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भारत के 10 कमाल के गांव, कहीं 1 भी मच्छर नहीं तो कहीं दीवारों को छूने पर लगता है फाइन

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भारत को गांवों का देश कहा जाता है और यहां के हर गांव की अपनी एक अनोखी कहानी है। भारत के बारे में कहा जाता है कि आप इसे देखना और समझना चाहते हैं तो गांवों में वक्त बिताइए। आज हम आपको देश के ऐसे अनोखे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानने के बाद आप भी कहेंगे, वाह- ऐसा देश है मेरा…

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1. यहां 1 मच्छर ढूंढने पर मिलते हैं 400 रुपए, गांव में हैं 60 करोड़पति

अहमदनगर जिले में बसा हिवरे बाजार गांव में गांव के सरपंच एक भी मच्छर ढूंढने पर 400 रुपए का इनाम देते हैं

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में बसा हिवरे बाजार गांव एक ऐसा गांव है जो हमें विश्वास दिलाता है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से कुछ भी संभव है। यह गांव एक वक्त में गरीबी और सूखे से जूझ रहा था। मगर अब यहां 60 से ज्यादा लोग करोड़पति हैं और मुश्किल से कोई गरीब किसान मिलेगा। इस गांव में एक भी मच्छर नहीं है। गांव के सरपंच एक भी मच्छर ढूंढने पर 400 रुपए का इनाम देते हैं। इस गांव की किस्मत यहां के लोगों ने खुद लिखी है।

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2. बच्चों का रिजल्ट लाउडस्पीकर पर अनाउंस करने वाला गांव

गुजरात के साबरकांठा जिले के पुंसारी गांव में पूरे गांव में वाई-फाई, 120 स्पीकर भी लगे हुए हैं। साथ ही, बच्चों का रिजल्ट भी लाउडस्पीकर पर घोषित होता है

पुंसारी गांव गुजरात के साबरकांठा जिले में है। इस गांव में साल 2006 तक कुछ भी नहीं था। गांव में न तो बिजली थी, और ना ही कोई और सुविधा। लेकिन साल 2006 में जब हिमांशु भाई नरेंद्र पटेल को गांव का सरपंच बनाया गया, तब इस गांव की पूरी तस्वीर ही बदल दी।

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दूध लाने ले जाने वाली महिलाओं के लिए अटल एक्सप्रेस नाम की बस सेवा भी है। पूरे गांव में वाई-फाई, 120 स्पीकर भी लगे हुए हैं। साथ ही, बच्चों का रिजल्ट भी लाउडस्पीकर पर घोषित होता है। इस गांव मे साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखा जाता है।

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3. कुत्ते-बिल्ली नहीं, हर घर में पाला जाता है कोबरा

महाराष्ट्र में एक ऐसा गांव है जहां जहां लोग अपने घर में कोबरा सांप को पालते हैं

भारत में प्राचीन काल से ही जीव-जंतुओं की पूजा होती आ रही है। आजकल लोग कुत्ते-बिल्लियों को अपने घर में पालते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में एक ऐसा गांव है, जहां लोग अपने घर में कोबरा सांप को पालते हैं। घर चाहे पक्का हो या कच्चा, सांपों के रहने की जगह बनाई जाती है। यह सांप घर के किसी भी सदस्य को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इस विचित्र जगह को देखने के लिए देश भर से लोग आते हैं।

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4. इस गांव की दीवारों को छूने पर ढाई हजार तक का फाइन

हिमाचल प्रदेश के मलाणा में रहने वाले निवासी आर्यों के वंशज माने जाते हैं

हिमाचल प्रदेश के मलाणा में रहने वाले निवासी आर्यों के वंशज माने जाते हैं । जबकि अन्य परंपरा के अनुसार मलाणा गांव के लोग अपने आपको सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं । मलाणा में वहां के लोगों को उनकी दीवारों को छुना मना है। ऐसा करने पर जुर्माने के तौर पर 1,000 से 2,700 तक देनी होती है।

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5. छत पर हवाई जहाज, घोड़े, गुलाब, कार, बस, टैंक बनाने वाला गांव

पंजाब के जालंधर में उप्पला गांव को हर घर में पानी की टंकियों के लिए जाना जाता है। अगर आपको छत पर प्लेन दिखे तो समझिए उस घर के लोग एनआरआई हैं

पंजाब के जालंधर में उप्पला गांव को हर घर में पानी की टंकियों के लिए जाना जाता है। यहां के हर घर की पहचान अनोखे पानी टंकी के पैटर्न से होती है। गांव के घरों की छत पर कोई साधारण पानी की टंकी नहीं है। बल्कि यहां पर हवाई जहाज, घोड़े, गुलाब, कार, बस आदि अनेक आकारों की टंकियां आपको दिखाई देगी। अगर किसी की छत पर आर्मी का टैंक दिख जाए तो समझिए उस घर से कोई न कोई सदस्य आर्मी में है। अगर आपको छत पर प्लेन दिखे तो समझिए उस घर के लोग एनआरआई हैं।

