न योजनाओं की कमी है और न ही राशि की। इसके बाद भी शहर विकास के हर मोर्चे पर विफल साबित हो रहा है। स्मार्ट सिटी, स्वच्छता सर्वेक्षण और रहने लायक शहरों की रैंकिंग में लगातार निराशाजनक प्रदर्शन रहा है। रहने लायक शहरों की रैंकिंग में एक बार फिर शहर अंतिम पायदान पर आया है। स्वच्छता सर्वेक्षण चल रहा है, इसका परिणाम भी सुखद होगा, इसकी उम्मीद शहरवासियों ने छोड़ दी है। कारण, केंद्र एवं राज्य सरकार से विकास के नाम पर मिली राशि नगर निगम, बिहार आधारभूत संरचना निगम एवं अन्य एजेंसियों के खाते की शोभा बढ़ा रही है।
सड़क निर्माण, जल निकासी, पेयजल आपूर्ति, जन सुविधाओं के विकास व स्मार्ट सिटी की योजनाएं जमीन पर उतरने की जगह फाइलों में सरक रही हैं।
इनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी जिन पर है उनकी कार्यप्रणाली की पोल रैंकिंग में शहर के निराशाजनक प्रदर्शन से खुल रही है।
शहर के विकास की सबसे बड़ी जिम्मेदारी नगर निगम पर है, लेकिन वाद-विवाद, राजनीतिक उठा-पटक व वर्चस्व की लड़ाई से वह बाहर नहीं निकल पा रहा है। इसके लिए सिर्फ नगर निगम एवं एजेंसियां जिम्मेदार नहीं, शहरवासी भी हंै। जब भी विकास का कोई काम शुरू होता है कोई न कोई बाधा जरूर खड़ी कर दी जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 182 करोड़ की जलनिकासी योजना है। जमीन के विवाद से पिछले एक साल से काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
ये बने शहर में नहीं रहने लायक के कारण
– हर साल बरसात में शहर टापू बन जाता है। तीन माह तक लोगों को जलजमाव की पीड़ा झेलनी पड़ती है।
– जाम की समस्या से शहरवासियों को रोज जूझना पड़ता है। इससे समय से लोग गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते।
– शहर की अधिकतर सड़कें जर्जर हैं। जो बनी हैं वह भी चलने लायक नहीं।
– शहरवासियों को गंदगी से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। गली-मुहल्लों में हमेशा कचरे का अंबार लगा रहता है।
– पांच लाख की आबादी वाले इस शहर में न ढंग का एक पार्क है और न ही ऑडिटोरियम।
– शहर में कहीं भी पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। लोग सड़क पर वाहन खड़े करते हैं।
– अतिक्रमण शहर के लिए नासूर बना है। सड़क से लेकर चौक-चौराहे तक फुटपाथी दुकानदारों के कब्जे में हैैं।
– शहर की आबादी को अब तक पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल सका।
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– मच्छरों व सड़क पर खुलेआम घूमने वाले पशुओं से लोग त्रस्त हैं।
– शहर में कचरा जमा करने के लिए डंपिंग स्थल का अभाव है। लोग बीच सड़क पर कचरा जमा करते हैं।
समय पर पूरी हो जातीं योजनाएं तो बदल जाती शहर की सूरत
स्मार्ट सिटी : वर्ष 2017 में शहर का चयन स्मार्ट सिटी के रूप में हुआ। 1580 करोड़ रुपये की योजनाओं को मंजूरी मिली। चार साल होने को हंै एक भी योजना अबतक जमीन पर दिखाई नहीं पड़ी। पिछले एक माह से काम में तेजी आई है। इसके लिए स्मार्ट सिटी कंपनी प्रा. लि. कठघरे में है।
जल निकासी योजना : शहर को जलजमाव की पीड़ा से निजात दिलाने के लिए अमृत योजना के तहत दो साल पहले 183.40 करोड़ की जलनिकासी योजना को स्वीकृति मिली। एक साल एजेंसी के चयन में लगा। छह माह पूर्व काम शुरू हुआ, लेकिन जमीनी विवाद में योजना का काम बाधित हो रहा है। योजना के कार्यान्वयन का जिम्मा बुडको को मिला है। उसकी कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैैं।
– शहरवासियों की प्यास बुझाने के लिए सरकार ने जलापूर्ति योजना मद में निगम को 42 करोड़, जलमीनारों के जीर्णोद्धार के लिए पांच करोड़ व पंप हाउसों के निर्माण के लिए छह करोड़ रुपये दिए हैं, लेकिन एक भी योजना दो साल में पूरी नहीं हो पाई है।
– शहर की चार प्रमुख सड़कों के निर्माण के लिए सरकार ने पथ निर्माण विभाग को दो साल पूर्व 75 करोड़ से अधिक की राशि दी। योजना टेंडर की प्रक्रिया में फंसी रही और शहरवासी जर्जर सड़क पर हिचकोल खाते रहे। अब जाकर तीन में से एक सड़क का निर्माण कार्य शुरू हुआ है।
– मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के तहत शहर के चार पोखरों के जीर्णोद्धार के लिए सरकार ने बुडको को पांच करोड़ रुपये दिए, लेकिन दो साल में मात्र एक पोखर के जीर्णोद्वार का आधा-अधूरा काम हुआ।
– शहर में सामुदायिक एवं शौचालय निर्माण की योजना तीन सालों से फंसी है। अभी तक काम नहीं हुआ।
– ऐसी दर्जनों योजनाएं हंै जो सालों से फाइलों में अटकी पड़ी हैं, उसका काम नहीं हो रहा।
पूर्व नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने कहा कि शहर के विकास के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार से करोड़ों रुपये की योजनाएं दीं। समय पर योजनाओं का कार्यान्वयन नहीं हो पाया। मैने जो प्रयास किया वह अब जमीन पर उतर रहा है। नगर विधायक विजेंद्र चौधरी ने कहा कि विधायक बनने के साथ ही शहर की समस्याओं को दूर करने एवं विकास योजनाओं के कार्यान्वयन को पूरी ताकत लगा दी है। जल्द ही बेहतर परिणाम दिखेंगे। महापौर सुरेश कुमार का इस बारे में कहना है कि महापौर बनने के बाद जितनी योजनाएं बनाईं उसका कार्यान्वयन नहीं हुआ। निगम के अधिकारियों ने योजनाओं के कार्यान्वयन में लापरवाही बरती। इससे शहर को नुकसान हो रहा है। उपमहापौर मानमर्दन शुक्ला का मानना है कि विकास की अधिकतर योजनाओं का समय पर कार्यान्वयन नहीं हुआ। जिन लोगों को कार्य को अंजाम देने की जिम्मेदारी दी गई थी उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। योजनाओं के नियंत्रण एवं कार्यान्वयन के लिए तंत्र की कमी दिखी।