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बिहार से है पंचायत 2 के विनोद, बोले- “करैक्टर करके भूल चूका था, पता नहीं था लोग इतना पसंद करेंगे”

अब यदि आपने ‘पंचायत’ का यह ओरिजिनल डायलॉग नहीं सुना होगा तो पहले उसे पढ़ लीजिए…”देख रहा है बिनोद, कैसे अंग्रेजी बोल-बोलकर बात को घुमाया जाता है।”

सबसे पहले सोशल मीडिया पर इन दिनों तैर रहे कुछ मीम्स के डायलॉग पढ़िए…

“देख रहा है बिनोद, कैसे ‘हम देखेंगे’ कहकर सैलरी में हाइक को टाला जा रहा है”

“देख रहा है बिनोद, कैसे चाय की लत ना लगे इसलिए कॉफी पिलाई जा रही है”

“देख रहा है बिनोद, कैसे सब कुछ महंगा होता जा रहा है”

इस तरह के सैकड़ों मीम्स आपने सोशल मीडिया पर जरूर पढ़े होंगे या किसी ने फॉरवर्ड किया होगा। दरअसल, ये सब चर्चित वेब-सीरीज ‘पंचायत’ सीजन-2 के तीसरे एपिसोड के डायलॉग पर बेस्ड मीम्स हैं।

Actor Ashok Pathak, who played the character of Binod in Panchayat Season 2
‘पंचायत’ सीजन-2 में बिनोद का कैरेक्टर निभाने वाले एक्टर अशोक पाठक

दरअसल, अब हम आपको बिनोद का कैरेक्टर निभाने वाले एक्टर अशोक पाठक की लाइफ से जुड़े कई दिलचस्प किस्से उन्हीं की जुबानी बताने जा रहे हैं।

ये कैरेक्टर मैंने रियल लाइफ में जिया

बिनोद के चर्चित किरदार को लेकर अशोक पाठक कहते हैं, ‘ये कैरेक्टर मैंने रियल लाइफ में जिया है। मेरे चाचा भी इसी तरह के हैं। बिल्कुल मासूम…।

समाज में हमारे आसपास ऐसे किरदार होते ही हैं। घर की भी आर्थिक स्थिति शुरुआत में कुछ ऐसी ही थी। इस कैरेक्टर के लिए कोई खास तैयारी नहीं करनी पड़ी। ऑडिशन दिया और सिलेक्ट हो गया।’

Vinod ie Ashok of Panchayat 2 is a resident of Saran district of Bihar
पंचायत 2 के विनोद यानि अशोक बिहार के सारण जिले के रहने वाले हैं

फिर बिनोद के बाद अशोक पाठक की जिंदगी में कितने बदलाव आए? जवाब में अशोक कहते हैं, ‘अब लोग मुझे बिनोद के नाम से जानने लगे हैं, पहचानने लगे हैं। हर रोज सैकड़ों मैसेज आते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया है।’

पंजाबी फिल्मों की वजह से चलता था उनका घर

जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कोई अशोक पाठक को जानता नहीं था, कई सालों तक कोई काम नहीं मिलता था तब उनका घर पंजाबी फिल्मों की वजह से चलता था। अशोक बताते हैं, ‘एक वक्त था जब पंजाबी फिल्मों की वजह से ही मेरा घर चलता था। खाना खा पाता था।’

Ashoks first film was Bittu Boss.
अशोक को पहली फिल्म बिट्टू बॉस मिली थी

अशोक आगे कहते हैं, ‘मानता हूं कि पंजाबी फिल्मों में दर्जनों रोल एक ही तरह के किए हैं, मुझसे करवाए गए, लेकिन पंजाब के दर्शकों ने पूरा सपोर्ट किया। जब हिंदी में मेरे पास कोई काम नहीं था तब पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री ने हेल्प की।’

अशोक एक्टिंग में आने से पहले घर के हालात को देखते हुए पढ़ाई के दौरान कई तरह की नौकरियां भी कर चुके हैं।

करीब एक साल तक साइकिल पर रुई रखकर बेची

वो कहते हैं, ‘बात 1999 की है, 9th में था। घर की स्थिति बहुत खराब थी। पढ़ने में मन नहीं लग रहा था तो जॉब करनी शुरू कर दी। चाचा कॉटन यानी रुई बेचते थे। करीब एक साल तक मैंने भी साइकिल पर रुई रखकर बेची। जून की दोपहरी में भी 25 किलोमीटर साइकिल चलाकर रुई बेचने जाता था।’

अशोक के पापा की जब जिंदल कंपनी में नौकरी लग गई तब उनके घर की स्थिति थोड़ी ठीक हुई। फिर उन्होंने पढ़ाई शुरू की। वो कहते हैं, ‘जब ग्रेजुएशन में गया तब थिएटर-नाटक के बारे में पता चला। लगा कि मैं बेहतर एक्टिंग कर सकता हूं।

थिएटर करने लगा, लेकिन ग्रेजुएशन के बाद एक एक्टिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन नहीं हो पाया। लगा कि कहीं किसी भ्रम में तो नहीं था कि मुझे एक्टिंग आती है।’