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6. ऐसा गांव जहां ज्यादातर बच्चे पैदा होते हैं जुड़वां

केरल का कोडिन्ही गांव को जुड़वां बच्चों का गांव भी कहा जाता है। पिछले 50 सालों के दौरान इस गांव में करीब 300 से भी ज्यादा जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया है।

केरल का कोडिन्ही गांव को जुड़वां बच्चों का गांव भी कहा जाता है। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस गांव के ऊपर ईश्वर की एक विशेष कृपा है, जिसके चलते अधिकतर जुड़वां बच्चे जन्म लेते हैं। पिछले 50 सालों के दौरान इस गांव में करीब 300 से भी ज्यादा जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया है। इसके पीछे कोई ठोस कारण अभी तक वैज्ञानिक भी नहीं तलाश पाए हैं।

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7. कुंवारों का गांव, जहां कई पुरुष रह जाते हैं बिना शादी के

बरवा काला, बिहार में कैमूर पर्वत के पास बसा हुआ है। इस गांव को ‘कुंवारों के गांव’ के नाम से भी जाना जाता है।

बरवा काला, बिहार में कैमूर पर्वत के पास बसा हुआ है। इस गांव को ‘कुंवारों के गांव’ के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, इस गांव में 121 लोग अभी भी कुंवारे हैं। बिहार राज्य को अविकसित और पिछड़ा हुआ राज्य माना जाता है। इस गांव में शादी के ना हो पाने का कारण यही बताया जाता है, कि इस गांव में पर्याप्त सुविधाओं की कमी है जिसकी वजह से लोग अपनी बेटी का इस गांव में विवाह करना सही नहीं मानते हैं। यहां अच्छी सड़कें या पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। स्कूलों में शिक्षक की भी बहुत कमी है।

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8. सड़कों पर पत्ते तक नहीं मिलते, बच्चों को मिलता है मां का सरनेम

मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव में सड़कों पर सफाई ऐसी कि दूर-दूर तक पेड़ों से गिरे पत्ते तक नजर नहीं आते हैं

मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव की पहचान है, कि यहां चमचमाती पक्की सड़कें, रोशनी से चकाचौंध गलियां दिखती हैं। यहां के सड़कों पर सफाई ऐसी कि दूर-दूर तक पेड़ों से गिरे पत्ते तक नजर नहीं आते हैं। यहां के लोगों ने अपनी किस्मत खुद बदली और अपने गांव को एक आदर्श गांव बनाया। इस खूबसूरत गांव में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

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यहां बांस की बने हुए डस्टबिन का इस्तेमाल किया जाता है। मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव इस गांव में लोग सामान ले जाने के लिए कपड़ों से बने थैलों का प्रयोग करते हैं। यहां गांव महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी पेश करता है। यहां पर बच्चों को मां का सरनेम मिलता है और पैतृक संपत्ति मां द्वारा घर की सबसे छोटी बेटी को दी जाती है।

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9.इस गांव के घरों और होटलों में नहीं लगता है ताला

महाराष्ट्र के शिंगणापुर गांव की खासियत यह है कि यहां के किसी घर में ताला नहीं लगाया जाता है। सभी घर बिना ताले के ही हैं।

महाराष्ट्र के शिंगणापुर गांव की खासियत यह है कि यहां के किसी घर में ताला नहीं लगाया जाता है। सभी घर बिना ताले के ही हैं। लोग अपना कीमती सामान (जेवर और पैसा) किसी अलमारी या तिजोरी में बंद करके नहीं रखते। इसके अलावा यहां के गेस्ट हाउस और होटल में भी ताले नहीं लगाए जाते।

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इतना ही नहीं इस गांव में कहीं पर भी ताले की दुकान तक नहीं है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शनि इस गांव के रक्षक हैं। उनके होते हुए गांव में चोरी संभव नहीं है। यदि कोई चोरी करता भी है तो वह गांव से बाहर नहीं जा पाता। भगवान शनि दोषी पर अपना कहर बरपाते हैं। इस अनोखे गांव में देशभर के लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

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10. शेफ और कुक का गांव- यहां से निकलते हैं स्वाद के शहंशाह

कलायुर गांव को ‘विलेज ऑफ कुक्स’ के नाम से भी जाना जाता है। इस समय गांव में 200 पुरुष कुक हैं, जो किचन का काम करके ही अपना घर चला रहे हैं।

पुड्डुचेरी से करीब 30 किलोमीटर दूर कलायुर गांव को ‘विलेज ऑफ कुक्स‘ के नाम से भी जाना जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, गांव में 200 पुरुष कुक या शेफ हैं। गांव में पुरुषों को बेहतरीन कुक बनने के लिए 10 साल की लंबी ट्रेनिंग दी जाती है। ये सभी कुक शादी और पार्टी में खाना बनाने के ऑर्डर लेते हैं। यहां के कुक एक बार में करीब 1000 लोगों को एक साथ खाना खिला सकते हैं। इस समय गांव में 200 पुरुष कुक हैं, जो किचन का काम करके ही अपना घर चला रहे हैं।

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