90 साल बाद…फिर जातियों को गिनेगा बिहार, जातीय जनगणना की पूरी तैयारी है, सर्वदलीय बैठक में सबकी सहमति से होगा इसके तरीके पर फैसला। बिहार में जातीय गणना का समर्थन ही विकल्प : केंद्र के इनकार के बावजूद बिहार 90 साल बाद एक बार फिर जातियों की गिनती करेगा। देश में अंतिम बार जातीय गणना 1931 में हुई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को कहा कि हमलोग बिहार में जातीय जनगणना कराना चाह रहे हैं। हमने बात कर ली है। उपमुख्यमंत्री को भी अपनी पार्टी (भाजपा) के लोगों से बात करने के लिए कहा है।
बाकी सब लोगों से बातचीत हो गई है। जब वे (उपमुख्यमंत्री) बातचीत कर लेंगे और इसके बारे में बताएंगे, उसके बाद ऑल पार्टी मीटिंग की जाएगी। जातीय जनगणना कैसे करेंगे, किस प्रकार से करेंगे, किस माध्यम से करेंगे, इस सब पर पूरी तैयारी करा रहे हैं। जब इस पर सबकी राय बन जाएगी तो सारी चीजों को मीटिंग में फाइनल करेंगे। सभी पार्टी की मीटिंग में एक राय होगी, उसी के आधार पर निर्णय लेकर सरकार उसका ऐलान करेगी। मुख्यमंत्री, ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम के बाद मीडिया से मुखातिब थे। उनसे जातीय जनगणना को लेकर सवाल पूछा गया था।
कोई मिस नहीं करेगा: सीएम बोले-इन प्रींसिपल, हम बहुत पहले से जातीय जनगणना को लेकर बार-बार कह रहे हैं। हम इसलिए ऑल पार्टी मीटिंग करना चाह रहे हैं कि इसके बारे में सबकी समझ बहुत साफ होनी चाहिए। हमलोग जातीय जनगणना के पक्ष में हैं। इससे सबको फायदा होगा। ये बहुत ठीक चीज है। हमलोग इसे ठीक ढंग से करवाएंगे, ताकि कोई मिस नहीं करे।
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इधर, जायसवाल बोले-केन्द्रीय नेतृत्व से विचार करेगी पार्टी
इस संबंध में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि पार्टी का कोई निर्णय विचार-विमर्श के बाद होता है। केन्द्रीय नेतृत्व से बात करके ही कोई निर्णय लिया जाएगा। डॉ. जायसवाल पिछले दिनों कहा था कि केन्द्र तकनीकी रूप से यह काम नहीं करवा सकता, लेकिन राज्य सरकारें स्वतंत्र हैं। यही नहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री व सांसद सुशील मोदी भी कह चुके हैं कि भाजपा जातीय जनगणना की विरोधी नहीं है। बाधा सिर्फ व्यावहारिक है। जनगणना की प्रक्रिया 2019 में ही शुरू हो चुकी है। कोरोना के कारण इसमें विलंब भी हुआ है। दो साल पहले प्रक्रिया शुरू होने के कारण अब इसमें नया फैक्टर जोड़ना संभव नहीं है।