नौकरी. कॉलेज ख़त्म होने के बाद हमारे दिल-दिमाग में सिर्फ़ यही चलता है. इसी को टार्गेट करके हम पढ़ते हैं या कोई कोर्स करते हैं. दूसरी तरफ़ पेरेंट्स भी बच्चों को उसी दिशा में पढ़ाने की कोशिश करते हैं, जिससे बच्चे अच्छे से स्टेबल हो जाए. ऐसा ही हुआ राजस्थान के रहने वाले विजय सिंह गुर्जर के साथ.
विजय सिंह के पिता किसान और मां हाउसवाइफ हैं. उन्होंने गांव के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. अपने पांच भाई-बहनों में वह तीसरे नंबर पर हैं. पढ़ाई के दौरान वह पिता के पशुपालन में भी मदद करते थे. इसके साथ ही खेती में हाथ बंटाते थे.
किसानी से विजय सिंह के घर की हालत बेहतर नहीं हो पाती थी. ऐसे में वह ऊंटों को जुताई के लिए ट्रेंड करते थे. ट्रेंड ऊंट को वह पुष्कर मेले में बेचने का काम करते थे. इससे घर का खर्च चल जाता था. लेकिन, फिर भी बड़ी जगह से पढ़ाई के लिए अपर्याप्त था.
ऐसे में विजय के पिता ने उन्हें संस्कृत से शास्त्री करने की सलाह दी. विजय ने पढ़ाई पूरी की और नौकरी की तलाश में लग गए. इसके बाद वह नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गए. लेकिन, यहां किसी तरह की नौकरी नहीं मिली. इस बीच उनके एक दोस्त ने उन्हें कांस्टेबल में भर्ती निकलने की बात बताई.
इंटरनेट पर करते थे पढ़ाई
वह दिल्ली में ही कांस्टेबल की तैयारी करने लगे. पेपर दिए और 100 में 89 नंबर पाए. जून 2010 में उन्होंने कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली. लेकिन, उनके मन में इच्छा कुछ और बेहतर करने की थी. वह कहते हैं, इसके बाद मैं यूपीएससी की तैयारी करने लगा. इंटरनेट पर पढ़ता की टॉपर्स ने कैसे तैयारी की और मैं वैसे ही लग जाता.
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कस्टम अफ़सर बनने के बाद भी नहीं रुके
विजय के मुताबिक़, इसी बीच एसएससी सीजीएल का फॉर्म आया तो उसका भी एग्जाम दे दिया. उसमें भी निकल गया और कस्टम अफ़सर के तौर पर ज्वाइन कर लिया. इसके बाद साल 2014 में इनकम टैक्स अफ़सर के तौर पर नौकरी लग गई. हालांकि, हर नौकरी के दौरान मन के एक कोने में यूपीएससी छिपा रहा.
शुरुआती असफ़लता से निराश नहीं हुए
साल 2013 में यूपीएससी दिया तो प्रीलिम्स में ही नहीं हुआ था. फिर साल 2014 में दिया तो भी नहीं हुआ. इस बीच ऑफिस के काम के साथ अपनी तैयारी पर फोकस किया रहता था. मैंने ऐसा शिड्यूल तैयार किया कि खाली टाइम में पढ़ता था.
… और फिर आईपीएस बनकर ही रुके
इसके बाद से वह लगातार ऑनलाइन जर्नल पढ़ते रहे और मौक टेस्ट देते रहे और तैयारी करते रहे. जीएस, रिजनिंग के सा-साथ संस्कृत पर उन्होंने और ध्यान दिया. साल 2018 में मेन्स में 10 नंबर से रह गया था, उसका कसक बना हुआ था. लेकिन, तैयारी नहीं छोड़ी और अब सफल हो गया. अब मुझे आईपीएस कैडर मिला है और मैं जो सोचता था, वह बन गया हूं.