लॉकडाउन के दौरान जब किसान अजय मेहता की नौकरी नहीं रही तो उनको पर्ल फार्मिंग का ख्याल आया। यूट्यूब पर देखकर उन्होंने कई चीजें सीखी।
बिहार के गया जिले के मानपुर प्रखंड के बरेव गांव के रहने वाले अजय मेहता पहले मुखिया थे। लॉकडाउन में आर्थिक संकट उत्पन्न हुई। तभी सोशल मीडिया यूट्यूब पर उन्होंने मोती की खेती (Pearl Farming) की जानकारी की एक वीडियो देखी।
इसमें बताया गया कि कैसे कोई भी किसान इससे आसान तरीके से खेती करके लाखों रुपये की आमदनी कर सकता है। इसके बाद जानकारी हासिल करने के लिए वह जिला मत्स्य विभाग, कृषि विभाग सहित कई कार्यालयों में पहुंचे, लेकिन उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली। इसके बाद यूट्यूब पर ही झारखंड के जामताड़ा गांव में हो रही मोती की खेती की जानकारी मिली।
कैसे हुई शुरुआत?
अजय मेहता का किसी तरह इससे जुड़े एक व्यक्ति से संपर्क हुआ। इसके बाद आज वह मोती की खेती करने में जुटे हैं। इस दौरान उन्होंने उड़ीसा के एक प्रशिक्षण संस्थान से इसकी जानकारी ली।
अजय मेहता बताते हैं कि पिछले दो महीने से मोती की खेती शुरू की है। इसके पहले वे मछली पालन करते थे। कहा कि उसी तालाब में मोती की खेती की जा रही है। कुछ दिनों के बाद सभी शिप को निकालकर ऑपरेशन कर उसमें सांचा डाला जाएगा।
करीब 12 से 14 महीने में मोती तैयार हो जाएगा। उन्होंने कहा कि एक लाख रुपए की लागत से 2000 शिप को रखा गया है। इसमें से करीब चार लाख रुपये की मोती तैयार होगी।
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युवाओं को पर्ल फार्मिंग समेत कई मुनाफे की खेती करने का संदेश
उन्होंने कहा कि इस मॉड्यूलर मोती की मांग भारत के साथ-साथ विदेशों में बहुत ज्यादा है। उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि अनुबंध की नौकरी करने से अच्छा मुनाफा मोती की खेती, मछली पालन, बकरी पालन आदि क्षेत्रों में किया जा सकता है।
वहीं जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो ने बताया कि मोती की खेती को पर्ल फार्मिंग कहते हैं। इस फार्मिंग के लिए बिहार में अभी कोई योजना नहीं है और न ही कोई अनुदान दी गई है।
हालांकि गया जिले में कुछ किसानों के द्वारा ही मोती की खेती की जा रही है। इसकी जानकारी मिली है। अभी किसान प्रशिक्षण लेकर शुरुआती दौर में पर्ल फार्मिंग कर रहे।