आश्चर्य का कारण था कि वे उस परीक्षा कक्ष में, एक मात्र महिला छात्र के रूप में उपस्थित थीं।
अन्य व्यक्ति हैरान क्यों हो रहे थे, इसका अंदाजा आपको लग ही गया होगा। सुरेखा बताती हैं कि, उन्हें नहीं पता था कि अब तक कोई भी महिला इस कार्य के लिए चयनित नहीं हुईं हैं। सुरेखा यादव नहीं जानती थीं, कि वे इतिहास रचने वाली हैं। परीक्षा के विभिन्न चरण सुरेखा ने पास कर लिए और चयनित हो गईं।
परीक्षा में चयनित सुरेखा ने छह महीने की ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद उन्हें 1989 में असिस्टेंट ड्राइवर के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इस तरह सुरेखा यादव, ट्रेन चलाने वाली भारत की पहली महिला बन गई। उन्होंने 29 साल रेलवे में काम किया। लोकल गाड़ी से लेकर एक्सप्रेस ट्रेन और मालगाड़ी तक सब चलाया।
वर्ष 1998 में वह माल गाड़ी की ड्राइवर बन गईं और 2011 में एक्सप्रेस ट्रेन की ड्राइवर नियुक्त हुईं। उन्होंने भारतीय रेलवे में सेवा के दौरान अपने हर दायित्व को बखूबी निभाया। वे भारतीय रेलवे के प्रशिक्षण केंद्र में बतौर प्रशिक्षक की भूमिका भी निभाती हैं।
वर्ष 2011 का महिला दिवस, सुरेखा यादव को जीवन का सबसे बड़ा गिफ्ट दिया गया। इस दिन उन्हें एशिया की पहली महिला ड्राइवर होने का खिताब हासिल हुआ। सुरेखा ने पुणे के डेक्कन क्वीन से सीएसटी रूट पर ड्राइविंग की थी। इसे सबसे खतरनाक सफर माना जाता है। इस पटरी पर रेलगाड़ी चलाने के बाद ही सुरेखा को यह सम्मान मिला।
भले ही सुरेखा को इस उपाधि से सम्मानित किया गया हो, लेकिन यह सिर्फ उनका सम्मान भर नहीं था, यह हजारों महिलाओं को देहरी लांघकर अपने सपने पूरे करने के लिए उड़ान दी। यह आह्वान था महिलाओं को, कि वे हर वो काम करने की हिम्मत को मजबूत बनाये जो वो करना चाहती हैं। उनके कदम कभी रुकें नही यह सोचकर कि, यह कार्यक्षेत्र सिर्फ पुरुषों के लिए है। सुरेखा यादव की जीवन यात्रा से यही प्रेरणा मिल रही है।
सुरेखा ने न सिर्फ़ देश में बिछी पटरियों पर सफ़लतापूर्वक ट्रेनें दौड़ाई बल्कि रूढ़िवादी सोच पर भी हमेशा के लिए ब्रेक लगा दिया। सबसे पहले सुरेखा ने वाडी बंदर से कल्याण के बीच गुड्स ट्रेन चलाई, इस ट्रेन का नंबर था L-50. बतौर फ़्रेशर उन्हें ट्रेन के इंजन की जांच-पड़ताल, सिग्नल आदि ड्यूटी ही दिए गए।
1998 में सुरेखा को गुड्स ट्रेन चलाने की पूरी ज़िम्मेदारी दी गई। 2000 तक सुरेखा को रेलरोड इंजीनियर बना दिया गया। रेलरोड इंजीनियर को ही लोको पायलट, ट्रेनड्राइवर, मोटरवुमन कहते हैं। सुरेखा की ये उपलब्धि आग की तरह फैली। मीडिया रिपोर्ट उनका इंटरव्यू लेने और आम लोग उनका ऑटोग्राफ़ लेने के लिए भी पहुंचे थे।
भारत के वेस्टर्न घाट रेलवे लाइन पर भी सुरेखा ट्रेन चला चुकी हैं, ये सफ़लता उन्होंने 2010 में प्राप्त की। इस कठिन रास्ते पर ट्रेन चलाने के लिए उनकी स्पेशल ट्रेनिंग हुई। हालांकि ये मक़ाम हासिल करना सभी के लिए सम्भव नहीं था।
पहला कदम जो सुरेखा यादव ने उठाया उससे प्रेरणा लेते हुए आज दो सौ से ज़्यादा महिला लोको पायलट देश में है। हालांकि ये आंकड़ा अभी भी इस क्षेत्र में एक बड़ा रिकार्ड है। सुरेखा यादव को सेंट्रल रेलवे ने 2013 में आरडब्लयूसीसी बेस्ट फीमेल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया था।
इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021 को सुरेखा यादव ने मुंबई से लखनऊ पूर्ण रूप में महिला स्टाफ के साथ ट्रेन चलाई जिसका उद्देश्य रेलवे में महिलाओं के सशक्तिकरण पर ज़ोर देना था। आज महिला ने हर क्षेत्र में अपने जीत के झंडे गाड़ दिये है।
input – daily bihar
Comment here