आजादी के वक्त भारत में 565 छोटी-बड़ी रियासतें थीं। इनमें से कई यूरोप के किसी देश जितनी बड़ी थीं तो कई दो दर्जन गांवों को मिलाकर बनी थीं। 15 अगस्त से पहले-पहले ज्यादातर रियासतों ने भारत या पाकिस्तान में मिलने का फैसला ले लिया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर, भोपाल, जूनागढ़ और हैदराबाद की रियासतें आजाद रहने की घोषणा कर चुकी थीं।
सरदार पटेल को इन रियासतों को भारत में शामिल करने का जिम्मा मिला था। उन्होंने जूनागढ़ के दो बड़े प्रांत मांगरोल और बाबरियावाड़ में सेना भेज कब्जा कर लिया था। बढ़ते दबाव के बीच जूनागढ़ का नवाब अपने कुत्तों को लेकर पाकिस्तान भाग गया और नवंबर 1947 में जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।
जूनागढ़ के उलट भोपाल, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर वे रियासतें थीं, जिन्हें भारत में मिलाने के लिए सेना के जवानों और आम लोगों को अपनी जान देनी पड़ी।
इन रियासतों के अलावा गोवा और दमन और दीव वो इलाके थे जहां पुर्तगालियों का कब्जा था। भारतीय सेना ने 1961 में इन इलाकों पर कब्जा किया, उसके बाद ये भारत का हिस्सा बने।
बात करते हैं ऐसी रियासतों, फ्रांस और पुर्तगाल के कब्जे वाले इलाकों और ब्रिटिश कॉलोनियों की, जो 15 अगस्त 1947 तक भारत का हिस्सा नहीं थीं। इनमें से कई आजादी के 2 महीने बाद भारत में शामिल हुईं, तो कई 14 साल बाद।
ब्रिटिश कॉलोनी, फ्रांस और पुर्तगाल के कब्जे वाले इलाकों की कहानी
Input: Dainik Bhaskar
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