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जाने बिहार को: बिहार की 700 साल पुरानी लिपि ‘कैथी’ कहीं इतिहास न बन जाये

अपने अतीत को भुना गर्व से सीना चौरा करने वाला बिहार 700 साल से भी पुराने लिपि कैथी (Kaithi) को इतिहास के पन्नों तक ही दर्ज रहने देना चाहता है, आज बिहार में देखे तो कुल मिलाकर गिने चुने ही लोग है जो इस लिपि को पढ़ सकते हैं, लिखनेवालों की तादाद तो और भी कम है. इसे ‘कयथी’ या ‘कायस्थी’ के नाम से भी जाना जाता है।

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क्या है कैथी लिपि

कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है जो मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग की जाती थी। खासकर आज के उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाने के भी प्रमाण पाये जाते हैं। इसे “कयथी” या “कायस्थी”, के नाम से भी जाना जाता है। पूर्ववर्ती उत्तर-पश्चिम प्रांत, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा और अवध में इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था।

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आधिकारिक भाषा का दर्जा भी मिला था

जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है, ‘कायस्थ’ उत्तर भारत का एक सामाजिक समूह (जाति) है जिनके द्वारा मुख्य रूप से व्यापार संबधी ब्यौरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले इस लिपी का प्रयोग किया गया था। धीरे धीरे इस लिपि को वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य के लिए भी इस्तेमाल में लिया जाने लगा और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग में आई।

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1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। इसे खगड़िया जिले के न्यायालय में वैधानिक लिपि का दर्ज़ा दिया गया था।

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अंग्रेज़ों से भी पहले शासकीय वर्ग में शेरशाह ने 1540 में इस लिपि को अपने कोर्ट में शामिल किया। उस वक्त कारकुन कैथी और फारसी में सरकारी दस्तावेज लिखा करते थे। शेरशाह ने अपनी मुहरें भी फारसी के साथ कैथी लिपि में बनवाई थीं।

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साहित्य भी रचा गया 

लिखने में आसान होने की वजह से कैथी एक जनलिपि थी, जब देवनागरी प्रचलित नहीं थी, तब कैथी में ही साहित्य, कविता, नाटक, उपन्यास लिखा जाता था।

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बिहार के बीएल दास बताते हैं कि बिहार में कैथी लिपि में तंत्र-मंत्र की किताबें भी लिखी गयीं, यहाँ तक की बिहार के प्रथम भोजपुरी राष्ट्रगीत का दर्जा पा चुकी कविता ‘बटोहिया’ के अमर रचयिता रघुवीर नारायण ने ” विजयी नायक रामायण” को इसी लिपि में रचा था।

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विजयी नायक रामायण के कुछ अंश (तस्वीर – बेजोड़/यूट्यूब)

बताया जाता है कि साल 1917 में चंपारण आंदोलन के दौरान राजकुमार शुक्ल नामक व्यक्ति ने महात्मा गांधी के साथ कैथी में पत्राचार किया था. अभी भी बड़ी संख्या में पुराने दस्तावेज कैथी लिपि में ही उपलब्ध हैं।

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अस्तित्व की लड़ाई

कभी ‘बिहार लिपि’ के नाम से जाने जानी वाली लिपि आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, ऐसे में निकट भविष्‍य में इस लिपि को जानने वाला शायद कोई न बचेगा और तक इस लिपि में लिखे भू-अभिलेखों का अनुवाद आज की प्रचलित लिपियों में करना कितना कठिन होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। भाषा के जानकारों के अनुसार यही स्थिति सभी जगह है। ऐसे में जरूरत है इस लिपि के संरक्षण की।

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