PATNA : मां पटन देवी के नाम पर पटना शहर का नामकरण हुआ है. कहते है कि इनकी महिमा का जितना बखान किया जाए वह कम है. मां पटन देवी पटना सहित पूरे बिहार की रक्षा करती है. यह 51 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ है. यहां प्रतिदिन हजारों लाखों श्रद्धालु मां का दर्शन करने पहुंचते हैं. दुर्गा पूजा की तो बात ही क्या है. इस दौरान मेला सा लग जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार यह मंदिर आदि काल से है. जानकारों की माने तो सम्राट अशोक के शासनकाल से पहले भी इस मंदिर का अस्तित्व मिलता है. इस मंदिर के पीछे बड़ा सा गड्ढा है जिसे पटन देवी खंदा कहते हैं इसी खंदा से निकाल कर देवी की तीनों मूर्तियों को स्थापित किया गया था.
मंदिर के पुजारी विजय शंकर गिरी बताते हैं कि मंदिर की हवन कुंड की ज्वाला शांत होते ही विभूति उसने ही समा जाती है. उनकी माने तो मंदिर परिसर में व्योमकेश भैरव, मां पार्वती, गणेश, राधाकृष्ण, शिव की भी यहां पर मूर्तियां है. पंडित जी बताते हैं कि यहां नवरात्रा के दौरान सप्तमी को महानिशा पूजा, अष्टमी को महागौरी और नवमी को देवी सिद्धात्रि की पूजा के बाद हवन और कुमारी पूजन में लाखों लोगों की भीड़ जुटती है. विजयदशमी के दिन अपराजिता पूजन शस्त्र पूजन और शांति पूजन होता है. देवी को प्रतिदिन कच्ची और रात में पक्की भोज्य सामग्री का भोग लगाया जाता है.
माता सती से जुड़ी पटनेश्वरी मंदिर की कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती अपने मायके में हो रहे यज्ञ में पति भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं मिलने के कारण उनका अपमान सहन नहीं कर सकी और यज्ञ के हवनकुंड में कूद पड़ी।
सती के जलते शरीर को लेकर भगवान शिव तांडव करते हुए आकाश मार्ग से चल पड़े। भगवान शंकर के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया जिसके बाद मां का शरीर अलग-अलग जगहों पर कट कर गिरा जो बाद में शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।।
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देवी भागवत के अनुसार, सती की दाहिनी जांघ यहां गिरी थी। पूरे देश में सती के 51 शक्तिपीठों में प्रमुख इस उपासना स्थल में माता की तीन स्वरूपों वाली प्रतिमाएं विराजित हैं। मंदिर में पटन देवी भी दो हैं, छोटी पटन देवी और बड़ी पटन देवी जिनके लिए अलग-अलग मंदिर हैं।