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बिहार का देसी गरबा है झिझिया नृत्य, मिथिला की महिलाएं इस तरह से करती है अनोखा नृत्य

तेजी से बदल रहे इस परिवेश में बिहार के कई लोक नृत्य लगभग विलुप्त हो चुके हैं। नवरात्रि पर मिथिलांचल के कोने-कोने में होने वाले पारंपरिक लोक-नृत्य ‘झिझिया’ भी लगभग विलुप्त ही हो चुकी है। इस लोक नृत्य का जगह अब गरबा और डांडिया ने ले ली है।

हमें अपनी संस्कृति और लोक परंपराओं को जीवित रखना है तो उसे सिर्फ दिल में सहेजने से काम नहीं चलेगा। उसे जुबां पर लाने की जरूरत है।

अभी नवरात्र चल रहा है और तेजी से बदल रहे इस परिवेश में बिहार के कई लोक नृत्य लगभग विलुप्त हो चुके हैं। नवरात्रि पर मिथिला के कोने-कोने में होने वाले पारंपरिक लोक-नृत्य ‘झिझिया’ भी लगभग विलुप्त ही हो चुकी है। इस लोक नृत्य का जगह अब गरबा और डांडिया ने ले ली है।

उपेक्षा का शिकार झिझिया विलुप्त होने के कगार पर

आपको बता दें कि पहले मिथिला के कोने-कोने में झिझिया नृत्य का आयोजन किया जाता था। पौराणिक काल से नवरात्र के समय किया जाने वाला यह नृत्य कला अब उपेक्षा का शिकार हो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।

Jhijhiya, a victim of neglect, on the verge of extinction
उपेक्षा का शिकार झिझिया विलुप्त होने के कगार पर

पहले हर गांव से झिझिया नृत्यकर्ता की टोली नवरात्रि के दौरान निकाली जाती थी। अब तो कहीं-कहीं ही इस नृत्य का अस्तित्व बचा हुआ है। इस लोक नृत्य के विलुप्त होने का एक कारण प्रशासनिक उदासीनता भी है।

मिथिला का प्रमुख लोक नृत्य है झिझिया

झिझिया मिथिला का एक प्रमुख लोक नृत्य है। दुर्गा पूजा के मौके पर इस नृत्य में लड़कियां बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इस नृत्य में कुंवारी लड़कियां और महिलाएं अपने सिर पर छिद्र वाला घड़ा में जलते दीये रखकर नाचती हैं।

इस नृत्य का आयोजन शारदीय नवरात्र में किया जाता है। महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ गोल घेरा बनाकर गीत गाते हुए नृत्य करती हैं। घेरे के बीच एक मुख्य नर्तकी रहती हैं।

Jhijhiya is the main folk dance of Mithila.
मिथिला का प्रमुख लोक नृत्य है झिझिया

मुख्य नर्तकी सहित सभी नृत्य करने वाली महिलाओं के सिर पर सैकड़ों छिद्रवाले घड़े होते हैं, जिनके भीतर दीप जलता रहता है। घड़े के ऊपर ढक्कन पर भी एक दीप जलता रहता है।

इस नृत्य में सभी एक साथ ताली वादन तथा पग-चालन व थिरकने से जो समा बंधता है, वह अत्यंत ही आकर्षक होता है। सिर पर रखे दीप युक्त घड़े का बिना हाथ का सहारा लिए महिलाएं एक-दूसरे से सामंजस्य स्थापित कर नृत्य का प्रदर्शन करती हैं।

समाज में सद्भावना एवं सद्विचार की प्रार्थना करती है महिलाएं

इस लोक नृत्य के जरिये महिलाएं अपनी आराध्या से समाज में व्याप्त कलुषित मानसिकता की शिकायत करती है। वे उनसे जल्द से जल्द दुर्विचार को समाप्त कर समाज में सद्भावना एवं सद्विचार लाने की प्रार्थना करती है।

 

गीतों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुविचारों को भिन्न-भिन्न नाम देकर उसे समाप्त करने की प्रार्थना करती है। शारदीय नवरात्रा में कलश स्थापना के साथ शुरु होने वाली यह परम्परा विजय दशमी को मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ ही विसर्जित होती है।

पहचान खोती जा रही नृत्य शैली झिझिया

गौरतलब है कि समय के साथ मिथिलांचल में यह नृत्य शैली भी अपनी पहचान खोती जा रही है। बहुत कम ही लोग जानते हैं कि डांडिया और गरबे की तरह ही इस नृत्य शैली का आयोजन भी नवरात्र में ही किया जाता है और इस नृत्य शैली का अपना पौराणिक महत्व भी है। युवा पीढ़ी इस शब्द से तो परिचित है, परन्तु झिझिया नृत्य क्या होता है, उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।

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