उत्तराखंड के देहरादून स्थित इंडियन मिलेट्री अकादमी से 288 कैडट्स को भारतीय थल सेना के जवान के रूप में चुना गया. उनमें से जम्मू का यह बहादुर था, जो भारतीय सेना का हिस्सा बनने के अपने सपने को साकार करने से पहले ही लकवा से ग्रसित हो गया था. एक वक़्त लगा कि उसका सपना टूट जाएगा, लेकिन उसकी इच्छाशक्ति ने उसे हिम्मत दी. शारीरिक परेशानी को हराते हुए आखिरकार वो भारतीय सेना में शामिल हो गया.
बचपन से था सेना में भर्ती होने का सपना
हम बात कर रहे हैं जम्मू के रहने वाले बाबा दानिश की जिन्हें 2017 में गुइलेन बर्रे सिंड्रोम(GBS) के कारण लकवा मार गया. लेकिन उन्होंने उन बाधाओं को पार किया. दानिश ने बचपन से भारतीय सेना का हिस्सा बनने का सपना देखा था. शरीर पर पड़े लकवे के कारण दानिश का सपना असंभव सा लग रहा था लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
6 माह में लकवा को हराया, फिर पहनी सेना की वर्दी
लकवा मारने के बाद दानिश अपने सपने को पूरा करने के लिए और अधिक गंभीर हो गए. वो किसी भी हाल में अपना लक्ष्य पाना चाहते थे. उन्होंने स्थिति पर नियंत्रण पाया. दानिश के पिता राजेश लैंगर मृदा संरक्षण अधिकारी है. उन्होंने बताया कि दानिश ने फिजियोथेरेपिस्ट की मदद से बड़े स्तर पर फिजियोथेरेपी करानी शुरू की. वह इसके लिए बहुत ही कठिन परिश्रम करता था. महज 6 माह में ही उसने सफलता पा ली.
लेफ्टिनेंट बाबा दानिश लैंगर की मां अंजू लैंगर ने कहा, “बचपन से ही वह सेना में शामिल होकर अपने देश की सेवा करना चाहता था. उसने अब अपने सपनों को पूरा किया है और हम सभी को गौरवान्वित किया है.”
विश्वास, अनुशासन और दिनचर्या
जब इंडिया टुडे ने दानिश से उनकी कठिन सफर के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान, अनुशासन और दिनचर्या से चिपके रहने से उन्हें मदद मिली. उन्होंने कहा “भगवान, बुजुर्गों, दोस्तों, गुरुओं और भारतीय सेना की मदद से मैं अपने सपनों को पूरा करने में सक्षम हुआ.”
आज लेफ्टिनेंट दानिश करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणादायक हैं जो भारतीय सेना में शामिल होकर देश की रक्षा करने का सपना देख रहे हैं.
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