---Advertisement---

बिहार भाजपा को दशहरा बाद मिल सकता है नया अध्यक्ष, रेस में शामिल हैं ये छह नाम

बिहार में आठ दलों वाले महागठबंधन को टक्कर देने के लिए भाजपा नए सिरे से कमर कस रही है। इस पहल में पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कार्यकाल पूरा कर चुके प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल की जगह नए अध्यक्ष को कमान सौंपने की है। दशहरा के बाद इसकी घोषणा हो सकती है।

अति पिछड़ी और दलित समुदाय के नेताओं टिकी नजर

पार्टी के रणनीतिकार राजद प्रमुख लालू यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई जोड़ी से मुकाबला करने वाले कुशल नेता की तलाश में जुटे हैं। प्रयास है कि अनुभवी के साथ सर्वस्पर्शी, वाकपटु, तेजतर्रार और युवा चेहरे को आगे किया जाए। इससे पहले विधानसभा में विजय सिन्हा और विधान परिषद में सम्राट चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाकर भाजपा बड़ा संदेश दे चुकी है। विजय सिन्हा सवर्ण, जबकि सम्राट चौधरी पिछड़ा वर्ग के हैं। इसके बाद अब भाजपा की नजर प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आधार मतदाता वाले अति पिछड़ी और दलित समुदाय के नेताओं पर टिकी है। हालांकि, चयन के दौर में कुछ पिछ़डे वर्ग के नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम चर्चा में हैं।

संभावित दावेदार और दावेदारी का आधार 

प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पार्टी अति पिछड़ा वर्ग के जुझारू नेता पर दांव लगा सकती है। इसमें सबसे पहला नाम पार्टी के प्रदेश महामंत्री संजीव चौरसिया का है। पटना में दीघा से विधायक संजीव चौरसिया राज्यपाल गंगा प्रसाद के पुत्र हैं। वे उत्तर प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी भी हैं। इसी वर्ग से आने वाले प्रदेश उपाध्यक्ष व विधान पार्षद राजेंद्र गुप्ता भी इस दौड़ में शामिल बताए जा रहे। अति पिछड़ा समाज से ही आने वाले मुजफ्फरपुर व अररिया के सांसद क्रमश: अजय निषाद और प्रदीप सिंह का नाम भी चर्चा में हैं। सीमांचल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जनभावना रैली के बाद प्रदीप सिंह चर्चा में आए हैं। पूर्व मंत्री जनक राम और संजय पासवान का नाम भी सुर्खियों में है। दोनों दलित समुदाय से आते हैं।

अवधि विस्तार मिला तो बनेगा दूसरा रिकार्ड 

संजय जायसवाल को अगर कार्यकाल विस्तार मिलता है तो दोबारा अध्यक्ष बनने वाले वे दूसरे व्यक्ति होंगे। बिहार भाजपा के इतिहास में बकायदा चुनाव जीत कर दो बार प्रदेश अध्यक्ष बनने का रिकार्ड नंदकिशोर यादव के नाम है। नंदकिशोर यादव पहली बार वर्ष 1998 में एकीकृत बिहार के प्रदेश अध्यक्ष बने थे। उसके दो वर्ष बाद बिहार और झारखंड का बंटवारा हो गया। 2000 में भाजपा ने अपने संविधान में संशोधन किया। तब दूसरी बार नंदकिशोर यादव को तीन वर्ष के लिए अध्यक्ष बनाया गया था। आगे चलकर धीरे-धीरे भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की परंपरा ही खत्म हो गई।

---Advertisement---

LATEST Post