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पांच साल के लिए जेल जा सकते हैं मांझी, सत्यनाराण भगवान और ब्राह्मणों पर दिया था विवादित बयान

PATNA-मांझी को हो सकती है 5 साल तक की जेल:सत्यनाराण भगवान और ब्राह्मणों पर गलत बयानबाजी पड़ सकती है भारी; जानिए वकील ने क्या कहा,खास जाति पर बयान पड़ेगा भारी, 2 से 5 साल तक हो सकती है सजा, माफीनामा मांगेंगे तो हो सकते हैं बरी

सत्यनारायण भगवान और ब्राह्मणों पर आपत्तिजनक शब्द कहकर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बहुत बुरे तरीके से फंस चुके हैं। उनके खिलाफ कोर्ट में 4 कंप्लेन केस हैं। इसमें पहला केस राकेश मिश्रा, दूसरा केस प्रभात कुमार मुन्ना, तीसरा केस भोला झा और चौथा केस लक्ष्मण चौबे ने दाखिल किया है। इन सभी कंप्लेन केस को चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट विजय कुमार सिंह की कोर्ट में दाखिल किया गया है। इस पर कल यानी 24 दिसंबर को सुनवाई होनी है। इस मामले में अब कानूनी तौर पर जीतन राम मांझी का क्या होगा? इसके बारे में पटना हाईकोर्ट के वकील द्विवेदी सुरेंद्र ने डिटेल से बताया है।

वकील के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने खास जाति पर बयान दिया है। वो प्रमाणित करता है कि उन्होंने समाज में जातीय उन्माद और विद्वेष फैलाने की भावना से आपत्तिजनक बयान दिया था। वो दिखाना चाहते हैं कि ब्राह्मण समाज का आज के समय में कोई अस्तित्व नहीं है। जबकि, उन्हें मालूम होना चाहिए कि समाज को बनाने और आगे बढ़ाने में ब्राह्मण समाज का अस्तित्व काफी बड़ा है। जिस तरह का बयान पूर्व मुख्यमंत्री ने दिया और उनके खिलाफ कंप्लेन केस किए गए हैं तो उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा।

इस मामले में सबसे पहले गवाही होगी। इसके बाद कोर्ट कांगनिजेंस लेगी। फिर उन्हें कोर्ट की तरफ से समन भेजा जाएगा। अगर समन भेजने के बाद वो कोर्ट नहीं आते हैं तो उनके खिलाफ वारंट भी जारी हो सकता है। वारंट बेलेबल या नॉन बेलेबल भी हो सकता है। जीतन राम मांझी को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे। इस केस में IPC की किन धाराओं का इस्तेमाल किया गया। उसके अनुसार ही कार्रवाई होगी।

अगर, बढ़िया से केस बना है और उनके ऊपर जो गंभीर आरोप लगे हैं जाति को बांटने का, उसके अनुसार 2 साल से लेकर 5 साल तक की सजा उन्हें हो सकती है। अब यह कंप्लेन करने वाले पर निर्भर करता है कि वो कोर्ट में अपने केस को किस तरह से रख पाते हैं। उसे पेश कर पाते हैं।

अगर जीतनराम मांझी अपने बयान पर कोर्ट में माफी मांगते हैं तो उस पर फैसला लेने का अधिकार भी कोर्ट के पास ही है। अगर वो सशर्त माफी मांगते हैं कि भविष्य में दोबारा ऐसा नहीं करूंगा और कोर्ट ने कांगनिजेंस ले रखा है तो ऐसी स्थिति में कोर्ट ही फैसला ले सकती है। यह भी संभव है कि इनके माफीनामे के आधार पर कोर्ट उन्हें केस से बरी भी कर दे। लेकिन, अगर पूर्व मुख्यमंत्री ने माफीनामा नहीं दिया तो कोर्ट इस मामले में संज्ञान लेकर आगे कार्रवाई कर सकती है और सजा का आदेश भी पारित कर सकती है।