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बिहार: चौसा का ऐतिहासिक युद्धक्षेत्र बनेगा पर्यटक स्थल, शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह को दी थी मात

26 जून 1539 ई. में मुगल बादशाह हुमायूं व शेरशाह के बीच युद्ध का गवाह यह मैदान अब भी उपेक्षित है। युद्ध में शेरशाह ने मुगलों को जबरदस्त मात दी थी। हुमायूं ने गंगा में कूदकर किसी तरह अपनी जान बचाई थी।

चौसा की ऐतिहासिक लड़ाई 26 जून 1539 के दिन लड़ी गयी थी। विशेष योजना से इस ऐतिहसिक धरोहर को पर्यटन के लायक बनाया जाना है। कई ऐसे निर्माण किये जा रहे हैं जो इतिहास का सचित्र जानकारी देंगे।

युद्धस्थली पर शेरशाह के विजयगाथा के लिए मिनी म्यूजियम गैलरी का निर्माण कराया जाएगा। जिसमे डिजिटल स्क्रीन सारी इतिहास की जानकारी देगी। दिल्ली के मुगल गार्डन की तर्ज पर शेरशाह गार्डन बनेगा।

म्यूजियम में ऐसी वस्तुए रखी जायेगी शेरशाह व निजामुद्दीन भिस्ती को यादगार करेगी। यह सब सरकार की योजना में शामिल है। इसके लिए वर्ष 2015 से 80 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है। लेकिन, अबतक मामूली काम ही हुए हैं।

The historic battle of Chausa was fought on 26 June 1539.

बक्सर के पुरातात्विक स्थलों पर काम कर चुके रामेश्वर प्रसाद वर्मा बताते हैं कि चौसा के युद्ध ने तब अपराजित कहे जाने वाली मुगलिया सल्तनत को गहरी चोट पहुंचाई थी। हिंदुस्तान की तारीख में यह भी दर्ज है कि यहां से जीत मिलने के बाद 1555 तक दिल्ली पर शेरशाह की हुकूमत रही।

देश को युद्ध से मिला था एक दिन का शासक

जान बचाने के लिए गंगा में कूदने के बाद मुगल बादशाह डूबने लगा था। तब यहीं का रहने वाला निजाम सक्का नामक भिस्ती ने मशक (पानी भरने का चमड़े का थैला) के सहारे उसे डूबने से बचाया और गंगा पार भी कराया था।

Mini museum gallery will be constructed for the victory of Sher Shah

उसके एवज में मुगल शासक हुमायूं ने निजाम सक्का को एक दिन का भारत का बादशाह बनाया। निजाम ने अपने शासनकाल में चमड़े का सिक्का चलाकर खुद को इतिहास में दर्ज कर लिया। यह सिक्का आज भी पटना के संग्रहालय में मौजूद है।

निजाम सक्का की मजार अजमेर में है मौजूद

अजमेर में निजाम सक्का की मजार है। जिसपर आज भी भिश्ती (अब्बासी) समाज के लोग चादरपोशी करते हैं। स्थानीय लोग उस मजार के इतिहास के रूप में बताते हैं कि चौसा का मशहूर युद्ध जो बादशाह हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच हुआ था।

Sher Shah Garden will be built on the lines of Mughal Garden of Delhi

युद्धरत बादशाह की जान बचाने की ऐवज में निजाम सक्का को बादशाहत दी गई। इस दौरान निजाम सक्का ने चमड़े के सिक्के चलाए थे। निजाम सक्का की मजार ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मौजूद है।ऐतिहासिक जीत की गवाही देता विजय स्तूप।

2013 में पुरातत्व विभाग ने कराई थी खुदाई

2012 में भारत सरकार से मिली अनुमति पर राज्य सरकार द्वारा पुरातत्व विभाग के माध्यम से खुदाई 2013 में प्रारंभ करायी गयी। खुदाई से इस स्थल का जुड़ाव शेरशाह युद्ध के अवशेष ही नही बल्कि पांच हजार वर्ष पुरानी गौरवशाली सभ्यता के प्रमाण भी मिले।

पुरातत्व विभाग के अनुसार खुदाई में जैन, बौद्धकाल से लेकर गुप्तकाल के सैकड़ों टेराकोटा की छोटी-बड़ी मूर्तियां प्राप्त हुई है। हालांकि, खुदाई में अभी जितने भी अवशेष मिले है। उन्हें ऐतिहासिक स्थल तथा जिले के संग्रहालय में नहीं, उसे पटना रखा गया है।

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