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भाई-बहन के अटूट प्रेम के लिए जाना जाता है बिहार का ये मंदिर, पढ़िए मुगल कालिन कहानी

बिहार के सीवान जिले में स्थित भाई-बहन के प्रेम को समर्पित यह ऐतिहासिक मंदिर ‘भइया-बहनी’ मंदिर के नाम से जाना जाता है। मुगल शासनकाल में बना भाई-बहन के अटूट प्रेम व बलिदान के तौर पर है। यह बिहार का एकमात्र मंदिर है, जो भाई-बहन के रोचक कहानी (Raksha Bandhan 2022 Katha) पर आधारित है।

रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम का प्रतीक यह त्योहार हर साल श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस साल 11 और 12 अगस्त दोनों ही दिन पूर्णिमा तिथि रहने के कारण आप दो दिन राखी का त्योहार मनाया जाएगा।

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रक्षाबंधन केवल राखी बांधने तक ही सीमित नहीं है बल्कि, यह बहन भाई की भावनाओं का पर्व भी है। आमतौर पर इस पर्व को भाई-बहन से जोड़कर ही देखा जाता है।

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लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी बिहार में एक ऐसा मंदिर हैं जिसे भाई-बहन के अटूट प्रेम के लिए जाना जाता है। तो आइए जानते हैं आखिर यह मंदिर भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक कैसे बना।

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There is a temple in Bihar which is known for the unbreakable love of brother and sister.
बिहार में एक ऐसा मंदिर हैं जिसे भाई-बहन के अटूट प्रेम के लिए जाना जाता है

भाई-बहन के अटूट प्रेम व बलिदान की कहानी

दरअसल, यह भाई-बहन के प्रेम को समर्पित यह मंदिर बिहार के सीवान जिले में स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर ‘भइया-बहनी’ मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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Historical Bhaiya-Bahni Temple
ऐतिहासिक भइया-बहनी मंदिर

मुगल शासनकाल में बना भाई-बहन के अटूट प्रेम व बलिदान के तौर पर है यह बिहार का एकमात्र मंदिर है, जो भाई-बहन के रोचक कहानी पर आधारित है। यहां बरगद का एक विशालकाय वृक्ष है जिसकी इतिहास के पन्नों में अलग ही एक कहानी है।

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एक दूसरे से लिपटे हुए हैं दो बरगद के पेड़

महाराजगंज अनुमडंल मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूरी पर भीखाबांध में दो वट वृक्ष है। चार बीघा में फैले हुए दोनों वट वृक्ष ऐसे हैं, जैसे एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे की रक्षा कर रहे हैं।

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Two banyan trees are wrapped around each other
एक दूसरे से लिपटे हुए हैं दो बरगद के पेड़

रक्षाबंधन के दिन यहां भाई-बहनों का जमावड़ा लगता है। सावन की पूर्णिमा के एक दिन पहले इस मंदिर में पूजा-पाठ की जाती है।

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धरती में समा गए थे भाई-बहन

स्थानीय लोगों की मानें तो सन 1707 ई. से पूर्व यानि आज से तीन सौ से भी ज्यादा साल पहले भारत में मुगलों का शासन था। एक भाई रक्षा बंधन से दो दिन पूर्व अपनी बहन को उसके ससुराल से विदा कराकर डोली से घर ले जा रहा था।

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इसी दौरन दरौंदा थाना क्षेत्र के रामगढ़ा पंचायत के भीखाबांध गांव के समीप मुगल सैनिकों की नजर उन भाई बहनों की डोली पर पड़ी। मुगल सिपाहियों ने डोली को रोककर भाई सहित बहन को बंदी बना लिए।

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On the day of Rakshabandhan, there is a gathering of brothers and sisters.
रक्षाबंधन के दिन यहां भाई-बहनों का लगता है जमावड़ा

कहा जाता है कि सैनिकों ने बहन के साथ दुर्व्यवहार किया और भाई ने बहन की रक्षा करने की भरसक कोशिश की। लेकिन मुगल सिपाहियों के सामने उनकी एक न चली।

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असहाय महसूस होने पर भाई-बहन ने मिलकर भगवान से अपनी इज्जत बचाने की प्रार्थना की। तभी धरती फटी और उसी में दोने भाई-बहन समा गए। वहीं, डोली को ले जा रहे कुम्हारों ने भी बगल में स्थित एक कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी।

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रक्षा-बंधन के दिन यहां पेड़ में भी बांधी जाती है राखी

लोगों ने बताया कि भाई-बहन के घरती में सामने के बाद कुछ ही दिनों में वहां एक विशाल बरगद का पेड़ उग गया। कालांतर में यह पेड़ कई बीघा में फैल गए।

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ये दोनों पेड़ आज भी देखने पर ऐसा प्रतित होता है कि मानों ये दोनों भाई-बहन एक दूसरे की रक्षा कर रहे हैं। धीरे-धीरे लोग इसी पेड़ की पूजा-अर्चना करने लगे।

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Rakhi is also tied in the tree on the day of Raksha Bandhan.
रक्षा-बंधन के दिन यहां पेड़ में भी बांधी जाती है राखी

ग्रामीणों के सहयोग से यहाँ भाई बहन के पिंड के रूप में मंदिर का निर्माण किया गया। भाई-बहन के इस बलिदान स्‍थल के प्रति लोगों में बड़ा ही असीम आस्था जुड़ा हुआ है।

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रक्षा-बंधन के दिन यहां पेड़ में भी राखी बांधी जाती है और भाई-बहन की बनी स्मृति पर राखी चढ़ा भाइयों की कलाई में बांधते हैं। ये परंपरा आज भी कायम है।

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