यहीं से लगा एक्टिंग का चस्का

MA में स्टडी के दौरान अशोक की दिलचस्पी लिटरेचर, नोवल में बढ़ने लगी। वो कहते हैं, ‘जो कभी सिलेबस की किताब पढ़ने में मन नहीं लगता था, नाटक, उपन्यास पढ़ने के बाद लगा कि यार… यही तो मैं पढ़ना चाहता था।’

Memes based on the dialogue of the third episode of Panchayat Season 2 going viral on social media
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे पंचायत सीजन-2 के तीसरे एपिसोड के डायलॉग पर बेस्ड मीम्स

अशोक बताते हैं कि उन्हें यहीं से एक्टिंग का चस्का लगा। वो एक दिलचस्प किस्सा कहते हैं। बताते हैं, ‘एक दोस्त ने थिएटर करने की सलाह दी। हम दोनों गए। दोस्त का तो सिलेक्शन नहीं हुआ, लेकिन मेरा हो गया। इसके बाद लगा कि मैं दुनिया में एक्टिंग के अलावा कुछ कर नहीं सकता।’

अशोक दिसंबर 2010 से मुंबई में रह रहे हैं। कहते हैं, ‘MA के बाद भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ के लिए ट्राई किया। स्कॉलरशिप मिल गई। दो साल की ट्रेनिंग और एक साल के इंटर्नशिप के बाद एक्टिंग में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई आ गया।’

नहीं पता था कि लोग इसे इतना पसंद करेंगे

अशोक पाठक कहते हैं कि जब शुरुआत में कोई एक्टर मुंबई आता है तो उसका पहला काम ही ऑडिशन देना होता है। अपनी प्रोफाइल फिल्म प्रोड्यूसर्स को बताना होता है। मैंने भी यही सब किया और सौभाग्य से 2011 में ही पहली फिल्म बिट्टू बॉस मिल गई।

Ashok Pathak says that did not know that people would like it so much
अशोक पाठक कहते है की नहीं पता था कि लोग इसे इतना पसंद करेंगे

फिर छोटे-छोटे रोल मिलने लगे। एक मिनट, डेढ़ मिनट, एक सीन-दो सीन के लिए काम मिलते रहे, जो मनोबल को गिराने वाला भी रहा। हालांकि, मुझे लगता है कि की हुई अच्छी चीजें कभी बर्बाद नहीं होती है।

जैसे देखूं तो ‘पंचायत’ में बिनोद का सीन भी कोई बड़ा नहीं है। मैं इस कैरेक्टर को करके भूल चुका था, लेकिन नहीं पता था कि लोग इसे इतना पसंद करेंगे।

कोरोना के दौरान काफी स्ट्रगल करना पड़ा

अशोक जब मायानगरी में अपने 12 साल के सफर को दोहराते हैं तो उनके चेहरे पर कई बुरी यादों की लकीर खींच जाती है। स्ट्रगल के दौरान कई ऐसी घटनाएं घटीं, जिसका अब वो जिक्र तक करना पसंद नहीं करते हैं।

वो आगे कहते हैं, ‘ये सब मीठी यादें हैं, जिसने मुझे आग में लोहे की तरह तपाया। कोरोना के दौरान काफी स्ट्रगल करना पड़ा। दो-तीन साल तक कोई काम ही नहीं था।’

Ashok says now people have started knowing me by the name of Binod.
अशोक कहते हैं अब लोग मुझे बिनोद के नाम से जानने लगे हैं

उन्हें कई बार इस बात का डर अंदर तक झकझोर देता है कि कहीं इंडस्ट्री में छोटे-छोटे रोल ही तो नहीं मिलते रह जाएंगे। अशोक थोड़ा सहमते हुए और कुछ सोचते हुए कहते हैं, ‘हां… डर तो लगता है। अभी तक के करियर में एक ही तरह का काम किया है, छोटे-छोटे रोल मिलते रहे हैं। ‘पंचायत’ में भी यही है।’

सफर और संघर्ष दोनों जारी है…

अचानक वो फिल्म इंडस्ट्री से सवाल पूछने के लहजे में कहते हैं, ‘मेरी शक्ल का व्यक्ति क्यों नहीं करोड़पति का रोल कर सकता है। हीरो का किरदार निभा सकता है। एक मौका तो देकर देखो…।’

अशोक कहते हैं, ‘एक अच्छे अभिनेता की भूख यही रहती है कि उसे अलग-अलग तरह के रोल मिलें। पिता आज भी पूछते रहते हैं, अब आगे क्या?, लेकिन मुझे उम्मीद है कि धीरे-धीरे और चीजें बदलेंगी।’

वो कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि ‘पंचायत’ के बाद काम मिलने की बाढ़ आ गई हो। पहले के ही कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। कुछ फिल्मों की शूटिंग शुरू होने वाली है। कुछ की पूरी हुई है। सफर और संघर्ष दोनों जारी है…