पॉली हाउस और शेड नेट हाउस के माध्यम से होने वाली इस खेती के लिए संरक्षित खेती के द्वारा बागवानी विकास योजना के लिए 779 किसानों ने रुचि दिखायी है।
उद्यान निदेशालय ढाई लाख वर्गमीटर के हाइलैंड (ऊंची जमीन) में अर्नामेंटल फूल- जरबेरा, ग्लेडूलाई, गुलाब, खीरा, शिमला मिर्च, ऑफ सीजन की महंगी सब्जियां, औषधि की खेती करा कर किसानों की उन्नति की नींव रख रहा है।
पॉली हाउस और शेड नेट हाउस के माध्यम से होने वाली इस खेती के लिए संरक्षित खेती के द्वारा बागवानी विकास योजना के लिए 779 किसानों ने रुचि दिखायी है। योजना का लाभ लेने के लिए सभी जिलों के किसानों व्यक्तिगत अथवा समूह में ऑनलाइन आवेदन लिये जा रहे हैं।
शेड नेट हाउस पर लागत का 75 फीसदी अनुदान
बदलते मौसम में खेती करना किसानों के लिए जोखिम भरा काम हो गया है। प्राकृतिक आपदाओं एवं कीट रोगों के चलते फसल का नुकसान उठाना पड़ता है।
सरकार इस जोखिम को कम करने के लिए किसानों को पॉली हाउस व शेड नेट हाउस पर लागत का 75 फीसदी अनुदान मुहैया करा रही है। इसमें राज्य सरकार का 25 फीसदी टॉपअप अनुदान भी शामिल है।
दशकों बाद योजना को मिली मंजूरी
संरक्षित खेती के द्वारा बागवानी विकास योजना को एक दशक से अधिक समय बाद दोबारा मंजूरी मिली है। केंद्र-राज्य सरकार की 60:40 फीसदी भागीदारी वाली योजना को 2012-13 के बाद बंद कर दिया गया था। ऊंचाई वाली जमीन की उपलब्धता और मांग के अनुसार जिलों का लक्ष्य तय किया जायेगा।
पॉली हाउस से साल में 3 फसल
पॉली हाउस खेत पर ही एक ढांचानुमा रचना होती है, जो तापमान को नियंत्रित कर उगायी जाने वाली फसल के अनुकूल माहौल बना देती है। इसके लिए खेत की जमीन पर जगह-जगह कंक्रीट की नींव पर एक स्टील के फ्रेम का ढांचा खड़ा किया जाता है।
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इसे पॉलीशीट से कवर कर उस पर एक हवादार नेट अलग से लगाया जाता है। इसमें से टपक सिंचाई होती है. विशेषज्ञों की राय पर मूल्यवान तीन फसल उगायी जाती है।
एक नजर में योजना
उद्यान निदेशालय के सूत्रों के अनुसार पॉली हाउस के लिए कुल लक्ष्य दो लाख वर्गमीटर और शेड नेट का कुल लक्ष्य 50 हजार वर्गमीटर तय किया गया है।योजना की लागत 935 रुपये प्रति वर्ग मीटर अनुमानित है. इसमें 75 फीसदी अनुदान मिलेगा।
योजना का लाभ लेने के लिए किसान के पास न्यूनतम जमीन एक हजार वर्गमीटर होनी चाहिए। कोई किसान या समूह अधिकतम चार हजार वर्गमीटर तक के लिए लाभ ले सकता है।
क्या है शेड नेट?
यह एक ऐसी तरीका है, जिसमें जाल के अंदर नियंत्रित किये गये तापमान में खेती की जा सकती है। दो तरह के जाल (नेट) होते हैं। ऊपर का हिस्सा सफेद होता है, जबकि निचला जाल हरे रंग का होता है. ढांचे के अंदर फागर भी लगे होते हैं।