बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की मुलाकात के बाद सियासत तेज हो गई है. दोनों नेताओं के साथ जेडीयू के सीनियर नेता वशिष्ठ नारायण सिंह भी मौजूद थे. वहीं, इस मुलाकात के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि सीएम नीतीश कुमार और मैं कभी भी अलग-अलग नहीं थे. हां, बस राजनीतिक रूप से जरूर अलग थे. इसके साथ उन्होंने कहा कि आगे क्या होगा, फिलहाल इस पर क्या बोलें?
यही नहीं, नीतीश और कुशवाहा की मुलाकात पर जेडीयू नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि दोनों की मुलाकात अच्छी रही. हालांकि कुशवाहा कभी भी हमसे दूर नहीं रहे हैं. हां, बीच में राजनीतिक दूरियां भले ही हो गई थीं. उम्मीद है कि उनके (कुशवाहा ) आने से जेडीयू को मज़बूती मिलेगी. इसके साथ उन्होंने कहा कि यह सब कब होगा इसके बारे में मुझे कुछ पता नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार और कुशवाहा का मिलन स्वाभाविक है.
बता दें कि हाल में ही जब 17वीं बिहार विधानसभा में पहले सत्र के अंतिम दिन (27 नवंबर) नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व एनडीए के विधायकों पर की गई अमर्यादित टिप्पणियों के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आक्रोशित हो उठे थे और पहली बार सदन में उन्हें काफी तल्ख अंदाज में देखा गया. उन्होंने तेजस्वी यादव के आचरण को अशोभनीय कहा था. इसी बात को लेकर उपेन्द्र कुशवाहा ने तेजस्वी के व्यवहार की आलोचना करते हुए सीएम नीतीश कुमार के साथ खड़े रहने का ऐलान किया था.

कुशवाहा ने तेजस्वी यादव के हमले के बाद सीएम नीतीश कुमार के साथ खड़े रहने का ऐलान किया था.
इसी घटनाक्रम के बाद सीएम नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात का आग्रह किया था. इसके बाद कुशवाहा ने सीएम आवास पर जाकर नीतीश से मुलाकात की थी. वहीं, एक बार फिर दोनों नेताओं के बीच मुलाकात ने बिहार की सियासत को तेज कर दिया है. जबकि राजनीतिक जानकार बता रहे हैं कि कुशवाहा और नीतीश कुमार की मुलाकात का परिणाम भी सामने आएगा और बिहार में जल्द ही नया राजनीतिक समीकरण देखने को मिल सकता है.
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विधान परिषद के बहाने बनेगी बात
दरअसल राज्य में लोकसभा, विधानसभा व राज्यसभा की सभी सीटें भर गई हैं. सिर्फ विधान परिषद की 18 सीटें खाली हैं, जिनमें 12 मनोनयन कोटे की और दो विधानसभा कोटे की सीटें हैं. चार स्थानीय प्राधिकार कोटे की सीटें हैं, जिनके लिए अगले साल चुनाव होगा. यह संभव है कि विधान परिषद के बहाने दोनों नेताओं के बीच फिर से बात बन सकती है. इसके अलावा लव-कुश समीकरण तो सीएम नीतीश कुमार की पहली पसंद है ही.
नीतीश-कुशवाहा मीटिंग से निकलेगी सियासी राह?
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार इस बार एनडीए में छोटे भाई की भूमिका में आ गए हैं और राजनीतिक रूप से कमजोर भी दिखते हैं. हालांकि नेतृत्व उन्हीं का है, पर विरोध का वातावरण यथावत है. वहीं, कुशवाहा केंद्र सरकार से बाहर निकलकर गलती कर चुके हैं और बिहार विधानसभा चुनाव में भी उनके हिस्से एक भी सीट नहीं आई है. जाहिर है वे भी राजनीतिक रूप से एक तरह से हाशिए पर हैं. ऐसे में सवाल यह है कि नीतीश और कुशवाहा की दोस्ती की दिशा क्या होगी?