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कैंसर ने पिता को छीना, ट्यूशन देकर पढ़ाई की, ऐसे DM बने जिनकी सादगी ने जीता सबका दिल

एक सच्चा जिलाधिकारी अपने आप को जनता का सेवक कहता है. ऐसे ही एक जनता के सेवक की सादगी इन दिनों सोशल पर चर्चा का विषय बनी हुई है. एक आईएएस अधिकारी की इतनी विनम्रता और सादगी ने लोगों का दिल छू लिया है. आप भी जब इस आईएएस के कारनामे के बारे में जानेंगे तो मन ही मन कह उठेंगे कि ‘अधिकारी हो तो ऐसा.’

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डीएम बने सादगी की मिसाल

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अमूमन ऐसा देखा जाता है कि अधिकारियों के तबादले की खबर आते ही जोर शोर से उनके फेयरवेल पार्टी की जाती है. इसके साथ ही उन्हें ऐसी विदाई दी जाती है जिसे कि वह कभी ना भूल सकें. लेकिन इस आईएएस ने ऐसे किसी भी चलन को नहीं दोहराया और तबादले की चिट्ठी लेकर बड़े ही साधारण तरीके से वहां से चल पड़ा.

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अपनी सादगी का ये प्रदर्शन करने वाले आईएएस अधिकारी हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले के नालंदा के 37वें डीएम रह चुके योगेंद्र सिंह. योगेंद्र के ट्रांसफर की खबर आने के बाद जब वह अपने कार्यस्थल से विदा हुए तो उनकी सादगी किसी साधारण इंसान की तरह थी. बिना किसी शोरगुल और दिखावे के इस जिलाधिकारी ने नालंदा को अलविदा कह दिया. उन्होंने उस फ़ेयरवेल पार्टी से भी मना कर दिया जो उनके सम्मान में रखी जानी थी. उनका ये दिल जितने वाला काम अब इंटरनेट और सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. हर किसी की जुबान पर इस आईएएस का ही नाम है.

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लाइन में लग के कटाया ट्रेन टिकेट 

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पहले उन्होंने बड़ी ही शालीनता से अपने सम्मान में दी जाने वाली फेयरवेल पार्टी के लिए मना किया और फिर उन्होंने लोगो का आभार व्यक्त किया. इसके साथ ही उन्होंने अपनी विदाई के दौरान किसी भी सरकारी सेवा का लाभ नहीं लिया. जिस तरह से आईएएस योगेंद्र हाथ में ट्रॉली बैग रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े. उसे देखते हुए लगा ही नहीं कि वह यहां के डीएम रह चुके हैं. वो एक आम नागरिक की तरह यहां से विदा हुए. और तो और, उन्होंने अपने बॉडीगार्ड तक को अपने साथ रेलवे स्टेशन चलने से मना कर दिया. उन्होंने अपने अंगरक्षक को नसीहत दी कि वह नए डीएम के साथ रहें. इतना ही नहीं, डीएम ने लोगों की बची खुची वाह वाही और सम्मान तब लूट लिया जब वह रेल की टिकट कटाने के लिए आमलोगों की तरह लाइन में खड़े हो गए और श्रमजीवी एक्सप्रेस से टिकट कटा कर के पटना के लिए रवाना हो गए.

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कम उम्र में पिता को खो दिया 

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बता दें कि योगेंद्र मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गंजमुरादाबाद विकासखंड के छोटे से गांव हरईपुर के रहने वाले हैं. प्राइमरी पाठशाला से अपनी प्रारंभिक शिक्षा लेने वाले योगेंद्र एक किसान परिवार में वर्ष 1990 में जन्मे. अटवा वैक के विवेकानंद इंटर कॉलेज से हाईस्कूल और मल्लावां के बीएन इंटर कॉलेज से 12th करने वाले योगेंद्र ने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीए और दिल्ली के जेएनयू से एमए की शिक्षा प्राप्त की थी. जब योगेंद्र मात्र 12 साल के थे तभी2002 में कैंसर ने उसने उनके पिता जय सिंह को छीन लिया. इसके बाद मां श्यामा देवी ने मात्र तीन बीघा जमीन पर खेती करते हुए परिवार का भरण पोषण करने के साथ साथ बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाया. इसी आर्थिक संकट के कारण लखनऊ में पढ़ाई करते हुए योगेंद्र ने बच्चों को कोचिंग पढ़ा कर अपना खर्च उठाया. सिविल परीक्षा की जी तोड़ तैयारी के बाद उन्होंने 2012 में ऑल इंडिया में 28वां स्थान प्राप्त किया और आईएएस चुने गए. इसके साथ ही उन्हें बिहार कैडर मिला.

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आईएएस योगेंद्र का ट्रांसफर नालंदा के बाद अब समस्तीपुर के जिलाधिकारी के पद पर हुआ है. 35 महीनों तक नालंदा में जिलाधिकारी के पद पर रहे योगेंद्र सिंह की पहचान उनके काम और उनके तेजतर्रार व्यक्तित्व को लेकर है. बहुत ही मुश्किल हालातों से लड़कर योगेंद्र आज यहां तक पहुंचे हैं शायद यही वजह है कि उनके अंदर की सादगी आज भी बरकरार है.

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