केंद्र सरकार के प्रस्ताव विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन को लेकर बिहार की बिजली कंपनियों में कार्यरत कर्मी पसोपेश में हैं। इस बिल को लाने का सरकार का उद्देश्य बिजली आपूर्ति तथा वितरण नेटवर्क के बिजनस को अलग-अलग कर बिजली कंपनियों की मोनोपोली को समाप्त करना और मार्केट में प्रतियोगिता बढ़ाना है। मगर, कर्मी आशंकित हैं कि बिजली कंपनियों का प्राइवेटाइजेशन होने से उनकी नौकरी पर संकट आ जाएगा।
अधिकारियों की मानें तो नया अधिनियम लागू होने पर घरों में वही लगा मीटर रहेगा, पर बिजली सप्लाई के लिए मैदान में कई प्राइवेट कंपनियां उपलब्ध रहेंगी। मोबाइल नेटवर्क की तरह ही उपभोक्ता मनमुताबिक कंपनी की बिजली पोर्ट करवा सकेंगे। प्राइवेट कंपनियां सरकारी ट्रांसमिशन तथा जेनरेशन कंपनी का इंफ्रास्ट्रक्चर उपयोग करेंगी और इसके बदले सरकारी कंपनियों का तार उपयोग करने के बदले उन्हें व्हीलिंग चार्जेज देंगी।
बिहार-झारखंड राज्य विद्युत परिषद फिल्ड कामगार यूनियन के महासचिव अमरेंद्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि विद्युत अधिनियम में संशोधन का विद्युत कर्मियों के साथ कंज्यूमर्स पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बिल वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन करने की बात कहीं। बिल के विरोध में 13 सितंबर को विराट कन्वेंशन का आयोजन होने जा रहा है।
पार्लियामेंट में पेश करने के बाद इस बिल बिजली मामलों की संसदीय कमिटी को स्क्रूटनी के लिए दिया गया है। इस संसदीय कमिटी के अध्यक्ष बिहार के मुंगेर से सांसद सह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह हैं। हालांकि 15 सदस्यीय कमिटी में भाजपा सांसदों की संख्या अधिक होने से इसके जल्द ही पास होने की संभावना है।
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बता दें कि नई व्यवस्था के लागू होने से प्रदेश सरकार की भूमिका धीरे-धीरे खत्म होगी। प्राइवेट कंपनियां ही ट्रांसमिशन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन का काम करेगी। प्रदेश की बिजली आपूर्ति कंपनियों के पास पहले से 33 और 11 केवीए सब स्टेशन की जिम्मेवारी रहेगी। मगर, आगे चल कर यह सब स्टेशन तथा लाइन भी ट्रांसमिशन कंपनी में मिल जाएगी। बिजली वितरण प्रणाली का प्राइवेटाइजेशन होने से वर्तमान काम कर रहे बिजली कर्मियों के लिए स्थाई नौकरी का संकट होगा जिससे छंटनी की आशंका रहेगी।