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नहीं रहीं पद्मश्री सिन्धुताई, भीख मांग जिन हजारों अनाथ बच्चों को पाला उन्हें फिर से अनाथ कर गईं

देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित सिंधुताई सपकाल अब हमारे बीच में नहीं हैं. 4 जनवरी को वो अपने हजारों बच्चों को अकेला छोड़ इस दुनिया को अलविदा कह गईं. महाराष्ट्र की ‘मदर टेरेसा’ कही जाने वाली सिंधु सपकाल अपने बच्चों के बीच सिंधु ताई के नाम से जानी जाती थीं. मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता का निधन दिल का दौरा पड़ने के कारण हुआ.

Sindhu Tai Twitter

75 वर्षीय सिंधु ताई को पुणे के गैलेक्सी केयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ शैलेश पुंताम्बेकर के अनुसार सिंधु ताई का करीब डेढ़ महीने पहले हर्निया का ऑपरेशन हुआ था. ऑपरेशन के बाद उनके स्वस्थ में तेजी से सुधार नहीं आ रहा था.

मंगलवार यानी 4 जनवरी रात करीब आठ बजे दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. अनाथ बच्चों के लिए संस्थानों की स्थापना करने वाली सिंधु ताई 40 वर्षों में एक हजार से अधिक अनाथ बच्चों को गोद ले चुकी थीं. इनमें से कई बच्चों की शादी हो चुकी है और कई नौकरियां करते हुए सुखी जीवन जी रहे हैं.

बचपन का नाम था चिंदी

जन्म के बाद सिंधुताई का नाम चिंदी रखा गया था. चिंदी मतलब, किसी कपड़े का कुतरा हुआ टुकड़ा, जिसका कोई मोल ना हो. परिवार की ग़रीबी चरम पर थी, इसीलिए ना अच्छी परवरिश मिली और ना ही शिक्षा. 10 साल की उम्र में इस नन्हीं सी जान की शादी 30 वर्षीय श्रीहरी सपकाल से कर दी गयी. 20 साल की उम्र में चिंदी 3 बच्चों की मां बन चुकी थीं.

चौथा बच्चा उसके पेट में था, जब झूठ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया. नौवां महीना था, बच्चा किसी भी वक्त हो सकता था, मगर इससे किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा. ख़ुद चिंदी के घर वालों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया. चिंदी अकेली घर से बाहर पड़ी तड़पती रही, मगर कोई मदद को आगे नहीं आया.

अंत में चिंदी ख़ुद को किसी तरह घसीटते हुए पास में गाय के लिए बनाए गए फूस के घर में पहुंची. वहीं उसने अपने बच्चे को जन्म दिया. कोई सहारा बचा ना देख चिंदी अपनी बेटी के साथ रेलवे स्टेशन जा पहुंची. यहीं पर वो भीख मांग कर अपना और अपनी बच्ची का पेट पालने लगी. कई दिनों तक ऐसा चलता रहा.

चल पड़ी थीं आत्महत्या करने

एक पल ऐसा भी आया जब चिंदी का धैर्य जवाब देने लगा. उससे अब सहन नहीं हो रहा था. मसलन, उसने फ़ैसला कर लिया कि अब वो अपनी सांसों से नाता तोड़ देगी. यही सोच कर चिंदी ने उस दिन ख़ूब सारा खाना इकट्ठा किया और उसे खाने लगी. उसने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वो भूखे पेट मरना नहीं चाहती थी. उसने तब तक खाया, जब तक उसका पेट और मन दोनों नहीं भर गए.

बाकी का बचा खाना उसने अपने साथ बांध लिया और अपनी बच्ची के साथ रेल की पटरियों की तरफ़ निकल पड़ी. चिंदी निकली तो ख़ुद को मारने थी, लेकिन यही वो पल था जब उसकी ज़िंदगी बदलने वाली थी. रास्ते में उसे बुखार में तड़पता एक बूढ़ा व्यक्ति मिला. चिंदी ने सोचा कि क्यों ना वो अपना बचा खाना उसे दे दे. उसने ऐसा ही किया. पेट भरने के बाद उस इंसान ने चिंदी को देखते हुए हाथ जोड़ कर धन्यवाद किया.

एक पल में बदल गई ज़िंदगी की दिशा

इसी पल चिंदी के मन में ये ख़्यास आया कि उसने बहुत कुछ सहा, उसके बावजूद वो अभी तक जीवित है. वो चाहे तो अपने जैसे बेसहारा लोगों को जीने की कला सिखा सकती है. उस दिन के बाद चिंदी सिंधुताई बन गयी. तब से सिंधुताई हर उस बच्चे की मां बन गयी, जो स्टेशन पर या आसपास कहीं बेसहारा पड़ा मिलता.

जब बच्चे बढ़ने लगे तो सिंधुताई ने स्पीच देनी शुरू कर दी, जिससे डोनेशन मिल सके. आज सिंधु ताई लगभग 1500 बच्चों की मां, कईयों की सास, कईयों की दादी हैं. ये संख्या बढ़ रही है. जिस सिंधुताई को बचपन में चिंदी नाम दिया गया था, आज उसी चिंदी के सम्मान में अम्बर सिर झुकाता है.पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर सिंधुताई ने कहा कि यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है.

1500 बच्चों की मां को मिले 700 से ज्यादा सम्मान

सिंधुताई ने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की है. अतीत को याद करते हुए सिंधुताई ने रोटी को भी धन्यवाद किया. उन्होंने कहा, ‘मेरी प्रेरणा, मेरी भूख और मेरी रोटी है. मैं इस रोटी का धन्यवाद करती हूं. यह पुरस्कार मेरे उन बच्चों के लिए हैं जिन्होंने मुझे जीने की ताकत दी’. पद्मश्री से पहले सिंधुताई को अब तक 700 से अधिक सम्मान से नवाजा जा चुका है.

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