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बिहार के इस मंदिर में बिना खून बहे पूरी हो जाती है बलि, शिवलिंग के बारे में जानकर हो जाएंगे अभिभूत

शक्ति की अधिष्‍ठात्री देवी दुर्गा की आराधना में लोग तल्‍लीन हैं। नवरात्र के इस पावन दिन में शहर से लेकर गांव तक लोग माता की भक्ति में डूबे हैं। ऐसे में हम बात कर रहे हैं कैमूर जिले में स्‍थि‍त मां मुंडेश्‍वरी धाम की। भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित करीब 21 सौ पुराना यह मंदिर नागर शैली वास्‍तुकला का नमूना है। वैसे तो सालों भर यहां भक्‍तों का तांता लगा रहता है कि लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। रामनवमी और महाशिवरात्रि में भी लोग पहुंचते हैं। यहां रक्‍तविहीन बलि दी जाती है। यह प्रक्रिया देखकर लोग अचरज में पड़ जाते हैं।

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स्‍थापना की तिथि पर संशय

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कहा जाता है कि इसकी स्‍थापना 108 ई में बनाया गया था। 1915 के बाद से यह भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित स्‍थल है। शिलालेख के अनुसार उदयसेन नामक राजा के शासनकाल में इसका निर्माण कराया गया। यह देश के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। मंदिर की बनावट अष्‍टकोणीय है। मंदिर 2007 में बिहार राज्‍य धार्मिक न्‍यास परिषद के अधीन आ गया था।

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यहां दी जाती है रक्‍तविहीन बल‍ि 

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मुंंडेश्‍वरी माता के मंदिर में दी जाने वाली बलि अनूठी है। इसे देखकर लोग आश्‍चर्यचकित हो जाते हैं। इसे माता का महात्‍म्‍य माना जाता है। अन्‍य शक्तिपीठों की तरह यहां भी बलि देने के लिए बकरे लाए जाते हैं। लेकिन उनका खून नहीं बहता। मन्‍नत पूरी होने पर बकरे लेकर लोग आते हैं। पूजा के बाद मंदिर के पुजारी उसे मां के सामने खड़ा कर देते हैं। पुजारी मां के चरणों में अक्षत और फूल चढ़ाकर उसे बकरे पर फेंकते हैं। अक्षत फेंकते ही बकरा बेहोश हो जाता है। ऐसा होने पर माना जाता है कि बलि स्‍वीकार हो गई। कुछ देर बाद बकरा फिर खड़ा हो जाता है। इसे लेकर श्रद्धालु लौट जाते हैं।

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मुंड नामक असुर का माता ने किया था वध  

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मार्कंडेय पुराण में भी इस मंदिर की चर्चा है। पुराण के अनुसार अत्‍याचारी राक्षस मुंड का वध करने के कारण माता का नाम मुंडेश्‍वरी पड़ गया।  करीब 19 सौ वर्षों से यहां नियमित पूजा होती आ रही है। इससे जुड़ा एक शिलालेख कोलकाता के संग्रहालय में है। पुरातत्‍वविदों के अनुसार यह शिलालेख 349 से 636 ईसवी के बीच का है। इस मंदिर को एक गड़रिये ने देखा था। उस समय पहाड़ी के नीचे बसे लोग यहां पूजा-अर्चना करते थे।  मंदिर में एक पंचमुखी शिवलिंग है। कहा जाता है कि दिन के तीन समय शिवलिंग का रंग अलग-अलग दिखता है।

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औरंगजेब ने किया था मंदिर तोड़ने का प्रयास 

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कहा जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को भी तोड़वाने का प्रयास किया था। मजदूरों को इस काम में लगाया गया। लेकिन जो मजदूर मंदिर तोड़ने में लगे थे उनके साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़कर भाग निकले।

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