मुजफ्फरपुर जिले में 31 जनवरी से पल्स पालियो अभियान चलेगा। अभियान पांच दिवसीय होगा। चार फरवरी तक चलने वाले इस अभियान के दौरान जिले के 7.92 लाख बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाएगी। स्वास्थ्य विभाग की टीम इस दौरान हजारों घरों का भ्रमण करेगी।
क्या है पोलियो की बीमारी?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पोलियो को एक तेजी से फैलने वाली वायरल बीमारी के तौर पर परिभाषित करता है जो बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।इसका वायरस संक्रमित पानी, खाने आदि माध्यमों से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है।
इसके बाद यह नर्वस सिस्टम का निशाना बनाता है, जिससे पीड़ित को लकवा हो जाता है। सबसे खतरनाक बात यह है कि पोलियो का कोई इलाज नहीं है। इससे केवल प्रतिरोधक दवा से बचा जा सकता है।
1981 में सामने आये थे 38,090 मामले
साल 1981 में भारत में पोलियो के 38,090 मामले सामने आये थे। 1987 में इनकी संख्या कुछ कम होकर 28,264 रही।
धीरे-धीरे पल्स पोलियो कार्यक्रम का असर दिखने लगा और 2009 में इनकी संख्या 741 रह गई। पोलियो के मामले कम जरूर हुए, लेकिन उस साल यह संख्या दुनियाभर में सबसे ज्यादा थी।
अगले कुछ सालों में पल्स पोलियो कार्यक्रम की सफलता सामने आई और 2014 में भारत पूरी तरह पोलियो से मुक्त देश बन गया।
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भारत का पल्स पोलियो कार्यक्रम क्या है?
वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (WHA) ने 1988 में दुनिया को पोलियो मुक्त बनाने के लिए एक प्रस्ताव पास किया था।
1995 में भारत ने पोलियो के उन्मूलन के लिए पल्स पोलियो कार्यक्रम शुरू किया।इसके तहत 0-5 साल तक की उम्र की बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई जाती है।
भारत में पोलियो का आखिरी मामला जनवरी, 2011 में सामने आया था। फरवरी, 2012 में WHO ने भारत को पोलियो वायरस से प्रभावित देशों की सूची से हटा दिया।
कितना बड़ा था यह कार्यक्रम?
24 लाख पोलियो कार्यकर्ता, 1.5 लाख कर्मचारी, हर साल 1,000 करोड़ रुपये का बजट, हर साल 6-8 बार पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम और हर कार्यक्रम में लगभग 17 करोड़ बच्चों को दवा पिलाना। ये आंकड़े इस कार्यक्रम की विशालता दर्शाते हैं।
हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने पोलियो के मामलों से निपटने के लिए रैपिड रिस्पॉन्स टीमों का गठन किया था।यह मेहनत रंग लाई और 2014 में WHO ने भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया।