भारत में हर दिन किसी त्योहार से कम नहीं. यहां त्यौहार भव्यता से मनाया जाता है. एक ऐसा ही भव्य त्योहार है भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra). पूरी दुनिया में अपनी भव्यता और श्रद्धा के लिए मशहूर यह यात्रा हर साल ओडिशा के पुरी शहर में ऐतिहासिक रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है.
इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा में हर साल लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं. मंदिर के तीनों प्रमुख भगवान, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की इस रथ यात्रा का गवाह बनने के लिए लाखों की संख्या में उमड़ते हैं. मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होना वाला व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है. इस रथ को रस्सी के सहारे हाथ से खींचा जाता है.
जगन्नाथ रथ यात्रा 2022 (Jagannath Rath Yatra 2022)
इस साल 1 जुलाई से रथ यात्रा निकाली जाएगी. पिछले 2 साल से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार कोविड गाइडलाइन्स का पालन करते हुए यात्रा निकाली जा रही है.
इस आलिशान रथ यात्रा पर भी कोरोना ने अपना असर डाला है. लाखों लोगों की एकजुटता के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व को पिछले 2 साल से कई प्रतिबंधों या गाइडलाइन्स के साथ मनाया जा रहा है. आज़ाद भारत में पहली बार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा इस तरह के प्रतिबन्ध के साथ मनाई गई.
425 साल में 32 बार रोकी गई जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra)
AP
इससे पहले, रथयात्रा के 425 वर्षों में इस महोत्सव को 32 बार रोका गया है. ऐसा ज्यादातर बाहरी आक्रमणों के चलते किया गया था. 1568 में पहली बार ऐसी हुआ कि यह यात्रा आयोजित नहीं की गई. बंगाल के राजा सुलेमान किरानी के सेनापति काला पहाड उर्फ काला चंद रॉय ने उस साल मंदिर पर हमला किया था.
जबकि आखिरी बार 1733 और 1735 के बीच इसका आयोजन नहीं किया जा सका, जब ओडिशा के डिप्टी गवर्नर मोहम्मद तकी खान ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला किया था, मूर्तियों को गंजम जिले में स्थानांतरित करना पड़ा था.
कोरोना के चलते रथ यात्रा में क्या बदलेगा?
AFP/Getty Images
कोरोना वायरस काल में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, कड़ी शर्तों के साथ पुरी में जगन्नाथ यात्रा प्रारंभ की जा चुकी है. इस दौरान अधिकतम 500 लोगों को ही रथ खींचने की परमिशन है. शहर में कर्फ्यू जैसे हालात हैं. जिले में दो बजे तक ‘‘कर्फ्यू जैसा’’ बंद लागू रहेगा. यही वजह है कि लोगों को उनके घरों से निकलने नहीं दिया जा रहा है.
इसके अलावा, रथ खींचने वाले 700 पुजारियों का कोरोना संक्रमण का टेस्ट किया जा रहा है. टीवी पर रथ यात्रा का लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा है. पिछले कई हज़ारों साल में ऐसा पहली बार हो रहा कि भगवान खुद मंदिर से बाहर आये हैं और लोग घरों में कैद होने को मजबूर हैं. इस दौरान, पुलिस ने भी सुरक्षा के लिए 50 से ज्यादा प्लाटून तैनात की हैं. एक प्लाटून में 30 कर्मी शामिल होते हैं.
‘फणी’ जैसे चक्रवाती तूफ़ान के बाद भी मना था यह महोत्सव
AP
बीते साल, मई, 2019 में ओडिशा ने चक्रवाती तूफान फानी के कहर को झेला था. 175 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार की प्रचंड हवाओं और पानी के तूफ़ान ने राज्य को तहस नहस कर डाला था. हाल इतना बुरा था कि पुरी के कई इलाके जलमग्न हो गए थे. इस दौरान करीब 64 लोगों की जान भी गयी थी. पिछले साल 4 जुलाई को शुरू हुई इस यात्रा को भारी नुक्सान के बावजूद उसी उत्साह से मनाया गया था. इस यात्रा में लाखों की संख्या में लोग उमड़े थे और हर साल की तरह इस महोत्सव को मनाया था.
जगन्नाथ पुरी का मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य: (Facts About Jagannath Temple)
AP
- यह मंदिर समुद्र तट के पास मौजूद है, जिसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था.
- जगन्नाथ पुरी के मंदिर में किसी भी पहर में मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती.
- मंदिर के शिखर के ऊपर से कोई हवाई जहाज तक नहीं गुज़रता है
- मुख्य द्वार से प्रवेश कर मंदिर में दाखिल होने के बाद समुद्र की लहरों की आवाज़ कानों में पड़नी बंद हो जाती है
- दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है
- शिखा पर लगा ध्वज हर दिन बदला जाता है
- मान्यता है कि अगर रोज़ झंडा नहीं बदला गया, तो मंदिर के दरवाज़े अपनेआप 18 साल के लिए बंद हो जाएंगे
- भोग बनाने के लिए आज भी चूल्हे का इस्तेमाल होता है, जिसे बनाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन इस्तेमाल किये जाते हैं.
