ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत के आधार पर किए जा रहे अध्ययन में जताई गई संभावना एएसआइ को भेजी गई रिपोर्ट। बिहार विरासत विकास समिति और यूनाइटेड किंगडम के कार्डिफ विश्वविद्यालय की संयुक्त टीम कर रही अध्ययन।
छठी-सातवीं शताब्दी में पाटलिपुत्र शहर का विस्तार दक्षिण पूर्व में पटना सिटी रेलवे स्टेशन क्षेत्र से लेकर दक्षिण पश्चिम में बाईपास के नजदीक पहाड़ी गांव तक था।
मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत के आधार पर पाटलिपुत्र शहर की सीमा की खोज के क्रम में यह महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।
कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की इकाई बिहार विरासत विकास समिति और इंग्लैैंड के कार्डिफ विश्वविद्यालय की संयुक्त टीम इस योजना पर काम कर रही है। पिछले एक साल के अध्ययन के आधार पर इससे जुड़ी रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी भेजी गई है।
कुम्हरार के पास मिली दो हजार साल पुरानी दीवार
पटना के कुम्हरार इलाके में तालाब के जीर्णोद्धार के दौरान करीब दो हजार साल पुरानी दीवार मिली है। विशेषज्ञों के अनुसार यह दीवार कुषाण काल की हो सकती है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) के पटना सर्कल के अनुसार, गुरुवार शाम को खोदाई के दौरान अधिकारियों को यह दीवार नजर आई।
![During the renovation of the pond in the Kumhrar area of Patna, about two thousand years old wall was found.](https://www.nextbihar.com/wp-content/uploads/2022/06/During-the-renovation-of-the-pond-in-the-Kumhrar-area-of-Patna-about-two-thousand-years-old-wall-was-found..jpg)
एएसआइ की टीम यहां केंद्र सरकार के मिशन अमृत सरोवर योजना के तहत संरक्षित तालाब का जीर्णोद्धार कर रही थी, इसी दौरान तालाब के अंदर ईंटों की दीवार मिली।
एएसआइ के अधिकारी दीवार के पुरातत्व महत्व का आकलन कर रहे हैं। इसकी जानकारी दिल्ली स्थित एएसआइ मुख्यालय के अधिकारियों को भी दी गई है।
कुषाण राजवंश का शासनकाल 30 ईस्वी से 375 ईस्वी तक माना जाता है। उत्तर भारत के साथ अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों तक कुषाण राजवंश फैला था।
सघन आबादी के कारण खोदाई की योजना नहीं
विजय चौधरी बताते हैं, ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में लिखा है कि पाटलिपुत्र के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में पांच स्तूप थे। इसे हमलोगों ने इसे पंच पहाड़ी के रूप में चिह्नित किया है, जो वर्तमान में बड़ी पहाड़ी एवं छोटी पहाड़ी का इलाका है।
इसके बाद दक्षिणी-पूर्व में एक स्तूप का जिक्र किया गया है, जिसे हमारी टीम ने पटना सिटी रेलवे स्टेशन के पास एक ऊंचे टीले के रूप में चिह्नित किया है।
इसके अलावा पटना के पूर्वी दरवाजा और पश्चिमी दरवाजा भी पाटलिपुत्र शहर का ही हिस्सा था। चूंकि पटना का यह सारा इलाका काफी सघन रूप से बसा हुआ है, इसलिए खोदाई की कोई योजना नहीं है।
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मगर पटना सिटी के इलाके में जो सरकारी जमीन या खाली जगह है, वहां भविष्य में सर्वे के बाद खोदाई कराई जा सकती है।
ह्वेनसांग का यात्रा वृतांत बिहार के अतीत को जानने का प्रमुख आधार
बिहार विरासत विकास समिति के कार्यपालक निदेशक विजय कुमार चौधरी बताते हैं कि ऐतिहासिक पाटलिपुत्र शहर की सीमा को लेकर अबतक कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है।
करीब 630 ईस्वी से 642 ईस्वी तक भारत की यात्रा पर आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-वृतांत में पाटलिपुत्र शहर की सीमा को लेकर जिक्र जरूर किया है।
![Hiuen Tsangs travelogue is the main basis for knowing the past of Bihar](https://www.nextbihar.com/wp-content/uploads/2022/06/Hiuen-Tsangs-travelogue-is-the-main-basis-for-knowing-the-past-of-Bihar.jpg)
वह जिन-जिन बौद्ध स्थलों पर गए, उसकी दिशा और दूसरी का उल्लेख अपने यात्रा-वृतांत में किया है। यह यात्रा वृतांत चीनी भाषा में थी।
करीब 1840 के आसपास इसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ। भारतीय पुरातत्व के जनक माने जाने वाले एलेक्जेंडर कनिंघम ने इसी यात्रा-वृतांत के आधार पर नालंदा और वैशाली की खोज की।
कार्डिफ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने किया अनुवाद
यूनाइटेड किंगडम के कार्डिफ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और चीनी भाषा व इतिहास के जानकार मैक्स डीग ने नए सिरे से ह्वेनसांग के यात्रा-वृतांत का अनुवाद किया है।
कार्डिफ विश्वविद्यालय की टीम यात्रा वृतांत के आधार पर जिन-जिन इलाकों को चिह्नित कर रही है, वहां बिहार विरासत विकास समिति की टीम जाकर पुरातात्विक अध्ययन कर रही है।
पहाड़ी और पटना सिटी के पास टीले पर मिले पुरातात्विक चिह्न के आधार पर इसके पाटलिपुत्र से जुड़ाव की संभावना जताई गई है।