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जगदानंद सिंह ने कहा रूटलेस नहीं हूं, लोहिया का शिष्य हूं, राजद में मेरे ऊपर सिर्फ लालू प्रसाद यादव हैं

आजकल बिहार की राजनीति में बहुत गर्माहट देखने को मिल रही है। एक तरफ, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटों के बीच लालू यादव की राजनीतिक विरासत को लेकर छिड़ी जंग का असर आरजेडी में देखने को मिल रहा है। अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव मोर्चा खोले हुए हैं।

तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के जातीय जनगणना की मांग को लेकर न केवल सुर एक हैं, बल्कि दोनों इस मुद्दे पर एक साथ प्रधानमंत्री से सोमवार को मिले भी। बिहार की पॉलिटिक्स में दिख रहे इस बदलाव और भविष्य में उसके असर को समझने के लिए एक न्यूज़ चैनल के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर ने राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से बात की, जो पुराने समाजवादी और राजद के संस्थापक सदस्य हैं।

बातचीत के मुख्य अंश प्रस्तुत हैं :

बिहार का जो राजनीतिक घटनाक्रम है, उसका वहां की पॉलिटिक्स पर क्या असर पड़ सकता है?
आरजेडी बिहार बचाने की लड़ाई लड़ रही है। जनता से प्रमाणित सच यह है कि आरजेडी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी है। हम अपनी नीतियों से समझौता करने वाले लोग नहीं हैं। हमारे लिए सत्ता मायने नहीं रखती, जनता से जवाबदेही मायने रखती है।

क्या इन दिनों आरजेडी में सब कुछ ठीक चल रहा है?
बिल्कुल सब बढ़िया चल रहा है। अगर ठीक नहीं चल रहा होता तो हम बिहार की सबसे बड़ी ताकत कैसे बन सकते थे?

तेजप्रताप यादव के साथ आपका जो विवाद है, वह क्या है?
देखिए, हम इस तरह के सवालों का जवाब नहीं दे सकते। हमने पहले ही आपसे कहा था कि हमसे इस तरह का प्रश्न न करिएगा, तभी बात करेंगे और आप वही प्रश्न पूछ लिए।

अच्छा, यह तो बता सकते हैं कि आपने लालू यादव के साथ काम किया है और अब उनके बेटों के साथ कर रहे हैं, पीढ़ीगत बदलाव के बीच क्या फर्क महसूस करते हैं?
हम तब भी आरजेडी के नेतृत्व के साथ थे, आज भी आरजेडी के नेतृत्व के साथ हैं। हम तेजस्वी यादव के साथ इसलिए नहीं हैं कि वह लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं बल्कि इसलिए साथ हैं कि वह बिहार के नेता बन चुके हैं। वह उस पार्टी के नेता हैं, जिसे मैंने स्थापित किया था। पार्टी नेता के रूप में उन्होंने अपनी स्वीकार्यता उन दलों तक बढ़ाई है, जो लालूजी के नेतृत्व में भी नहीं हुआ था।

पिछले दिनों ऐसी चर्चा रही है कि आप पार्टी से कुछ नाराज चल रहे हैं?
नाराज तो बच्चा होता है, बाप या बुजुर्ग किससे नाराज होंगे? मैं तो अध्यक्ष हूं। अध्यक्ष से भले कोई नाराज हो जाए, लेकिन अध्यक्ष किससे नाराज होगा? आरजेडी का जो संविधान है, उसमें हमसे ऊपर केवल लालू प्रसाद यादव हैं और कोई नहीं। लालू यादव का हमारा साथ तबसे है, जब वह नेता नहीं थे। न मैं 74 की उपज हूं और न ही 90 की। बिहार की राजनीति में छात्र नेता के रूप में मेरी शुरुआत सन 62-63 की है। मैं रूटलेस नहीं हूं। एक बात यह भी जान लीजिए कि मैं लोहिया का शिष्य हूं। राजनारायण, जनेश्वर मिश्र मेरे कमरे में आया करते थे। ये बातें इसलिए कह रहा हूं कि जिन लोगों को मेरा बैकग्राउंड न पता हो, वह जान लें।

अच्छी बात है आप नाराज नहीं हैं। यह बताइए कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश और तेजस्वी के साथ-साथ पीएम से मिलने को किस रूप में देखा जाए?
एक महत्वपूर्ण फर्क को समझिए। नीतीश कुमार के कहने पर तेजस्वी प्रधानमंत्री के यहां नहीं गए, बल्कि तेजस्वी के कहने पर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के यहां गए। जुलाई में तेजस्वी यादव ने प्रस्ताव पेश किया था कि विधानसभा का एक सर्वदलीय शिष्टमंडल मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलकर उनके समक्ष अपनी मांग रखें। अगर प्रधानमंत्री इसमें असमर्थता व्यक्त करते हैं, तो राज्य सरकार सभी जातियों की जनगणना करे, जैसे कर्नाटक ने कुछ समय पहले किया था।

क्या आरजेडी और जेडीयू के बीच दूरी कम हो रही है?
हमारी दूरी उनके साथ कभी भी खत्म नहीं हो सकती, जो किसी फासिस्ट पार्टी को अपना सहयोगी बनाकर चल रहे हों, जनमत के साथ धोखा किए हों। 2015 में नीतीश कुमार कहते थे- मिट्टी में मिल जाऊंगा, लेकिन बीजेपी से हाथ नहीं मिला सकता‌। हमारी पार्टी में भी कोई नीतीश के साथ गठबंधन करने का पक्षधर नहीं था। मैंने लालू प्रसाद यादव को नीतीश के साथ गठबंधन करने के लिए राजी किया था, इसलिए कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए समाजवादी ताकतों का एक होना और मजबूत होना जरूरी है। बाद में एहसास हुआ कि नीतीश अब समाजवादी नहीं रहे, सत्ता के लिए किसी से भी हाथ मिला सकते हैं।

बिहार से ऐसी खबरें आती रहती हैं कि जेडीयू- बीजेपी के बीच सब कुछ सहज नहीं है, अगर कभी दोनों के रास्ते अलग हुए तो आप लोगों का क्या निर्णय होगा?
पिछली बार हमने नीतीश को महागठबंधन में लिया था, उनका नेतृत्व स्वीकार किया था। हालांकि सीटें हमारी ज्यादा आईं, लेकिन हमने अपना वादा पूरा किया। बीजेपी के खिलाफ जो भी महागठबंधन में आना चाहेगा, उसके लिए दरवाजा खुला है। लेकिन नीतीश के लिए एंट्री की एक शर्त है, इस बार उन्हें तेजस्वी का नेतृत्व स्वीकार करना होगा वर्ना नो एंट्री।

 

 

 

 

input – daily bihar

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