पटना : बिहार में शराबबंदी कानून को लागू कराने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं। दावे और कानून में बदलाव के बावजूद लोग जहरीली शराब पीकर मर रहे हैं। वहीं, चाईबासा में आदवासी महिलाओं ने शराब के खिलाफ अपना कानून बना रखा है। इस कानून के तहत वह अब तक 300 लोगों को शराब की लत छुड़वा चुकीं हैं। पश्चिम सिंहभूम जिले के झारखंड-ओडिशा के सीमा क्षेत्र में शराब बनाते या बेचने वालों पर इनका अपना कानून लागू होता है। आदिवासी महिलाएं शराब बनाने या बेचते पकड़ने पर पांच हजार रुपए जुर्माना वसूलतीं हैं। कोई शराब पीते हुए पकड़ा जाता है तो उससे एक हजार रुपए जुर्माना वसूलाा जाता है। इस अभियान को स्थानीय गोंड भुइयां समाज की आदिवासी महिलाएं चला रहीं हैं। जुर्माना के रूप में वसूली गई राशि को नशामुक्ति अभियान में लगातीं हैं। दो राज्यों की सीमा पर बसे 60 से अधिक आदिवासी बाहुल्य गांवों में यह अभियान चलाया जा रहा है। इनका उद्देश्या नशे की वजह से बिखरे परिवार को बचाना है।
अभियान से जुड़ीं हैं 10 हजार से ज्यादा महिलाएं
नशामुक्ति के खिलाफ इस अभियान में 35 गांवों की 10 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ीं हुईं हैं। महिला संगठन ने 30 दिनों के अंदर 20 लोगों से जुर्माना वूसला है। इनमें 12 लोगों से 5 हजार रुपए और आठ लोगों से एक-एक हजार रुपए की जुर्माना वसूली की गई है। गोंड आदिवासी समाज की सूर्यमनी गोंड ने कहा कि ओडिशा और सिंहभूम में अंग्रेजी शासन के खिलाफ भुइयां विद्रोह हुआ। उस विद्रोह के नायक धरणीधर थे। उसी तर्ज पर हम उनकी तस्वीर के आगे लोगों को नशामुक्ति की शपथ दिलाते हैं।
अभियान की सदस्य निरक्षर या 8वीं पास
इस अभियान में जुड़ी ज्यादातर महिलाएं निरक्षर हैं। या फिर आठवीं पास हैं। सारंड की गोनासिका, बांसपाल, हातपोड़ा, सुव्वाकाठी, शाहरपुर, न्याकोट, फुलझार, लोहनपोड़ा, कुइड़ा, गोवाली, बड़ कालीमाटी, बसंतपुर, गानुअवा होते हुए यह अभियान 60 गांवों में पहुंच चुका है। अभियान से जुड़ी महिलाएं गांव-गांव घूमकर अन्य गांवों में भी मुहिम पहुंचाने में लगी हैं। इनके अभियान का ही असर है कि सड़क किनारे और हाट बाजार में लगने वाली हांडिया और महुआ शराब की दुकानें बंद होने लगीं हैं। महिलाओं ने कहा कि शराब पीने वाले की लत से आने वाली पीढ़ी भी खराब हो रही है। उनके उज्जवल भविष्य के लिए यह कदम उठाया गया है। ताकि सामाजिक बदलाव हो सके।
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