सिर्फ़ लकड़ियों से बना होता है जगन्नाथ का विराट रथ
AP
भारत की चार पवित्र धामों में से एक पुरी है. इस यात्रा को निकाले जाने के पीछे कई सारी कहानियां प्रचलित हैं. इन कहानियों में से एक है कि भगवान श्री कृष्ण अपने भाई-बहनों के साथ रथ में सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडीचा जाते हैं. 10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में भगवान अपनी रूठी पत्नी को मनाने की बात भी कही जाती है.
सम्बंधित ख़बरें





इस यात्रा के लिए इस्तेमाल की जाने वाले रथ का का ख़ास महत्व है. यात्रा के लिए 3 रथों का निर्माण किया जाता है. जिसमें भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बैठकर शहर में निकलते हैं. ये रथ पूर्ण रूप से लकड़ी से ही बने होते हैं. इन्हें नीम की पवित्र लकड़ियों से बनाया जाता है, जिसे ‘दारु’ कहते हैं. रथ यात्रा निकालने से पहले राज्य का गजपति या राजा सोने की झाड़ू से रास्ता साफ़ करता है. इस पूजा का अनुष्ठान राजसी परिवार ही करता है.
ख़ास बात है कि इस रथ को जोड़ने के लिए एक भी कील तक कस इस्तेमाल नहीं होता है. इस रथ को बनाने का काम अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है, जबकि रथ की लकड़ियों का चुनाव बसंत पंचमी के दिन किया जाता है.
भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ भी कहा जाता है. जबकि बलराम का रथ ‘तलध्वज’ नाम से जाना जाता है. सुभद्रा का रथ “पद्मध्वज” नाम से जाना जाता है. इन तीनों रथों की संरचना कुछ ऐसी है:
- ‘कपिलध्वज’: 16 पहिए, 13.5 मीटर ऊंचा
- ‘तलध्वज’: 14 पहिए, 13.2 मीटर ऊंचा
- पद्मध्वज: 12 पहिए, 12.9 मीटर ऊंचा
भगवान की अधूरी मूर्तियों की होती है पूजा (Story Behind The Jagannath Idols)
AFP/Getty Images
यह रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को शुरू होती है, जो एकादशी के दिन समाप्त होती है, जब भगवन एक बार फिर वापस आकर अपने स्थान पर विराजमान हो जाते हैं. दिलचस्प बात है कि मंदिर में रखी ये मूर्तियां अधूरी हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है.
इस कथा के मुताबिक़, पुरी के राजा इंद्रविमुना भगवान श्री कृष्णा के भक्त थे. वह उनके दर्शन के लिए नीलांचन पर्वत तक गए मगर उन्हें वहां भगवान के दर्शन नहीं हुए. जिसके बाद वह वापस आये और उन्हें पुरी के समुद्र में विशाल लकड़ी के टुकड़े तैरते हुए दिखाई दिए. इसके बाद उन्होंने इससे भगवन की मूर्ति बनाने का फैसला किया. इसके लिए भगवान विश्वकर्मा बढ़ई का भेष धारण करके आते हैं. वह मूर्ति बनाने को लेकर राजा के सामने एक शर्त रखते हैं, जिसके मुताबिक़ जब तक मूर्तियां पूरी न बना जाएं कोई भी उन्हें रोके नहीं, नहीं तो वे काम अधूरा छोडकर चले जाएंगे.
राजा इस बात को स्वीकार लेते हैं. मगर एक दिन वह मूर्ति देखने के लिए बीच में ही चल जाते हैं, जिन्हें देखते ही विश्वकर्मा काम अधूरा छोड़कर गायब हो जाते हैं. इस तरह मूर्ति अधूरी ही रह जाती है. हालांकि, इस बात को लेकर बहुत सारी कहानियां है, जिसमें से उपरोक्त एक प्रचलित कहानी है.
राजा उन अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित करवा दिया और तबसे तीनों भाई-बहनों की अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है.
कुछ अन्य कहानियां…(Stories About Jagannath Yatra)
REUTERS
यात्रा के बारे में एक प्रचलित कहानी है इसी दिन सुभद्रा अपने मायके आईं थीं. यहां आकर वो राज्य की प्रजा से मिलना चाहती थीं, जिसके बाद कृष्ण जी ने उनके लिए रथ का इंतजाम किया थ. इसके बाद बलराम, श्री कृष्णा और सुभद्रा रथ में बैठकर अपनी मौसी के घर यानि गुंडीचा मंदिर पहुंचे.
यहां उन्होंने दस दिन तक वास किया. इस वास के दौरान माता लक्ष्मी कृष्ण जी को ढूंढते हुए गुंडीचा आती हैं. इस दौरान उनके गुंडीचा मंदिर में प्रवेश से पहले द्वारपाल मंदिर का मुख्या पट बंद कर देता है. इस बात से लक्ष्मी जी रूठ जाती है आर वापस चली जाती है. कहा जाता है जब कृष्ण वापस अपने धाम आते हैं तब वह लक्ष्मी मंदिर में रूककर उन्हें मनाते हैं और फिर वापस भाई-बहनों के साथ वापस गर्भ गृह पहुंचते हैं. इन रिवाजों को हर साल मनाया जाता है.
एक विराट महोत्सव का इतिहास भी काफी रोचक है, जो लोगों को भक्ति के रंग में रंग देता है.