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60 दिन के इलाज पर मुजफ्फरपुर के अस्पतालों का ‘ रोग ‘ पड़ा भारी, हालत सुन आप भी रह जाएंगे हैरान

मुजफ्फरपुर, स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मिशन 60 की डेडलाइन रविवार को समाप्त हो गई। सात सितंबर से छह नवंबर तक का समय केवल रंग रोगन व डिस्प्ले बोर्ड लगाने में ही बीत गया। सदर अस्पताल में इलाज की व्यवस्था पुराने ढर्रे पर ही चलती नजर आई। चिकित्सक व कर्मियों की कार्यशैली में बदलाव नहीं हुआ। दवा की उपलब्धता भी शत प्रतिशत नहीं हो पाई। एंबुलेंस के अभाव में आटो से ही मरीज यहां आकर इलाज करा रहे हैं। सबसे बदतर हालत भर्ती मरीजों की है। एक सौ बेड के जेनरल वार्ड में रविवार को केवल नौ मरीज ही भर्ती थे। पांच बेड के आइसीयू में केवल दो और एसएनसीयू में केवल छह बच्चे का इलाज चल रहा था। मातृ-शिशु सदन की हालत यह रही कि वहां पर एक सौ बेड, बाकी केवल 17 प्रसूताएं भर्ती रहीं। परिसर में गंदगी व जलजमाव से मुक्ति के इंतजाम मुकम्मल नहीं होने से इमरजेंसी के बाहर अभी भी जलजमाव है। शौचालय भी बद से बदतर हालत में है। स्वजन का इलाज करा रहे बोचहां के रमेश कुमार ने कहा कि जनरल वार्ड से लेकर ओपीडी तक का शौचालय पूरा जाम है। पार्किंग व वाहन स्टैंड भी व्यवस्थित नहीं हो पाया।’

मिशन 60 के टास्क, इसमें दो काम ही हुए

पहला टास्क-जिला सदर एवं बड़े अस्पतालों में 24 घंटे उचित स्टाफ के साथ हेल्प डेस्क और शिकायत डेस्क स्थापित करना है।परिणाम-यह व्यवस्था चालू नहीं। एक बोर्ड लगा, लेकिन वहां पर कोई कर्मी नहीं।

दूसरा टास्क-मरीज़ों के भर्ती होने से लेकर, एंबुलेंस, शव वाहन, रेफ़रल की सहज व सरल सुविधा प्रदान करना

परिणाम- एंबुलेंस कर्मी हड़ताल पर, इसे तोड़ने की पहल नहीं हो रही है। मरीज अपनी सुविधा से आ रहे हैं। शव वाहन की मरम्मत नहीं। इसके चालक को दूसरे वाहन पर लगाया गया है।

तीसरा टास्क– जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को भी सुगम बनाने के साथ हाथों-हाथ देना थापरिणाम-यह 48 घंटे के अंदर मिल जा रहा है। प्रसव के बाद हाथों-हाथ देने की प्रक्रिया का पालन हो रहा है।

चौथा टास्क

– जिला अस्पतालों को रेफ़रल पालिसी की मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन करने। बिना इलाज रेफर संस्कृति पर लगे रोकपरिणाम- अभी तक पर्ण रूप से रोस्टर का पालन नहीं। इमरजेंसी के बाहर डिस्प्ले नहीं। परिसर में डिस्प्ले हो रहा लेकिन, वह इतना ऊंचा है कि देखने में परेशानी होती है।

पांचवा टास्क –सभी आवश्यक दवाओं की उपलब्धता व मेडिकल उपकरणों को चालू अवस्था में रखने, ताकि इलाज के बिना मरीज वापस नहीं लौट पाएं

परिणाम – हालत ऐसी की दवा की उपलब्धता पूरी नहीं, आउटडोर में 77 के बदले 33 तरह की मिल रही दवाएं। इनडोर में भी नहीं मिल रही पूरी दवा। आइसीयू में कई मशीन खराब। पुराने ओटी टेबल पर हो रहा इलाज।

छठा टास्क

— रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया में तेज़ी लाई जाए। जिला से लेकर राज्य स्वास्थ्य समिति मानव बल की बहाली को लेकर त्वरित काम हो

परिणाम- मानव बल जितना सदर अस्पताल में है, उसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बायोमीट्रिक मशीन से हाजरी बननी थी, वह नहीं बन रही। सदर अस्पताल में अधीक्षक का पद खाली। अस्पताल प्रबंधक की कार्यशैली पर जिलाधिकारी ने सवाल उठाते हुए सख्त आदेश दिया था। उसका पालन नहीं हो पाया। अभी यहां पर ड्रेसर कंपाउंडर का पद रिक्त। मिलावटी खाद्य पदार्थ जांच के लिए मोबाइल वाहन आया। उसका परिचालन नहीं हो रहा। करोड़ों का वाहन धूल फांक रहा है।

सात सितंबर से चल रहा मिशन 60

स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने सात सितंबर को अपने हेल्थ मिशन की शुरुआत की। पीएमसीएच के निरीक्षण के बाद सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला सदर अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में स्वास्थ्य सेवा में सुधार का 60 दिनों का लक्ष्य दिया। यह सात सितंबर से शुरू होकर छह नवंबर को खत्म हो गया। सिविल सर्जन डा.यूसी शर्मा ने कहा कि मिशन 60 की समीक्षा दो दिन के अंदर करते हुए मुख्यालय को रिपोर्ट दी जाएगी। अभी बहुत कुछ बदलाव हुआ है। जो काम अधूरा है, उसे जल्द पूरा किया जाएगा।

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