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बिहार के इस गर्ल्स हाईस्कूल शिक्षिका की अनोखी पहल, पढाई न छूटे इसलिए छात्राओं को सिखा रही साइकिल

छात्राओं की पढ़ाई न छूटे इसके लिए बांकीपुर गर्ल्स हाइ स्कूल की वोकेशनल विभाग की शिक्षिका डॉ मलिका शुक्ला ने एक अनोखी पहल की शुरुआत की है।

वे स्कूल में वैसी छात्राओं को साइकिल सिखाने की जिम्मेदारी निभा रही हैं, जो पढ़ना तो चाहती हैं, लेकिन साइकिल न चला पाने की वजह से स्कूल में कक्षाएं कम कर पाती हैं।

छात्राओं को शिक्षा मिलती रहे, इसके लिए सरकार की ओर से कई सारी योजनाएं चलायी जा रही है। इन्हीं योजनाओं में एक है बिहार मुख्यमंत्री साइकिल योजना, जिससे कई छात्राएं लाभान्वित भी हो रही हैं।

वहीं कई ऐसी छात्राएं भी हैं, जिन्हें इस योजना का लाभ मिला है, लेकिन उन्हें साइकिल चलाना नहीं आता है। ऐसे में दूर रहने वाली छात्राएं अपनी कक्षाएं नहीं कर सकती हैं।

साइकिल तो है, लेकिन चलाना नहीं आता

डॉ मलिका शुक्ला बताती हैं कि 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं की कई छात्राओं की स्कूल में उपस्थिति कम होते देख उन्होंने उनसे बात की।

बात करने छात्राओं ने बताया कि कई बार भाई या पिता के घर पर नहीं रहने की वजह से स्कूल नहीं आ पाती हैं। उन्होंने बताया कि साइकिल तो है, लेकिन चलाना नहीं आता है।

उन्होंने स्कूल की प्राचार्या रेणु कुमारी से स्कूली छात्राओं को स्कूल परिसर में साइकिल सिखाने को लेकर इच्छा जतायी।

40 से अधिक लड़कियां सीख रहीं साइकिल

प्राचार्या ने उनकी इस पहल पर अपनी सहमति दी। इसके बाद उन्होंने सबसे पहले अपनी तरफ से छात्राओं के लिए एक साइकिल खरीदी, जिसे वे स्कूल परिसर में ही रखती हैं।

पिछले साल नवंबर के आखिर में उन्होंने छात्राओं को साइकिल सिखाना शुरू किया। शुरुआत में एक-दो छात्राएं ही आयीं, बाद में संख्या बढ़ कर 40 हो गयी।

अब तक 15 से ज्यादा छात्राओं ने साइकिल चलाना सीखा। अभी 10वीं और 12वीं की छात्राएं नहीं हैं तो 9वीं और 11वीं छात्राएं साइकिल सीख रही हैं।

क्या कहती हैं छात्राएं?

मुझे साइकिल सीखने की बहुत इच्छा थी लेकिन कोई सिखाने वाला नहीं था। जब स्कूल में साइकिल चलाने के बारे में पता चला तो मुझे इसे सीखने की इच्छा हुई और आज मैं इसे सीख रही हूं। – मरियम सिद्दिकी, नौवीं कक्षा

हमेशा छात्राओं को साइकिल से आते देखा करती थी। बड़ी इच्छा होती थी साइकिल चलाने की, लेकिन कोई सिखाने वाला नहीं था। स्कूल में सारी लड़कियों के बीच सीखने में झिझक भी नहीं हुई और अब साइकिल बैलेंस करना आ गया है। – सबा परवीन, ग्यारहवीं कक्षा

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