इंजीनियर से किसान बने अंकित युवाओं के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। युवाओं की परेशानी देखकर ही अंकित ने गांव में ही खेती करने का निर्णय लिया था। अंकित ने बताया कि मार्केट अच्छा रहने पर सालाना 6 लाख से भी ज्यादा की कमाई हो जाती है।
बिहार के जमुई के अंकित राज की चर्चा पूरे जिले में है। इंजीनियर से किसान बने अंकित युवाओं के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। 30 साल के युवा इंजीनियर को बचपन से ही गांव से लगाव था।
अच्छी कंपनी में जॉब के बावजूद वे छोड़कर झाझा पहुंच गए। यहां पपीते की खेती शुरू की। वे करीब 20 कट्ठा में पपीता के पौधे लगाते हैं। 1 हजार पौधों से उन्हें हर महीने करीब 50 हजार महीने की आमदनी हो रही है।
6 से 9 महीने का समय लगता है
अंकित के मुताबिक वे जैविक तरीके से खेती करते हैं। बाहर के खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जैविक विधि से 6 बाय 6 में एक पौधा लगाया जाता है।
पौधे लगाने से फसल पकने तक औसत 6 से 9 महीने लगते हैं। करीब दो लाख रुपए की लागत आती है। अंकित ने बताया कि मार्केट अच्छा रहने पर सालाना 6 लाख से भी ज्यादा की कमाई हो जाती है।
नजदीकी मार्केट में होती है बिक्री
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले अंकित ने यह भी कहा कि नए किसानों को सबसे पहले कम जमीन पर पौधा लगाकर शुरुआत करनी चाहिए। आय बढ़ने पर विस्तार देना ज्यादा बेहतर है।
उन्होंने बताया कि पपीता पकने पर इसे जमुई और देवघर (झारखंड) की मंडी में सप्लाई करते हैं। सीधे खरीदार घर आकर पपीता भी ले जाते हैं।
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स्थानीय लोग को ₹40 किलो के हिसाब से घर से भी पपीते की बिक्री करते हैं। हर करीब 80 किलो पपीता की बिक्री कर लेते हैं।
गांव के युवाओं को भी दिया रोजगार
कोरोना महामारी के दौरान लाखों लोगों की जॉब चली गई थी। लोग पैतृक गांव की ओर लौटने के लिए विवश हो गए थे। युवाओं की परेशानी देखकर ही अंकित ने गांव में ही खेती करने का निर्णय लिया था।
इसमें उनके परिजनों ने भी साथ दिया। गांव के कई युवाओं को अंकित ने पपीते की खेती के जरिए रोजगार भी दिया है। आस-पास के गांव के लोग भी खेती का गुड़ सीखने के लिए अंकित के पास आते हैं।
अंकित के पिता बताते हैं कि आज के युवा पढ़ाई और डिग्री लेकर दिल्ली बेंगलुरु में 40 से 50 हज़ार की महीने कमाते है। इसे कमाने के लिए 10 से 15 घंटे काम करना पड़ता है। उन युवाओं से भी गांव आकर जैविक विधि से खेती करने का अपील करता हूं।