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माता-पिता को बोझ मान JLNMCH भागलपुर में छोड़ गये बच्चे, नर्स और डॉक्टर भरोसे ही अब जिंदगी

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किसको दोष दें. अपने नसीब को या अपनी संतान को. ऐसा दर्द लिये आज हम बिस्तर पर पड़े हैं, जिसे किसी से बांट भी नहीं सकते. इस पीड़ा के सामने तो बीमारी भी कम लगती है. अब जीने की बात सोचने मात्र से मन भारी हो जाता है. क्या कुछ नहीं किया अपने बच्चों के लिए. नौ महीने कोख में पाल कर जन्म दिया. बच्चे को लगी मामूली-सी चोट पर धरती सिर पर उठा लिया करती थी. रात-रात भर जग कर पांव दबाया करते थे. पढ़ा-लिखा कर बेहतर जिंदगी दी. इसके अलावा और कोई क्या कर सकता था. लेकिन जब हम शरीर से लाचार हो गये, तो उसी घर में बोझ बन गये जहां अपने बच्चे को कंधे पर घंटों उठाकर हम उसकी खुशियां बटोरा करते थे. वही बच्चे आज हमें घर में नहीं रख पाये. गाड़ी पर सवार किया, मायागंज अस्पताल(जेएलएनएमसीएच) में लाकर भर्ती कराया और फिर कभी हमारा हाल-चाल भी लेने नहीं आये.

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अपनी तकलीफ को बयां करते बुजुर्ग

पिछले कई महीने से भागलपुर के मायागंज अस्पताल के मेडिसिन वार्ड में भर्ती 70 वर्षीय विलास प्रसाद व सुखिया देवी (बदला हुआ नाम) अपनी इस तकलीफ को बयां भी कर रहे थे और सुबक भी रहे थे. यही स्थिति इस वार्ड के कुछ अन्य मरीज और अन्य वार्डों में भी भर्ती ऐसे ही मरीजों की भी है. इन मरीजों की संख्या इस अस्पताल में अब तक लगभग 40 तक पहुंच चुकी है. सभी की कहानी कमोबेश एक जैसी ही है.

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पड़ोस की बेड पर खेलते बच्चों को देख याद आते हैं पोते-पोतियां

लावारिस की तरह भर्ती मरीजों का कहना था कि दवा और भोजन उन्हें समय-समय पर मिल जाता है. इसमें उनकी कोई शिकायत नहीं है. लेकिन पड़ोस की बेड पर भर्ती मरीजों के छोटे-छोटे बच्चों को जब खेलते, किलकारी भरते देखते हैं, तो अपने पोते-पोतियों की याद आने लगते हैं. आज घर में होते, तो अपने पोते-पोतियों संग खुद को स्वस्थ महसूस कर रहे होते.

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बोले बुजुर्ग : अब तो नर्स ही बेटियां डॉक्टर ही हमारे अभिभावक

लावारिस अवस्था में अपने माता या पिता को भर्ती कराने के बाद हमेशा के लिए छोड़ कर जाने की घटना मायागंज अस्पताल में कम नहीं हो रही है. ऐसे बुजुर्ग महिला व पुरुष मरीजों का कहना था कि अब तो उनकी बेटियां यहां की नर्स और अभिभावक यहां के डॉक्टर हैं. इनके अलावा किसे अपना कहें.

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बोले अधीक्षक

कुछ परिजन मरीज को भर्ती कर वापस हो जाते हैं. इसके बाद जब इन मरीजों की मौत होती है, तो शव के साथ प्रमाण पत्र लेकर चले जाते हैं. मरीजों को बेड से हटाया नहीं जा सकता है. ऐसे में मरीजों का इलाज उनकी अंतिम सांस तक किया जाता है. अस्पताल में इतनी जगह नहीं है कि इनके लिए अलग वार्ड बना सकें.

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डॉ असीम कुमार दास, अधीक्षक, जेएलएनएमसीएच

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Abhishek Anand

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