दलित माने भीख मांगना, जी हुजूरी करना, गरीबी में रहना, भूखमरी देखना. नाह..! दलित माने रामविलास, रामविलास पासवान। बिहार जैसे पिछड़े राज्य में आर्थिक तंगी और गैर राजनैतिक पृष्ठिभूमि से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति का हीरो बनने वाला दलितों का लड़का.
उन्हें परिवारवाद की बेड़ियों ने बर्बाद भी किया और मजबूत भी। इसको जस्टिफाई नहीं करूंगा.! आप खुद समझिए… 2019 लोकसभा चुनाव में लोजपा को छे सीटें दी गई, तीन पर परिवार के सदस्य लड़े। पशुपति पारस, चिराग और रामचन्द्र पासवान। तीनों जीत के गए, रामविलास पासवान को राज्यसभा भेजा गया।
तब संसद में कोई सबसे बड़ा परिवार था तो रामविलास पासवान का था। अपने आखिरी समय में चिराग को जिम्मेदारी सौंप गए, लोजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। भतीजा प्रिंस बिहार लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए।
ज्यादा नहीं सोचना है… क्योंकि लोजपा किसी विचारधारा की पार्टी नहीं है। केवल जात की पार्टी है, परिवार की पार्टी है। रामविलास पासवान आजीवन परिवार प्रेम में उलझे रहे, किसी दूसरे पर भरोसा नहीं किया, ना ही किसी को हावी होने दिया और शायद इसीलिए कभी इस आलोचना से खुद को मुक्त नहीं कर पाए।
ख़ैर, जिस देश में राजपूत का बेटा जन्म से क्षत्रीय कहलाए, ब्राह्मण का बेटा पंडित बनें और डोम का बेटा सूअर चराए… उस देश के लिए सत्ता और राजनीति में परिवारवाद कैसे महत्वपूर्ण हो सकता है।
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Input: Daily Bihar