बागमती के जलस्तर में हो रही वृद्धि से बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। शुक्रवार को भी जलस्तर में वृद्धि जारी रही। बाढ़ की आशंका से ग्रामीणों में भय और दहशत व्याप्त हो गया है। नदी की पेटी में सब्जी और फल की खेती करने वाले किसानों में मायूसी छाने लगी है। वहीं विस्थापित लोगों में दहशत है। तमाम कोशिशों के बावजूद प्रखंड के अधिकांश तटबंध खुले ही रह गए।
हर साल जून में बाढ़ का आना तय है। लोगों का कहना है बाढ़ से बचाव के लिए हर साल जून माह में ही योजना बनती है। लिहाजा बाढ़ रोकने का कोई प्रबंध नहीं होता। सरकारी आंकड़ों में केवल जान माल की हानि का लेखा-जोखा तैयार किया जाता है।
प्रखंड के मोहनपुर, बरैठा, बकुची, नवादा, गंगेया, माधोपुर, अंदामा, बर्री, चंदौली आदि गांवों में तटबंध खुले हैं। जलस्तर बढने के साथ ही ये क्षेत्र जल प्लावित हो सकते हैं और बाढ़ पीडितों को आश्रय स्थल तलाश करना पड सकता है। अबतक कोई ठोस प्रशासनिक तैयारी नहीं होने से लोगों की चिंता बढ़ गई है।
बता दें कि प्रखंड के बकुची, माधोपुर, गंगेया आदि गांवों में लोग बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती करते हैं। बागमती की पेटी में मिटटी भर जाने से उस भूमि पर सब्जी की फसल अच्छी होती है। लगभग 10 एकड़ भूमि में किसानों ने परबल, भिण्डी, लौकी आदि की खेती कर रखी है। सब्जी की इस खेती से ही उनका सालों भर का पारिवारिक खर्च चलता है। लेकिन, जलस्तर में वृद्धि के साथ ही नदी की पेटी में होने के कारण फसल डूब जाती है और किसानों के आय के स्रोत बंद हो जाते हैं।
किसान भोला महतो ने बताया कि सब्जी की खेती हमलोगों की आजीविका का साधन है। इसके सहारे सालभर का पारिवारिक खर्च निकल जाता है। बाढ़ की चपेट में आने से हमारी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाती है। श्याम महतो का कहना है कि पांच एकड़ भूमि में प्रतिवर्ष सब्जी की खेती करते हैं। इससे परिवार के खर्च के अलावा बच्चों की पढ़ाई, दवा, कपड़ा आदि का खर्च आसानी से प्राप्त हो जाता है। लेकिन बाढ़ के जल्दी आ जाने से परेशानी बढ़ गई जिससे जीवन यापन कठिन हो गया है।
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