मां श्यामा का दरबार और यहां के लड्डू का खास महत्त्व है। कहते हैं कि यह मां श्यामा की अलौकिक शक्ति ही है जो भक्तों को यहां खींच ले आती है। पर आज हम माता रानी की बात नहीं, बल्कि वहां के लड्डुओं की बात करने वाले हैं।
आपको बताएंगे कि जिस लड्डू के आप मुरीद हैं, आखिर वह बनती कैसे है और वह आप तक पहुंचने से पहले सुरक्षा और स्वाद के किन मानकों से होकर गुजरती है।
मां श्यामा न्यास समिति के कार्यालय सहायक रवींद्र कुमार ठाकुर के मुताबिक, इसे बनाने के लिए गांव से देसी घी मंगवाई जाती है। इसके चयन का एक मानक है। मानक पर खरा उतरने के बाद ही लड्डू बनाने का प्रोसेस शुरू होता है।
इसकी गुणवत्ता की जांच फूड इंस्पेक्टर से निरंतर कराई जाती है। समय-समय पर जिलाधिकारी भी इसका औचक निरीक्षण कर इसको परखते हैं। इन सबके बावजूद इसकी कीमत काफी किफायती रखी जाती है।
मां श्यामा न्यास समिति के सचिव हेमकांत चौधरी के मुताबिक, लड्डू बनाने से पहले दरभंगा और आसपास के जिलों के गांवों से देसी घी मंगवाई जाती है। घी की शुद्धता जांच के बाद श्यामा माई परिसर में लड्डू निर्माण करवाया जाता है।
लड्डू बनाने के दौरान कारीगर इसकी गुणवत्ता का विशेष ख्याल रखते हैं। इस लड्डू को बनाने में शुद्ध देसी घी के साथ काजू, किशमिश और खीरा के बीज जैसी कई चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
कारीगरों द्वारा तैयार लड्डू न्यास समिति श्यामा भोग दुकान तक पहुंचाती है। जहां से भक्तजन इसे 260 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीद कर माता रानी को भोग चढ़ाते हैं। यह दुकान टेंडर के जरिए न्यास समिति के द्वारा एक साल के लिए दी जाती है।
मां श्यामा न्यास समिति के कार्यालय सहायक रवींद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि श्यामा माई मंदिर के लड्डू को आप निश्चिंत होकर खा सकते हैं। क्योंकि इसकी गुणवत्ता की जांच फूड इंस्पेक्टर करते हैं।
समय-समय पर दरभंगा जिलाधिकारी भी श्यामा मंदिर परिसर में पहुंचकर भोग के लिए बनाए जाने वाले लड्डुओं का निरीक्षण करते हैं।
जिलाधिकारी का सख्त निर्देश रहता है कि माता रानी के भोग के लिए बन रहे लड्डुओं की जांच फूड इंस्पेक्टर के द्वारा समय-समय पर होती रहनी चाहिए।
बिहार में मां श्यामा का विशेष महत्त्व है। यहां दूरदराज से भक्त खींचे चले आते हैं. कहा जाता है कि अगर आपकी श्रद्धा सच्ची है तो मां श्यामा सब इच्छा पूर्ण करती हैं। यह मंदिर तंत्र सिद्धि के लिए विशेष महत्त्व रखता है।
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