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टीन की छत के नीचे बसी है बिहार ‘टॉपर्स की फैक्ट्री’, पढ़ें सिमुलतला स्कूल की हकीकत

सिमुलतला स्कूल का नाम सामने आते ही मन मस्तिष्क में जो पहली छवि बनती है वो होती है टॉपर्स की फैक्ट्री की, आखिर ऐसा हो भी तो क्यों नहीं. लगभग हर साल इस स्कूल के बच्चे बिहार बोर्ड (Bihar Matric Result 2021) के नतीजों में अव्वल जो आते हैं लेकिन नेतरहाट के तर्ज पर टॉपर्स की फैक्ट्री (Toppers Factory Simultala) कहा जाने वाला जमुई जिले का सिमुलतला आवासीय विद्यालय स्थापना के लगभग 11 साल बीतने के बाद भी उपेक्षित है. साल 2015 से स्कूल के छात्र बिहार बोर्ड (Bihar Board Result) के मैट्रिक और इंटर के परीक्षा में टॉपर बन रहे हैं लेकिन सरकार के द्वारा यह अभी तक उपेक्षित है.

 bihar board 10th result 2021

टॉपर्स की फैक्ट्री सिमुलतला स्कूल

यह स्कूल सीएम नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है. आधारभूत संरचना का अभाव या फिर शिक्षकों की कमी यहां तक की लगातार बजट में गिरावट होते रहा है. 9 अगस्त 2010 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका उदघाटन किया था. उदघाटन के साथ यह किराए की नौ कोठियों में चलना शुरू हुआ था. इस आवासीय विद्यालय का स्थाई भवन भी अभी तक नहीं बन सका है. लगभग 11 साल के बाद भी बिहार शैक्षणिक आधारभूत संरचना निगम के द्वारा बनाए गए प्रीफैब स्ट्रक्चर का ही एकेडमिक, डॉरमेट्री और हॉस्टल में छात्र रहते और पढ़ते हैं.

 

प्रीफैब स्ट्रक्चर से तीन बार क्लास रूम और हॉस्टल का जिसकी स्थिति भी खराब है साथ ही जमीन का अधिग्रहण का काम भी अधूरा है. जानकारी के अनुसार सिमुलतला आवासीय विद्यालय के लिए 56 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने का प्रस्ताव था जिसके बाद जमीन मालिकों के 26 एकड़ जमीन के लिए सहमति मिली जिसमें अभी तक 24 एकड़ की खरीदारी हुई है. बिहार के बजट में सिमुलतला का अलग से कोई प्रावधान नहीं है.

 

अनुदान के मद से सरकार इस पर खर्च करती है. शुरुआत में इस स्कूल को 9 करोड़ की राशि मिली थी. साल बीतने के साथ बजट कभी आगे नही बढ़ा, पीछे ही हुआ. 2020-21 वित्तीय वर्ष में इस स्कूल को 6 करोड़ मिला जिसमें 3 करोड़ रुपया स्कूल के खाते में 31 मार्च 2021 को आया. नेतरहाट स्कूल की कमी बिहार में नहीं हो, सरकार ने काम तो बेहतर किया लेकिन यहां शिक्षकों की परेशानी भी है. प्राचार्य और उप प्राचार्य को मिलाकर कुल 14 शिक्षक रेगुलर हैं.

 

तदर्थ शिक्षकों की संख्या 14 है. नियमित शिक्षकों की कमी से बच्चों को पढ़ने और शिक्षकों को पढ़ाने में परेशानी होती है. कई बार शिक्षकों को वेतन मिलने में देरी होती है, तो बच्चों से ली जाने वाली शुल्क से शिक्षकों का वेतन मिलता है. यहां हाई इनकम परिवार वाले बच्चों से फी लेने का प्रावधान है, जिनकी संख्या हर साल औसतन लगभग 10 फ़ीसदी रहती है. गर्मी के दिनों में प्रीफैब स्ट्रक्चर वाले क्लास रूम छात्रों को परेशान करते है तो बरसात में पानी टपकता है लेकिन इसी स्ट्रक्चर से बना छात्रावास जहां बंक बेड की व्यवस्था है, वहां कम स्पेस में लोगों को रहने को मजबूर है.

 

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को मुफ्त में किताब दिए जाने का प्रावधान है लेकिन पैसे के अभाव में हर वर्ष किताब की खरीदारी भी नहीं होती है ऐसी स्थिति में पुराने किताबों से ही बच्चे पढ़ाई करते हैं. शिक्षकों को मलाल है कि सरकार के द्वारा कभी भी इन लोगों को की हौसला अफजाई नहीं की गई. इनके मेहनत और लगन के लिए दो शब्द धन्यवाद के लिए भी नहीं बोला गया. बच्चों को टॉपर बच्चों को तो सम्मानित कर दिया जाता है लेकिन शिक्षकों को लोग भूल जाते हैं.

 

स्कूल के प्राचार्य डॉ राजीव रंजन ने बताया कि अनुदान मद से हर वित्तीय वर्ष में स्कूल को खर्च करने के लिए राशि मिलती है राशि देर से मिलने के कारण परेशानी होती है. स्कूल का अभी तक भवन नहीं बन सका जिसे कोई भी देख सकता है. प्रीफैब स्ट्रक्चर के माध्यम से क्लास रूम, डॉरमेट्री और हॉस्टल बनाए गए हैं. स्कूल के लिए 56 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना था, 24 एकड़ जमीन की खरीदारी हो चुकी है. भवन बनाने के लिए भी बिहार शैक्षणिक आधारभूत संरचना निगम निविदा निकाल चुकी है.

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