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शहीद दिवस पर भगतसिंह-सुखदेव-राजगुरु को सलाम, 23 मार्च 1931 न भूले है….न भूलेंगे….

“23 मार्च 1931 की दोपहरी छाई ही थी. वह दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से अंतिम मुलाकात का दिन था. राजगुरु की माँ और बहन महाराष्ट्र से लाहौर आई थीं और कुछ दिन उसी परिवार में रही थी. इस दिन तीनों परिवारों के सदस्य अंतिम मुलाकात के लिए जेल के द्वार पर पहुंचे. वहाँ पता चला के अंग्रेज़ सरकार ने सिर्फ माता पिता को ही भगत सिंह को मिलने की अनुमति दी है, दादा दादी और चाचियों को नहीं. इसके विरोध में भगत सिंह के माता पिता ने मुलाकात करने से इनकार कर दिया. राजगुरु की माँ, बहन और सुखदेव की माँ को मिलने की स्वीकृति प्राप्त थी, पर इस हालात में इन्होंने अपने को भगत सिंह के माता पिता के साथ जोड़ दिया था और अपने बेटों से अंतिम मुलाकात करने से इनकार कर दिया था, जिसका अर्थ था अपने लाडले बेटों के अंतिम दर्शनों से वंचित रहना.

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हमारा इतिहास वीरों की बांकपन से भरा पड़ा है, पर राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की माताओं का यह बांकपन क्या निराला नहीं है ?”- वीरेंद्र संधू जी, “युगदृष्टा भगत सिंह – पुस्तक की लेखिका. 23 मार्च 1931 न भूले है….न भूलेंगे….सत्ता के दलालों ने मिलकर ऐसा चक्रव्युह रचाया था, वतन के रखवालों को शहादत की सुली पर चढ़ाया था।इंक़लाब जिंदाबाद..भारत माता की जय…जय हिंद…वंदे मातरम्…इन्हीं नारों के साथ भारत माता के तीनों सपूतों के पूज्य चरणों में सादर नमन वंदन श्रद्धांजलि..भगतसिंह.. सुखदेव.. राजगुरु..अमर रहे..अमर रहे..

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