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बहुत ही अनोखा है बिहार का बैकटपुर धाम, जहाँ शिवलिंग रूप में है भगवान शिव, जानिए खासियत

इस मंदिर का संबंध प्राचीनकाल से हैं। मान्यता है कि सावन में यहां पूजा करने से सभी की मनोकामना पूरी होती हैं। श्रीराम ने यहां आकर की थी भगवान शिव की पूजा……………………

बिहार (Bihar) के बैकटपुर (Baiktpur) गांव में भगवान शिव का बहुत ही प्राचीन मंदिर है। जिसमें लोगों की गहरी आस्था है। इस मंदिर को श्री गौरीशंकर बैकुण्ठधाम के नाम से भी जाना जाता है।

कहते हैं कि सावन में अगर इस मंदिर में दर्शन किए जाए तो भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती हैं। आपको बता दें कि इस प्राचीन मंदिर की महिमा अतीत के कई युगों से जुड़ी हुई है। चलिए बताते हैं आपको इस भव्य मंदिर का इतिहास……

Very ancient temple of Lord Shiva in Baiktpur village of Bihar
बिहार (Bihar) के बैकटपुर (Baiktpur) गांव में भगवान शिव का बहुत ही प्राचीन मंदिर

आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठा के रूप में

इस प्राचीन मंदिर में शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं। इसके साथ ही शिवलिंग पर 108 छोटे-छोटे शिवलिंग भी बने हुए हैं।

In Anand Ramayana, this village is discussed as Baikuntha
आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठा के रूप में

वहीं इन छोटे शिवलिंगों को रूद्र कहा जाता है और ऐसा शिवलिंग पूरी दुनिया में कहीं और नहीं है। दरअसल इस मंदिर का संबंध प्राचीनकाल से हैं। तब ये क्षेत्र बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठा के रूप में हुई है।

श्रीराम ने यहां आकर की थी भगवान शिव की पूजा

कहते हैं कि रावण को मारने से श्रीराम पर जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वो इस मंदिर में आए थे। यहां आकर श्रीराम ने भगवान शिव की पूजा की थी। इसके साथ ही मंदिर का इतिहास महाभारत के जरासंध से भी जुड़ा हुआ है।

The temple is also known as Shri Gaurishankar Baikunth Dham.
मंदिर को श्री गौरीशंकर बैकुण्ठधाम के नाम से भी जाना जाता है

मान्यताओं के अनुसार जरासंध भगवान शंकर का बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से पूजा करने आता था। किवदंतियों के अनुसार इसी बैकुण्ठ नाथ के आशीर्वाद से जरासंध को मारना असंभव था।

The history of the temple is also associated with Jarasandha of Mahabharata.
मंदिर का इतिहास महाभारत के जरासंध से भी जुड़ा हुआ है

कहते हैं कि जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहना करता था। क्योंकि जबतक वो ताबीज उशके पास है तो उसे कोई भी हरा नहीं सकता।

इसलिए उसे हरा के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करवा दिया था और फिर उसे मारा गया।

Worshiping here in Sawan fulfills everyones wishes.
सावन में यहां पूजा करने से सभी की मनोकामना पूरी होती हैं

यूं तो हर दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता हैं, लेकिन सावन में यहां महादेव के भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। क्योंकि मान्यता है कि सावन में यहां पूजा करने से सभी की मनोकामना पूरी होती हैं।