केंद्र सरकार ने शनिवार को मिथिलांचल की बड़ी मांग पूरी कर दी है, केंद्र सरकार के तरफ से बिहार को एक बड़ी सौगात मिली है। बिहार सरकार के प्रयासों के बाद मिथिलांचल मखाना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है। बीते दिनों मिथिलांचल मखाना को भौगौलिक संकेतक यानि GI तक से नवाजा गया है।
11 सितंबर, 2020 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय के डीन (कृषि) आरआर सिंह ने जीआइ के रजिस्ट्रार को पत्र भेज बिहार मखाना का नाम मिथिला मखाना करने का आग्रह किया था, और अब 2 साल के प्रयास के बाद बिहार के मिथिला मखान को यह टैग मिल गया है।
बता दें कि दुनिया में मखाना का लगभग 80 प्रतिशत उत्पादन मिथिलांचल में होता है। यह मिथिला का एक प्रमुख कृषि उत्पाद ही नहीं, बल्कि पहचान भी है। अब यह पहचान औैर समृद्ध होगी, जब इसे मिथिला मखाना के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि GI टैग मिलने के बाद मखाने का अंतरराष्ट्रीय कारोबार 10 गुना तक बढ़ सकता है।
देश में मखाना के उत्पादन में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी बिहार की है। बिहार में भी एक चौथाई उत्पादन अकेले दरभंगा जिले में होता है। यहां करीब पांच हजार हेक्टेयर रकबा में मखाना की खेती की जाती है। तकरीबन 16 हजार किसान बिहार में मखाना की खेती से जुड़े हुए हैं। मखाना से कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं।
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आकड़ों की बात करें तो पूरे देश में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में होती है। और इन उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा मिथिलांचल का है। बिहार के मिथिलांचल में बड़े स्तर पर इसकी खेती होती है, मिथिलांचल में मधुबनी और दरभंगा, सहरसा, पुर्णिया, मधेपुरा, कटिहार जिले शामिल हैं।
मखाने को GI टैग मिलने के बाद इससे बड़े पैमाने पर किसानों को लाभ अर्जित करने का अवसर मिलने की उम्मीद है. उम्मीद की जा रही है कि GI टैग मिलने के बाद इसके अंतराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में भी मांग बढ़ेगी।