बलवीर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर वाली बात से प्रेरित होकर ‘मोदी जी चाय पकौड़े’ की दुकान खोली तो जीवन में बदलाव आ गया। जानें कितनी बदली जिंदगी और कैसे छोटा भाई बना दरोगा।
कहते हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, बस बड़ी सोच की जरूरत है। ईमानदार प्रयास और कामयाबी पाने के लिए जरूरी जुनून के दम पर जब बड़ी सफलता हासिल होती है, तो फिर सारे संकोच कोसों पीछे छूट जाते हैं।
सामने होती है तो सिर्फ सफलता की कहानी, जो दूसरों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। अपनी लगन और मेहनत से गया जिले के शेरघाटी रोड के चेरकी दरियापुर के जयंत ने दारोगा बहाली की परीक्षा पास की है।
चार अन्य बेरोजगारों को भी दिया काम
उसकी इस सफलता के पीछे उसके बड़े भाई बलवीर पकौड़े वाला का हाथ है। कभी बेरोजगार रहने वाला बलवीर खुद का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था, लेकिन आज कुल्हड़ वाली चाय और पकौड़ा बेचकर उसने न सिर्फ अपने छोटे भाई को दारोगा बनवाया बल्कि घर का खर्च उठाने के साथ-साथ उसने चार अन्य बेरोजगारों को भी काम दिया हुआ है।
इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद करीब चार साल पहले रोजगार की तलाश में बलवीर कोलकाता चला गया। वहां कुछ दिन प्राइवेट कंपनी में काम करने के बाद अच्छी नौकरी नहीं मिली तो पुनः अपने घर वापस आ गया.घर-परिवार चलाने के लिए आगे क्या करें, यह सोचकर वह परेशान रह रहा था।
उन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर बनने के लिए दिए जाने वाले भाषणों को सुनकर वह प्रेरित हुआ। बस फिर क्या, बलवीर ने अपने गांव में ही ‘आत्मनिर्भर भारत मोदी जी चाय-पकौड़ा’ की दुकान खोल ली। आज इससे अच्छी खासी कमाई हो रही है।

दूर-दूर से कुल्हड़ वाली चाय और पकौड़ा खाने आते हैं लोग
बलवीर बताते हैं कि आज उनकी कुल्हड़ वाली चाय और सरसों तेल के बने पकौड़ा खाने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है।
शेरघाटी रोड के चेरकी दरियापुर मोड़ के पास बनी ‘मोदी जी चाय-पकौड़ा दुकान’ इलाके में इतनी प्रसिद्ध हो गई है कि पीएम मोदी का फोटो लगा बोर्ड देखकर उस रास्ते से गुजरने वाले लोग रुककर चाय और पकौड़े का स्वाद चखते हैं।
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बलवीर 10 रुपए में एक कप चाय और 15 रुपए प्लेट पकौड़ा बेचते हैं। हालांकि दोपहर बाद चार बजे से नौ बजे रात तक पकौड़े की काफी बिक्री होती है।
हर रोज होती है इतनी कमाई
बलवीर की मानें तो इस दुकान से प्रतिदिन 1800-2000 रुपये की कमाई हो जाती है। इसके अलावा उन्होंने चार युवकों को रोजगार भी दे रखा है। बलवीर दुकान की कमाई से घर परिवार चलाते हैं, तो छोटे भाई को भी पढ़ाया है।
भाई ने चाय-पकौड़ा बेचकर पढ़ाया: दारोगा जयंत
दारोगा जयंत इसी महीने सिवान में ज्वाइन करेंगे। उन्होंने कहा कि मुझे इस मुकाम तक पहुंचाने में घर वालों का खूब सहयोग मिला है। खासकर बड़े भैया बलवीर का, जिन्होंने छोटी सी चाय-पकौड़े की दुकान खोल कर मेरी पढ़ाई का सारा खर्च उठाया।
कॉपी-किताब से लेकर ट्यूशन फीस, रहने और खाने का खर्च भी वही उठाते थे। उन्हीं की मेहनत का नतीजा है कि आज हम दरोगा पद पर चयनित हुए हैं। अभी जब तक ज्वाइन नहीं करता हूं, तब तक भैया के काम में हाथ बंटा रहा हूं।